भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना

धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय उनसे युधिष्ठिर एवं अर्जुन के व्यूह सम्बंधी संवाद का वर्णन करते हैं और कहते हैं कि पांडवों ने दुर्योधन की सेना के समक्ष वज्र व्यूह का निर्माण किया है उस व्यूह में सेना के आगे भीम उपस्थित हैं और सभी सैनिक एवं अन्य राजा भी उन्हीं का अनुसरण करते हैं। भीम ही उस सेना की अध्यक्षता कर रहे हैं, जिसका उल्लेख महाभारत भीष्म पर्व में श्रीमद्भगवद्गीता पर्व के अंतर्गत 19वें अध्याय में निम्न प्रकार हुआ है[1]-

भीमसेन की अध्‍यक्षता में सेना का आगे बढ़ना

संजय कहते हैं- राजन! कौरवों को अपनी ओर आते देख पाण्‍डवों की वह विशाल सेना पहले तो भरी गंगा के समान स्थिर दिखायी दी; फिर उसमें धीरे-धीरे कुछ चेष्‍टा दृष्टिगोचर होने लगी। पाण्‍डव सेना में भीमसेन सबके आगे चलने वाले थे। उनके साथ पराक्रमी धृष्टद्युम्न, नकुल, सहदेव तथा चेदिराज धृष्‍टकेतु भी थे। तत्‍पश्चात राजा विराट अपने भाइयों और पुत्रों के साथ एक अक्षौहिणी सेना लेकर भीमसेन के पृष्ठभाग की रक्षा कर रहे थे। भीम के पहियों की रक्षा परम तेजस्‍वी माद्रीकुमार नकुल-सहदेव कर रहे थे। द्रौपदी के पांचों पुत्र तथा अभिमन्‍यु- ये वेगशाली वीर उनके पृष्ठभाग की रक्षा करते थे। पाञ्चालराजकुमार महारथी धृष्‍टद्युम्र अपनी सेना के चुने हुए शूरवीर एवं प्रधान रथी प्रभद्रकों के साथ उन सबकी रक्षा करते थे। भरतश्रेष्‍ठ! इन सबके पीछे अर्जुन द्वारा सुरक्षित शिखण्‍डी भीष्‍म का विनाश करने के लिये उद्यत हो आगे बढ़ रहा था। अर्जुन के पीछे महाबली सात्यकि थे। पाञ्चाल वीर युधामन्यु और उत्तमौजा अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा करते थे। चलते-फिरते पर्वतों के समान विशाल और मतवाले गजराजों की सेना के साथ कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर बीच की सेना में उपस्थित थे। महामना पराक्रमी पाञ्चालराज द्रुपद पाण्‍डवों के लिये एक अक्षौहिणी सेना के सहित राजा विराट के पीछे-पीछे चल रहे थे।

राजन! उनके रथों पर भाँति-भाँति के बेल-बूटों से विभूषित स्‍वर्णमण्डित विशाल ध्‍वज सूर्य और चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रहे थे। तदनंतर महारथी धृष्टद्युम्र अन्‍य लोगों को हटाकर स्‍वयं भाइयों और पुत्रों के साथ उपस्थित हो राजा युधिष्ठिर की रक्षा करने लगे। राजन! आपके तथा शत्रुओं के रथों पर जो बहुसंख्‍यक विशाल ध्वज फहरा रहे थे, उन सबको तिरस्‍कृत करके केवल अर्जुन के रथ पर एकमात्र महान कपि से उप‍लक्षित दिव्‍य ध्‍वज शोभा पाता था। भीमसेन की रक्षा के लिये उनके आगे-आगे हाथों में खड्ग, शक्ति तथा ऋष्टि लिये कई लाख पैदल सैनिक चल रहे थे। राजा युधिष्ठिर के पीछे वर्षाकाल के मेघों की भाँति तथा पर्वतों के समान ऊंचे-ऊंचे दस हजार गजराज जा रहे थे। उनके गण्‍डस्‍थल से फूटकर मद की धारा वह रही थी। वे सोने की जालदार झूलों से उद्दीप्‍त हो रहे थे। उनमें शौर्य भरा था। वे मेघों के समान मद की बूंदे बरसाते थे। उनसे कमल के समान सुगंध निकलती थी और वे सभी बहुमूल्‍य थे।

दुर्जय वीर महामनस्‍वी भीमसेन हाथ में परिघ के समान मोटी एवं भयंकर गदा लिये अपने साथ विशाल सेना को खींच लिये जा रहे थे। उस समय सूर्य की भाँति उनकी ओर देखना कठिन हो रहा था। वे आपकी सेना को संतप्‍त-सी कर रहे थे। निकट आने पर समस्‍त योद्धा उनकी ओर आंख उठाकर देखने में भी समर्थ न हो सके। यह वज्र नामक व्‍यूह सर्वथा भयरहित तथा सब ओर मुख वाला था। उसके ध्‍वज के निकट सुवर्णभूषित धनुष विद्युत के समान प्रकाशित होता था। गाण्‍डीव धारी अर्जुन के द्वारा ही वह भयंकर व्यूह सुरक्षित था। पाण्‍डव लोग जिस व्‍यूह की रचना करके आपकी सेना का सामना करने के लिये खड़े थे, वह उनके द्वारा सुरक्षित होने के कारण मनुष्‍य लोक में अजेय था। सूर्योदय के समय जब सभी सैनिक संध्‍योपासना कर रहे थे, बिना बादल के ही पानी की बूंदों के साथ हवा चलने लगी। उसके साथ मेघ की सी गर्जना भी होती थी। वहाँ सब ओर नीचे बालू और कंकड़ बरसाती हुई तीव्र वायु बह रही थी। उस समय इतनी धूल उड़ी कि जगत में घोर अंधकार छा गया। भरतश्रेष्‍ठ! पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बड़ी भारी उल्‍का गिरी और उदय होते हुए, सूर्य से टकरा कर बड़े जोर-की आवाज के साथ बिखर गयी।[1]

भरतभूषण! जब उभय-पक्ष की सेनाएं युद्ध के लिये पूर्णत: तैयार हो गयीं, उस समय सूर्य की प्रभा फीकी पड़ गयी और भारी आवाज के साथ धरती कांपने लगी। भरतश्रेष्‍ठ! उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो पृथ्‍वी विकट नाद करती हुई फटी जा रही है। राजन! सम्‍पूर्ण दिशाओं में अनेक बार वज्रपात के समान भयानक शब्‍द प्रकट हुई। तीव्र वेग से धूल की वर्षा होने लगी। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। सहसा वायु के वेग से ध्‍वज हिलने लगे। पताका-सहित वे ध्‍वज सूर्य के समान तेजस्‍वी जान पड़ते थे। उन्‍हें सोने के हार और सुंदर वस्त्रों से सजाया गया था। उनमें छोटी-छोटी घंटियों के साथ झालरें बंधी थीं, जिनके मधुर श‍ब्‍द सब ओर फैल रहे थे। इस प्रकार उन महान ध्‍वजों के शब्‍द से ताड़ के जंगलों की भाँति उस रणभूमि में सब ओर झन-झन की आवाज हो रही थी। इस प्रकार युद्ध से आनन्दित होने वाले पुरुषसिंह पाण्‍डव आपके पुत्र की वाहिनी के सामने व्‍यूह बनाकर खड़े थे और हमारे योद्धाओं की रक्‍त और मज्‍जा भी सुखाये देते थे। गदाधारी भीमसेन को आगे खड़ा देख हमारी सारी सेना भयभीत हो रही थी।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 19 श्लोक 19-39
  2. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 19 श्लोक 40-46

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भूमि पर्व
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भीष्मवध पर्व
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साथ युद्ध | इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध | अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध | युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति | दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा | दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध | भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा | दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था | उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध | विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन | अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन | अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध | अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय | अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध | कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध | द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध | भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार | कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | रक्तमयी रणनदी का वर्णन | अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय | अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय | सात्यकि और भीष्म का युद्ध | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश | शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय | युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध | भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन | भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना | अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना | नवें दिन के युद्ध की समाप्ति | कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा | कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना | उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ | शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण | शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध | भीष्म-दुर्योधन संवाद | भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार | अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण | दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध | कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश | कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध | कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ | भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण | कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध | कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | भीष्म का अद्भुत पराक्रम | उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम | अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना | भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार | अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना | शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन | भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना | भीष्म की महत्ता | अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना | उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद | अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना | अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद

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