भीष्म की महत्ता

महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 120वें अध्याय मेंं 'भीष्म की महत्ता' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

धृतराष्ट्र का भीष्म के मारे जाने पर शोक जताना

धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय! भीष्म जी बलवान् और देवता के समान थे। उन्हों ने अपने पिता के लिये आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था। उस दिन उनके रथ से गिर जाने के कारण उनके सहयोग से वञ्चित हुए मेरे पक्ष के योद्धाओं की क्या दशा हुई? भीष्म जी ने अपनी दयालुता के कारण जब द्रुपदकुमार शिखण्डी पर प्रहार करने से हाथ खींच लिया, तभी मैंने यह समझ लिया था कि अब पाण्डवों के हाथ से अन्य कौरव भी अवश्य मारे जायगे मेरी समझ में इससे बढ़कर महान् दु:ख की बात और क्या होगी कि आज अपने ताऊ भीष्म के मारे जाने का समाचार सुनकर भी जीवित हूँ। मेरी बुद्धि बहुत ही खोटी है। संजय! निश्चय ही मेरा हृदय लोहे का बना हुआ है क्यों कि आज भीष्मजी के मारे जाने का समाचार सुनकर भी यह सैकड़ों टुकड़ों में विदीर्ण नहीं हो रहा है। उत्तम व्रत का पालन करने वाले संजय! विजय की अभिलाषा रखने वाले कुरुकुल सिंह भीष्म जब युद्ध में मारे गये, उस समय उन्होंने दूसरी कौन-कौन-सी चेष्टाएं की थीं? वह सब मुझसे कहो। रणभूमि में देवव्रत भीष्म, का मारा जाना मुझे बारंबार असह्य हो उठता है। जो भीष्म पूर्वकाल में जमदग्निमनंदन परशुराम के दिव्यास्त्रों द्वारा भी नहीं मारे जा सके, वे ही द्रुपदकुमार पाञ्चाल देशीय शिखण्डी के हाथ से मारे गये यह कितने दु:ख की बात है।

संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रश्न का उत्तर देना

संजय ने कहा-महाराज! कुरुकुल वृद्ध पितामह भीष्म सायंकाल में जब रणभूमि में गिरे, उस समय उन्होंने आपके पुत्रों को विषाद में डाल दिया और पाञ्चालों को हर्ष मनाने का अवसर दे दिया। वे पृथ्वी का स्प्रश किये बिना ही उस समय बाणशय्या पर सो रहे थे। भीष्म के रथ से गिरकर धरती पर पड़ जाने पर समस्तर प्राणियों में भयंकर हाहाकार मच गया। राजन्! कुरुकुल के युद्ध विजयी वीर भीष्म दोनों दलों के लिये सीमावर्ती वृक्ष के समान थे। उनके गिर जाने से उभय पक्ष की सेनाओं में जो क्षत्रिय थे, उनके मन में भारी भय समा गया। प्रजानाथ! जिनके कवच ओर ध्वज छिन्न-भिन्न हो गये थे, उन शांतनुनंदन भीष्म जी को उस अवस्था में देखकर कौरव और पाण्डव दोनों ही उन्हें घेरकर खड़े हो गये। उस समय आकाश में अंधकार छा गया। सूर्य की प्रभा फीकी पड़ गयी। शांतनुनंदन भीष्म के मारे जाने पर यह सारी पृथ्वी भयानक शब्द करने लगी। वहाँ सोये हुए पुरुषवर भीष्म को देखकर कुछ दिव्य‍ प्राणी कहने लगे, ब्रह्मज्ञानियों के शिरोमणि हैं, ये ब्रह्मण वेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं। ‘इन्हीं पुरुष सिंह ने पूर्वकाल में अपने पिता शांतनु को कामासक्त जानकर अपने आपको ऊध्वरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचारी) बना लिया। इस प्रकार सिद्धों और चारणों सहित ऋषिगण भरतकुल के महापुरुष भीष्म को बाणशय्या पर स्थित देख पूर्वोक्त बातें कहते थे।

भीष्म के मारे जाने पर कौरव सेना की स्थिती

आर्य! भरतवंशियों के पितामह शांतनुनंदन भीष्म के मारे जाने पर आपके पुत्रों को कुछ भी नहीं सूझता था। भारत! उनके मुख पर विषाद छा गया था। वे श्रीहीन और लज्जित हो नीचे की ओर मुंह लटकाये खडे़ थे। पाण्डव विजय पाकर युद्ध के मुहाने पर खडे़ थे और सब-के-सब सोने की जालियों से विभूषित बड़े-बड़े़ शङ्खों को बजा रहे थे। निष्पाप महाराज! जब हर्षातिरेकस सहस्रों बाजे बज रहे थे, उस समय हमने कुंतीकुमार महाबली भीमसेन को देखा। वे महाबल और पराक्रम से सम्पन्नत शत्रु को वेगपूर्वक मार देने के कारण अत्यंभत हर्ष के साथ नाच रहे थे।[1] उस समय कौरवों पर भयंकर मोह छा गया था। कर्ण और दुर्योधन भी बारंबार लंबी सांसे खींच रहे थे। कौरव पितामह भीष्म के इस प्रकार रथ से गिर जाने पर सर्वत्र हाहाकार मच गया। कहीं कोई मर्यादा नहीं रह गयी। भीष्म जी को रणभूमि में गिरा देख आपका वीर पुत्र पुरुषसिंह दु:शासन अपने भाई के भेजने पर अपनी ही सेना से घिरा हुआ बड़े वेग से द्रोणाचार्य की सेना की ओर दौड़ गया। उस समय वह कौरव-सेना को विषाद में डाल रहा था।

पांडव और कौरव योद्धाओं का भीष्म से मिलने जाना

महाराज! दु:शासन को आते देख समस्त कौरव सैनिक उसे चारों ओर से घेरकर खडे़ हो गये कि देखें, यह क्या कहता है। भरतश्रेष्ठम! दु:शासन ने द्रोणाचार्य से भीष्म के मारे जाने का समाचार बताया। वह अप्रिय बात सुनते ही द्रोणाचार्य मूर्च्छित हो गये। आर्य! सचेत होने पर प्रतापी द्रोणाचार्य ने शीघ्र ही अपनी सेनाओं को युद्ध से रोक दिया। कौरवों को युद्ध से लौटते देख पाण्डवों ने भी शीघ्रगामी अश्वों पर चढे़ हुए दूतो द्वारा सब ओर आदेश भेजकर अपने सैनिकों का भी युद्ध बंद करा दिया। बारी-बारी से सब सेनाओं के युद्ध से निवृत्त हो जाने पर सब राजा कवच खोलकर भीष्म के पास आये। तदनंतर लाखों योद्धा युद्ध विरत होकर जैसे देवता प्रजापति की सेवा में उपस्थित होते है, उसी प्रकार महात्मा भीष्म के पास आये। वे पाण्डव तथा कौरव बाण शय्या पर सोये हुए भरतश्रेष्ठ भीष्म की सेवा में पहुँचकर उन्हें प्रणाम करके खडे़ हो गये। पाण्डवों तथा कौरव जब प्रणाम करके उनके सामने खडे़ हुए, तब शांतनुनंदन धर्मात्मा भीष्म ने उनसे इस प्रकार कहा- ‘महाभाग नरेशगण! आप लोगों का स्वागत है। देवोपम महारथियों! आपका स्वागत है। मैं आप लोगों के दर्शन से बहुत संतुष्ट! हूँ।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 120 श्लोक 1-20
  2. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 120 श्लोक 21-50

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भीष्मवध पर्व
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