- महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 54वें अध्याय में 'भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध ' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
भीम तथा कलिंगदेशीय सैना के बीच युद्ध
संजय कहते हैं- महाराज! भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध करने के बाद तब कलिंगदेशीय समस्त क्षत्रियों ने कई हजार सैनिको के साथ आकर युद्ध के लिये उघत हो अमर्षशील भीमसेन को आगे बढ़ने से रोक दिया। राजन्! उस समय कलिंग-योद्धा भीमसेन पर शक्ति, गदा, खग, तोमर, ऋष्टि तथा फरसो की वर्षा करने लगे। वहाँ होती हुई उस भयंकर बाण-वर्षा को रोककर महाबली भीमसेन हाथ में गदा ले बड़े वेग से कलिंग-सेना में कुछ पड़े। उस सेना में घुसकर शत्रुमर्दन भीम ने पहले सात सौ वीरो को यमलोक पहुँचाया। फिर दो हजार कलिंगो को मृत्युलोक में भेज दिया। यह अद्धुत-सी घटना थी। इस प्रकार भीमसेन ने महारथी भीष्म की ओर देखते हुए कलिंगों की सेना को बार बार समर-भूमि में शीघ्रतापूर्वक विदीर्ण किया। उस रणभूमि में पाण्डुनन्दन भीम के द्वारा सवारों के मार दिये जाने पर बहुत-से मतवाले हाथी वायु के थपेडे़ खाये हुए बादलो के समान कौरव सेना में इधर-उधर भागते तथा अपने ही सैनिक को कुचलते हुए बाणो की व्यर्था से व्याकुल हो चीत्कार करने लगे। तदनन्तर महाबली महाबाहु भीमसेन ने खडग हाथ में लिये हुए अत्यन्त प्रसन्न हो खडे़ जोर से शंख बजाने लगे।[1] परंतप! उस शंखनाद के द्वारा उन्होंने सम्पूर्ण कलिंगा के हृदय में कम्पन मचा दिया और उन सब पर बड़ा भारी मोह छा गया राजन्! उस समरांगण में गजराज के समान अनेक मार्गो-पर विचरते और इधर-उधर दौड़ते हुए भीमसेन के भय से समस्त सैनिक और वाहन थर-थर कांपने लगे। उनके बार-बार उछलने से सबपर मोह छा गया। जैसे महान् तालाब किसी ग्राहके द्वारा मथित होने पर क्षुब्ध हो उठता है, उसी प्रकार वह सारी सेना भीमसेन के द्वारा बेरोक-टोक मथित होने पर भय से संत्रस्त हो कांपने लगी। अद्धुतकर्मा भीमसेन के द्वारा भयभीत कर दिये जाने पर कलिंग देश के समस्त योद्धा जब दल बनाकर भागने और भाग-भागकर पुनः लौटने लगे, तब पाण्डव-सेनापति द्रुपद-कुमार धृष्टद्युम्न ने अपने समस्त सैनिकों से कहा- ‘वीरो! (उत्साह के साथ) युद्ध करो’।[2]
सेनापति की बात सुनकर शिखण्डी आदि महारथी प्रहार कुशल रथियों की सेनाओं के साथ भीमसेन का ही अनुसरण करने लगे। तत्पश्चात पाण्डुनन्दन धर्मराज युधिष्ठिर मेघों की घटा के समान हाथियों की विशाल सेना साथ किये पीछे से आकर उन सबकी सहायता करने लगे। इस प्रकार द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न अपनी सारी सेनाओं को युद्ध के लिये करके श्रेष्ठ पुरुषों के साथ भीमसेन के पृष्ठ भाग की रक्षा का कार्य हाथ में लिया। जगत् में पांचालराज धृष्टद्युम्न के लिये भीष्म और सात्यकि को छोड़कर दूसरा कोई ऐसा पुरुष नही था, जो प्राणों से भी बढ़कर हो। शत्रुवीरो का नाश करने वाले वैरिविनाशक द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न महाबाहु भीमसेन को कलिंगो की सेवा में विचरते देखा। राजन्! उन्हे देखते ही परंतप धृष्टद्युम्न के हृदय में हर्ष की सीमा न रही। वे बारंबार गर्जना करने लगे। उन्होंने समरांगण में शंख बजाया और सिंहनाद किया। कबुतर के समान रंगवाले घोडे़ जिनके रथ में जोते जाते हैं, उन धृष्टद्युम्न के सुवर्णभूषित रथ में कचनार वृक्ष के चिह्न से युक्त ध्वजा फहराती देख भीमसेन को बड़ा आश्वासन मिला।
कलिंगो ने भीमसेन पर धावा किया, यह देखकर अनन्त आत्मबल से सम्पन्न धृष्टद्युम्न भीमसेन की रक्षा के लिये युद्ध स्थल में उनके पास आ पहुँचे। उस समरभूमि में मनस्वी वीर धृष्टद्युम्न और भीमसेन ने सात्यकि को भी दूर से आते देखा, अतः वे अधिक उत्साह से सम्पन्न हो कलिंगो से युद्ध करने लगे। विजयी वीरों में श्रेष्ठ पुरुषप्रवर सात्यकि ने बड़े वेग से वहाँ पहुँचकर भीमसेन और धृष्टद्युम्न के पृष्ठपोषण का कार्य सॅभाला। उन्होंने धनुष हाथ में लेकर भयंकर पराक्रम प्रकट करने के पश्चात् अपने रौद्र रूप का आश्रय ले कलिंगसेना की ओर दृष्टिपात किया। भीमसेन ने वहाँ एक भयंकर नदी प्रकट कर दी, जो कलिंग-सेना रूपी उद्रम स्थान से निकली थी। उसमें मांस और शोणित की ही कीच थी। वह नदी रक्त की ही धारा बहा रही थी। कलिंग और पाण्डव-सेना के बीच में बहने वाली उस रक्त की दुस्तर नदी को महाबली भीमसेन अपने पराक्रम से पार कर गये। राजन्! भीमसेन को उस रूप में देखकर आपके सैनिक पुकार-पुकारकर कहने लगे, यह साक्षात् काल ही भीमसेन के रूप में प्रकट होकर कलिंगों के साथ युद्ध कर रहा है।[2]
पांडव योद्धाओं तथा भीष्म का युद्ध
तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्म रणभूमि में उस कोलाहल को सुनकर अपनी सेना को सब और से व्युहबद्ध करके तुरन्त ही भीमसेन के पास आये। सात्यकि, भीमसेन तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ने एक साथ ही धावा किया। उन सब लोगों ने रणक्षेत्र में गंगानन्दन भीष्म को वेगपूर्वक घेरकर तीन-तीन भयंकर बाणों द्वारा उन्हें यथाशक्ति से पीड़ा पहुँचायी। उस समय आपके पितृतुल्य भीष्म ने वहाँ युद्ध के लिये प्रयत्न करने वाले उन सभी महाधनुधर योद्धाओं को सीधे जाने वाले तीन-तीन बाणों से बींधकर बदला चुकाया। तदनन्तर सहस्रो बाणों की वर्षा करके उन तीनों महारथियों को रोककर सोने के साज-बाज धारण करने वाले भीमसेन के घोड़ों को भीष्म ने अपने बाणों से मार डाला। अश्वो के मारे जाने पर भी उसी रथ पर खड़े हुए प्रतापी भीमसेन ने भीष्मजी के रथ पर बडे़ वेग से शक्ति चलायी। वह शक्ति अभी पास तक पहुँची ही न थी कि आपके पितृतुल्य भीष्म ने समरभूमि में उसके तीन टुकडे़ कर डाले और वह भूतल पर बिखर गयी। नरश्रेष्ठ! तब बलवान् भीमसेन पूर्णतः लोहे के सारतत्त्व (फौलाद) की बनी हुई भारी गदा हाथ में लेकर तुरन्त उस रथ से कुद पडे़। इधर सात्यकि ने भी भीमसेन का प्रिय करने की इच्छा से भीष्म के सारथि को तुरन्त ही अपने सायको द्वारा मार गिराया।। रथियों में श्रेष्ठ भीष्म सारथि के मारे जाने पर हवा में समान भागने वाले घोड़ों के द्वारा रणभूमि से बाहर कर दिये गये। राजन्! महान व्रतधारी भीष्म के रणभूमि से हट जाने पर घास-फूस के ढेर में लगी हुई आग के समान अपने तेज से प्रज्वलित हो रहे थे। भरतश्रेष्ठ! भीमसेन सम्पूर्ण कलिंगों का संहार करके सेना के मध्यभाग में ही खडे़ थे, परन्तु आपके सैनिकों में से कोई भी उनके पास जाने का साहस न कर सके। तत्पश्चात् रथियों में श्रेष्ठ धृष्टद्युम्न यशस्वी भीमसेन को अपने रथ पर चढ़ाकर सैनिकों के देखते-देखते अपने दल में ले गये।
सात्यकि द्वारा भीमसेन का हर्ष बढ़ाना
भरतश्रेष्ठ! वहाँ पांचालों तथा मत्स्यदेशीय नरेशों से पूजित हो भीमसेन धृष्टद्युम्न और सात्यकि को भुजाओं में भरकर दोनो से प्रसन्नतापूर्वक मिले। उस समय सत्यपराक्रमी यदुकुलसिंह सात्यकि ने धृष्टद्युम्न के सामने ही भीमसेन का हर्ष बढ़ाते हुए उनसे इस प्रकार कहा- वीरवर! बड़े सौभाग्य की बात है कि कलिंगराज भागुमान्, राजकुमार केतुमान, कलिंगवीर शक्रदेव तथा अन्य बहुसंख्यक कलिंग सैनिक आपके द्वारा युद्ध में मारे गये। 'आपने अकेले अपनी ही भुजाओं के बल और पराक्रम से कलिंगों के उस महान ब्यूह को रौंदकर मिट्टी में मिला दिया, जिसमें बहुत-से हाथी, घोड़े और रथ भरे हुए थे। उसके अधिकांश सैनिक संसार के महान पुरुषों में गिने जाने योग्य थे। अगणित धीर-वीर योद्धा उस महान् ब्यूह का सेवन करते थे'।। शत्रुओं का दमन करने वाले नरेश! ऐसा कहकर बड़ी भुजाओं वाले सात्यकि अपने रथ से कूदकर भीमसेन के रथ पर जा चढ़े और उनको हृदय से लगा लिया। तत्पश्चात् क्रोध में भरे हुए महारथी सात्यकि ने पुन: अपने रथपर बैठकर भीमसेन का बल बढ़ाते हुए आपके सैनिकों का संहार आरम्भ किया।
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 63-85
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 86-106
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