- महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 58वें अध्याय में 'संजय द्वारा पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़ का वर्णन' दिया हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
पाण्डव वीरों का पराक्रम
संजय ने कहा- राजन! तदनन्तर वे समस्त भूपाल समर भूमि में अर्जुन को देखते ही कुपित हो उठे और उन्होंने अनेक सहस्र रथियों के साथ उन्हें सब ओर से घेर लिया। भरतनन्दन! उन राजाओं ने रथसमूह द्वारा अर्जुन को सब ओर से वेष्टित करके उनके ऊपर अनेक सहस्र बाणों की वर्षा आरम्भ की। वे क्रोध में भरकर युद्ध में अर्जुन के रथ पर चमचमाती हुई शक्ति, दुःसह गदा, परिघ, प्रास, फरसे, मुद्गर और मुसल आदि अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगे। शलभों की श्रेणी के समान अस्त्र-शस्त्रों की उस वर्षा को अर्जुन ने स्वर्णभूषित बाणों द्वारा सब ओर से रोक दिया। राजेन्द्र! अर्जुन की वह अलौकिक फुर्ती देख देवता, दानव, गन्धर्व, पिशाच, नाग तथा राक्षस साधु-साधु[2] कहकर उनकी प्रशंसा करने लगे। उधर विशाल सेना से घिरे हुए सात्यकि और अभिमन्यु ने समर भूमि में सुबल के पुत्रों सहित गान्धार देशीय शूरवीरों पर आक्रमण किया। वहाँ जाते ही क्रोध में भरे हुए सुबलपुत्रों ने युद्धस्थल में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों द्वारा सात्यकि के श्रेष्ठ रथ को रोषपूर्वक तिल-तिल करके काट डाला।
तब शत्रुओं को संताप देने वाल सात्यकि उस समय छिड़े हुए भयंकर संग्राम में अपने टूटे हुए रथ को त्यागकर तुरन्त ही अभिमन्यु के रथ पर जा बैठे। फिर एक ही रथ पर बैठे हुए वे दोनों वीर झुकी हुई गांठ वाले पैने बाणों से तुरंत ही सुबलपुत्र शकुनि की सेना का संहार करने लगे। इसी प्रकार एक ओर से आकर युद्ध के लिये सदा उद्यत रहने वाले द्रोणाचार्य और भीष्म ने कंकड़ पक्षी के पंखों से युक्त तीखे बाणों द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर की सेना का विनाश आरम्भ कर दिया। तब धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर तथा माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल-सहदेव ने समस्त सेनाओं के देखते-देखते द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया। जैसे पर्वकाल में अत्यन्त भयंकर देवासुर-संग्राम हुआ था, उसी प्रकार वहाँ अत्यन्त भयानक रोमांचकारी युद्ध होने लगा। दूसरी ओर भीमसेन और घटोत्कच ने महान पराक्रम का परिचय देते हुए दुर्योधन की विशाल वाहिनी को खदेड़ना आरम्भ किया।[1]
कौरव सेना का युद्धभूमि से भागना
उस समय दुर्योधन ने सामने आकर उन दोनों को रोक दिया। भारत! वहाँ हमने हिडिम्बापुत्र घटोत्कच का अद्भुत पराक्रम देखा। वह रणक्षेत्र में पिता से भी बढ़कर पुरुषार्थ प्रकट करते हुए युद्ध कर रहा था। क्रोध में भरे हुए पाण्डुनन्दन भीमसेन ने हंसते हुए से एक बाण मारकर अमर्षशील दुर्योधन की छाती छेद डाली। तब उस बाण के गहरे आघात से पीड़ित हो राजा दुर्योधन रथ की बैठक में बैठ गया और उसे मूर्छा आ गयी। राजन! उसे संज्ञाशून्य जानकर उसका सारथी बड़ी उतावरी के साथ उसे रणभूमि से बाहर ले गया। फिर तो उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब चारों ओर भागती हुई उस कौरव सेना पर तीखे बाणों का प्रहार करते हुए भीमसेन उसे पीछे से खदेड़ने लगे। दूसरी ओर से रथियों में श्रेष्ठ द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न तथा धर्मपुत्र युधिष्ठिर शत्रुसेना का विनाश करने वाले तीखे बाणों द्वारा द्रोणाचार्य और भीष्म के देखते-देखते कौरव सेना को पीड़ित करते हुए उसका पीछा करने लगे। महाराज! उस युद्ध स्थल में आपके पुत्र की भागती हुई सेना को महारथी द्रोण और भीष्म भी रोक न सके।[1]
महामना भीष्म और द्रोण के रोकने पर भी उनके सामने ही वह सेना भागती ही चली जा रही थी। उधर सहस्रों रथी जब इधर-उधर भाग रहे थे, उसी समय एक रथ पर बैठे हुए अभिमन्यु और सात्यकि सुबलपुत्र की सेना का संग्राम भूमि में सब ओर से संहार करने लगे। उस अवसर पर (एक रथ में बैठे हुए) सात्यकि और अभिमन्यु उसी प्रकार शोभा पा रहे थे, जैसे अमावस्या तिथि को आकाश में सूर्य और चन्द्रमा एक ही स्थान में सुशोभित होते हैं। प्रजानाथ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए अर्जुन आपकी सेना पर उसी प्रकार बाणों की वर्षा करने लगे, जैसे बादल पानी की धारा बरसाता है। तब पार्थ के बाणों से संग्राम-भूमि में पीड़ित हुई कौरव-सेना विषाद और भय से कांपती हुई इधर-उधर भाग चली। उन योद्धाओं को भागते देख दुर्योधन का हित चाहने वाले महारथी भीष्म और द्रोण क्रोधपूर्वक उन्हें रोकने लगे।[3]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-21
- ↑ वाह-वाह
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 58 श्लोक 22-46
सम्बंधित लेख
महाभारत भीष्म पर्व में उल्लेखित कथाएँ
जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
कुरुक्षेत्र में उभय पक्ष के सैनिकों की स्थिति
| कौरव-पांडव द्वारा युद्ध के नियमों का निर्माण
| वेदव्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान
| वेदव्यास द्वारा भयसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा विजयसूचक लक्षणों का वर्णन
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र से भूमि के महत्त्व का वर्णन
| पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन
| सुदर्शन द्वीप के वर्ष तथा शशाकृति आदि का वर्णन
| उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन
| रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन
| भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन
| भारतवर्ष के जनपदों के नाम तथा भूमि का महत्त्व
| युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
भूमि पर्व
संजय द्वारा शाकद्वीप का वर्णन
| कुश, क्रौंच तथा पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन
| राहू, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन
श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
संजय का धृतराष्ट्र को भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाना
| भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप
| धृतराष्ट्र का संजय से भीष्मवध घटनाक्रम जानने हेतु प्रश्न करना
| संजय द्वारा युद्ध के वृत्तान्त का वर्णन आरम्भ करना
| दुर्योधन की सेना का वर्णन
| कौरवों के व्यूह, वाहन और ध्वज आदि का वर्णन
| कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों का वर्णन
| अर्जुन द्वारा वज्रव्यूह की रचना
| भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना
| कौरव-पांडव सेनाओं की स्थिति
| युधिष्ठिर का विषाद और अर्जुन का उन्हें आश्वासन
| युधिष्ठिर की रणयात्रा
| अर्जुन द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति
| अर्जुन को देवी दुर्गा से वर की प्राप्ति
| सैनिकों के हर्ष तथा उत्साह विषयक धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
| कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों तथा शंखध्वनि का वर्णन
| स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद
| कृष्ण द्वारा अर्जुन का उत्साहवर्धन एवं सांख्ययोग की महिमा का प्रतिपादन
| कृष्ण द्वारा कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञ की स्थिति और महिमा का प्रतिपादन
| कर्तव्यकर्म की आवश्यकता का प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालन की महिमा का वर्णन
| कामनिरोध के उपाय का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषों के आचरण एवं महिमा का वर्णन
| विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन
| सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं ध्यानयोग का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग का प्रतिपादन और आत्मोद्धार के लिए प्रेरणा
| ध्यानयोग एवं योगभ्रष्ट की गति का वर्णन
| ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन
| कृष्ण का अर्जुन से भगवान को जानने और न जानने वालों की महिमा का वर्णन
| ब्रह्म, अध्यात्म तथा कर्मादि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
| कृष्ण द्वारा भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गों का प्रतिपादन
| ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| प्रभावसहित भगवान के स्वरूप का वर्णन
| आसुरी और दैवी सम्पदा वालों का वर्णन
| सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन
| भगवद्भक्ति की महिमा का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अर्जुन से शरणागति भक्ति के महत्त्व का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूति और योगशक्ति का वर्णन
| कृष्ण द्वारा प्रभावसहित भक्तियोग का कथन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का पुन: वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण से विश्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना
| कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण के विश्वरूप का देखा जाना
| अर्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति और प्रार्थना
| कृष्ण के विश्वरूप और चतुर्भुजरूप के दर्शन की महिमा का कथन
| साकार और निराकार उपासकों की उत्तमता का निर्णय
| भगवत्प्राप्ति वाले पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन
| प्रकृति और पुरुष का वर्णन
| ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन
| भगवत्प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| संसारवृक्ष और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन
| प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप और पुरुषोत्तम के तत्त्व का वर्णन
| दैवी और आसुरी सम्पदा का फलसहित वर्णन
| शास्त्र के अनुकूल आचरण करने के लिए प्रेरणा
| श्रद्धा और शास्त्र विपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन
| आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद की व्याख्या
| ओम, तत् और सत् के प्रयोग की व्याख्या
| त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन
| भक्तिसहित निष्काम कर्मयोग का वर्णन
| फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन
| उपासना सहित ज्ञाननिष्ठा का वर्णन
| भक्तिप्रधान कर्मयोग की महिमा का वर्णन
| गीता के माहात्म्य का वर्णन
भीष्मवध पर्व
युधिष्ठिर का भीष्म, द्रोण आदि से अनुमति लेकर युद्ध हेतु तैयार होना
| कौरव-पांडवों के प्रथम दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्द्व युद्ध
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध
| भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध
| शल्य द्वारा उत्तरकुमार का वध और श्वेत का पराक्रम
| विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम
| भीष्म द्वारा श्वेत का वध
| भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति
| युधिष्ठिर की चिंता और श्रीकृष्ण द्वारा उनको आश्वासन
| धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना
| कौरव सेना की व्यूह रचना
| कौरव-पांडव सेना में शंखध्वनि और सिंहनाद
| भीष्म और अर्जुन का युद्ध
| धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का युद्ध
| भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध
| भीमसेन द्वारा शक्रदेव और भानुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध
| अभिमन्यु और अर्जुन का पराक्रम तथा दूसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडवों की व्यूह रचना
| उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़
| दुर्योधन और भीष्म का संवाद
| भीष्म का पराक्रम
| कृष्ण का भीष्म को मारने के लिए उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना की पराजय और तीसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडव सेनाओं का व्यूह निर्माण
| भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध
| अभिमन्यु का पराक्रम
| धृष्टद्युम्न द्वारा शल के पुत्र का वध
| धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्ष के वीरों का युद्ध
| भीमसेन द्वारा गजसेना का संहार
| भीमसेन का पराक्रम
| सात्यकि और भूरिश्रवा की मुठभेड़
| भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम
| कौरवों की पराजय तथा चौथे दिन के युद्ध की समाप्ति
| धृतराष्ट्र-संजय प्रसंग में दुर्योधन का भीष्म से पांडवों की विजय का कारण पूछना
| भीष्म का ब्रह्मा द्वारा की हुई भगवत-स्तुति का कथन
| नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुन की महिमा का प्रतिपादन
| भगवान श्रीकृष्ण की महिमा
| ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन की महत्ता
| कौरवों द्वारा मकरव्यूह तथा पांडवों द्वारा श्येनव्यूह का निर्माण
| भीष्म और भीमसेन का घमासान युद्ध
| भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओं का घमासान युद्ध
| कौरव-पांडव सेनाओं का परस्पर घोर युद्ध
| कौरव-पांडव योद्धाओं का द्वन्द्व युद्ध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के दस पुत्रों का वध
| अर्जुन का पराक्रम तथा पाँचवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| पांडवों द्वारा मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौंचव्यूह का निर्माण
| धृतराष्ट्र की चिन्ता
| भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध
| भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| अभिमन्यु आदि का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति
| भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन
| कौरव-पांडव सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
| श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़
| द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध तथा विराटपुत्र शंख का वध
| शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय
| धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध
| इरावान द्वारा विन्द-अनुविन्द की पराजय
| भगदत्त द्वारा घटोत्कच की पराजय
| मद्रराज पर नकुल और सहदेव की विजय
| युधिष्ठिर द्वारा राजा श्रुतायु की पराजय
| महाभारत युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना
| भूरिश्रवा से धृष्टकेतु तथा अभिमन्यु से चित्रसेन आदि की पराजय
| सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ
| अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ
| भीमसेन का पुरुषार्थ
| भीष्म और युधिष्ठिर का युद्ध
| धृष्टद्युम्न के साथ विन्द-अनुविन्द का संग्राम
| द्रोण आदि का पराक्रम और सातवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध
| भीष्म का रणभूमि में पराक्रम
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध
| दुर्योधन और भीष्म का युद्ध विषयक वार्तालाप
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
| इरावान द्वारा शकुनि के भाइयों का वध
| अलम्बुष द्वारा इरावान का वध
| घटोत्कच और दुर्योधन का भयानक युद्ध
| घटोत्कच का दुर्योधन एवं द्रोण आदि वीरों के साथ युद्ध
| घटोत्कच की रक्षा के लिए भीमसेन का आगमन
| भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध
| दुर्योधन और भीमसेन तथा अश्वत्थामा और राजा नील का युद्ध
| घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन
| भीष्म की आज्ञा से भगदत्त का घटोत्कच से युद्ध हेतु प्रस्थान
| भगदत्त का घटोत्कच, भीमसेन और पांडव सेना के साथ युद्ध
| इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध
| अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध
| युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा
| दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध
| भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा
| दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था
| उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध
| विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन
| अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन
| अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध
| अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय
| अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध
| कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध
| द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध
| भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार
| कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| रक्तमयी रणनदी का वर्णन
| अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय
| अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय
| सात्यकि और भीष्म का युद्ध
| दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश
| शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय
| युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध
| भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन
| भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना
| नवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना
| उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध
| भीष्म-दुर्योधन संवाद
| भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार
| अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण
| दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध
| कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश
| कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध
| कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ
| भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण
| कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध
| कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| भीष्म का अद्भुत पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम
| अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना
| भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार
| अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना
| शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन
| भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना
| भीष्म की महत्ता
| अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना
| उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
| अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज