कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन

महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 111वें अध्याय मेंं 'कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन' हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

सात्यकि का अलम्बुष और भगदत्त से युद्ध

संजय कहते हैं- राजन्! युद्धस्थल में कवचधारी सात्यकि को भीष्म से युद्ध करने के लिये उद्यत देख महाधनुर्धर राक्षस अलम्बुष ने आकर उन्हें रोका। राजन्! भरतनन्दन! यह देख सात्यकि ने अत्यन्त कुपित हो उस रणक्षेत्र में राक्षस अलम्बुष को हँसते हुए से नौ बाण मारे। राजेन्द्र! तब उस राक्षस ने भी अत्यन्त कुपित होकर मधुवंशी सात्यकि को नौ बाणों से पीड़ित किया। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले मधुवंशी सात्यकि का क्रोध बहुत बढ़ गया और समरभूमि में उन्होंने राक्षस पर बाण समूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। तदनन्तर राक्षस ने सत्यपराक्रमी महाबाहु सात्यकि को तीखे सायकों से बींध डाला और सिंह के समान गर्जना की। उस समय राक्षस के द्वारा रणक्षेत्र में रोके जाने और अत्यन्त घायल होने पर भी मधुवंशी तेजस्वी सात्यकि हँसने और गर्जना करने लगे। तब क्रोध में भरे हुए भगदत्त ने पैने बाणों द्वारा मधुवंशी सात्यकि को समरभूमि में उसी प्रकार पीड़ित किया, जैसे महाबत अंकुशों द्वारा महान गजराज को पीड़ा देता है। तब रथियों में श्रेष्ठ सात्यकि ने युद्ध में उस राक्षस को छोड़कर प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्त पर झुकी हुई गाँठवाले बहुत से बाण चलाये। यह देख प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्त सात्यकि के विशाल धनुष को एक सिद्धहस्त योद्धा की भाँति सौ धारवाले भल्ल के द्वारा काट डाला। तब शत्रुवीरों का हनन करने वाले सात्यकि ने दूसरा वेगवान धनुष लेकर पैंने बाणों द्वारा युद्ध में क्रुद्व हुए भगदत्त को बींध डाला।। इस प्रकार अत्यन्त घायल होने पर महाधनुर्धर भगदत्त अपने मुँह के दोनों कोने चाटने लगे। फिर उन्होंने उस महायुद्ध में कनक और वैदूर्य मणियों से विभूषित लोहे की बनी हुई सुदृढ़ एवं यमदण्ड के समान भयंकर शक्ति चलायी। उनके बाहुबल से प्रेरित होकर समरभूमि में सहसा अपने ऊपर गिरती हुई उस शक्ति के सात्यकि ने बाणों द्वारा दो टुकड़े कर दिये। तब वह शक्ति प्रभाहीन हुई बहुत बड़ी उल्का के समान सहसा भूमि पर गिर पड़ी। प्रजानाथ! भगदत्त की शक्ति को नष्ट हुई देख आपके पुत्र ने विशाल रथ सेना के साथ आकर सात्यकि को रोका।

वृष्णिवंशी महारथी सात्यकि को रथ सेना से घिरा हुआ देख दुर्योधन ने अत्यन्त कुपित होकर अपने समस्त भाइयों से कहा- कौरवों! तुम ऐसा प्रयत्न करो, जिससे इस समरांगण में आये हुए सात्यकि हमारे इस महान रथ समुदाय से जीवित न निकलने पावें। सात्यकि के मारे जाने पर मैं पाण्डवों की विशाल सेना को मरी हुई ही मानता हूँ। दुर्योधन की इस बात को मानकर कौरव महारथियों ने रणभूमि में भीष्म का सामना करने के लिये उद्यत हुए सात्यकि से युद्ध आरम्भ किया।

कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के मध्य द्वन्द्वयुद्ध

इसी प्रकार भीष्म का वध करने के लिए उद्यत होकर आते हुए अर्जुनकुमार अभिमन्यु को बलवान काम्बोजराज ने युद्ध के मैदान में आगे बढ़ने से रोक दिया। राजन्! नरेश्वर! काम्बोजराज ने झुकी हुई गाँठवाले अनेक बाणों द्वारा अभिमन्यु को घायल करके पुनः चौसठ बाणों से मारकर उन्हें गहरी चोट पहुँचायी। तदनन्तर समरागण में भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले काम्बोजराज सुदक्षिण ने अभिमन्यु को पुनः पाँच बाण मारे और नौ बाणों द्वारा उनके सारथि को भी घायल कर दिया।[1] जब शत्रुसूदन शिखण्डी ने गंगानन्दन भीष्म पर धावा किया था, उस समय उन दोनों ( अभिमन्यु और सुदक्षिण ) के संघर्ष में वहाँ बड़ा भारी युद्ध आरम्भ हो गया। बूढ़े राजा महारथी विराट और द्रुपद दुर्योधन की उस विशाल सेना को रोकते हुए अत्यन्त क्रोध में भरकर युद्धस्थल में भीष्म पर चढ़ आये।। तब रथियों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा रणभूमि में कुपित होकर आया। भारत! फिर अश्वत्थामा का विराट और द्रुपद के साथ भारी युद्ध छिड़ गया।

शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! राजा विराट ने संग्राम में शोभा पाने वाले प्रयत्नशील एवं महाधनुर्धर अश्वत्थामा को भल्ल नामक दस बाणों में घायल किया। उस समय द्रुपद ने भी तीन तीखे बाणों द्वारा अश्वत्थामा को घायल कर दिया। इस प्रकार प्रहार करते हुए उन दोनों महाबली नरेशों को अश्वत्थामा ने अनेक बाणों द्वारा बींध डाला। विराट और द्रुपद दोनों वीर भीष्म का वध करने के लिए उद्यत थे। राजन्! वहाँ उन दोनों बूढ़े नरेशों का हमने अद्भुत एवं महान पराक्रम देखा कि वे युद्ध में अश्वत्थामा के भयंकर बाणों का निवारण करते जा रहे थे। इसी प्रकार भीष्म पर चढ़़ाई करने वाले सहदेव को शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने सामने आकर रोका, मानो वन में किसी मतवाले हाथी पर मदोन्मत्त गजराज ने आक्रमण किया हो। शूरवीर कृपाचार्य ने समरभूमि में महारथी माद्रीकुमार सहदेव को सुवर्णभूषित सत्तर बाणों से तुरंत घायल कर दिया। तब माद्रीकुमार सहदेव ने भी अपने सायकों द्वारा उनके धनुष के दो टुकड़े कर दिये और धनुष कट जाने पर उन्हें नौ बाणों से घायल कर दिया। तदनन्तर भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले कृपाचार्य ने समरांगण में भार सहन करने में समर्थ दूसरा धनुष लेकर अत्यन्त हर्ष के साथ सहदेव की छाती में क्रोधपूर्वक दस तीखे बाण मारे। राजन्! इसी प्रकार पाण्डुकुमार सहदेव ने भी कुपित हो भीष्म के वध की इच्छा से अमर्षशील कृपाचार्य की छाती में अपने बाणों द्वारा प्रहार किया। उन दोनों का वह युद्ध अत्यन्त घोर एवं भयंकर हो चला।[2]

दूसरी ओर क्रोध में भरे हुए शत्रुसंतापी विकर्ण ने युद्ध के मैदान में महाबली भीष्म की रक्षा में तत्पर हो साठ बाणों द्वारा नकुल को घायल कर दिया। आपके बुद्धिमान पुत्र विकर्ण द्वारा अत्यन्त घायल होकर नकुल ने भी सतहत्तर बाणों से विकर्ण को क्षत-विक्षत कर दिया। जैसे गोशाला में दो साँड़ आपस में लड़ते हो, उसी प्रकार शत्रुओं को संताप देने वाले पुरुषसिंह वीर विकर्ण और नकुल भीष्म की रक्षा के लिये एक दूसरे पर घातक प्रहार कर रहे थे। उसी समय पराक्रमी दुर्मुख ने समरभूमि में भीष्म की रक्षा के लिये राक्षस घटोत्कच पर आक्रमण किया, जो युद्ध के मैदान में आपकी सेना का संहार करता हुआ आगे बढ़ रहा था। राजन्! उस समय शत्रुओं को संताप देने वाले दुर्मुख को क्रोध में भरे हुए हिडिम्बाकुमारी ने झुकी हुई गाँठवाले बाण से उसकी छाती में चोट पहुँचायी। तब वीर दुर्मुख ने हर्ष पूर्वक गर्जना करते हुए अपने तीखी नोकवाले बाणों द्वारा भीमसेन के पुत्र घटोत्कच को युद्ध के मुहाने पर साठ बाणों से बींध डाला।

इसी प्रकार भीष्म के वध की इच्छा से आते हुए रथियो में श्रेष्ठ धृष्टद्युम्न को महारथी कृतवर्मा ने रोक दिया।[2] कृतवर्मा ने द्रुपद कुमार को लोहे के बने हुए पाँच बाणों से बींधकर फिर तुरन्त ही पचास बाणों से घायल किया और कहा-खड़ा़ रह, खड़ा़ रह। इस प्रकार महाबाहु कृतवर्मा ने महारथी धृष्टद्युम्न को गहरी चोट पहुँचायी। राजन्! तब द्वारा ने भी कंकपत्र विभूषित सीधे जानेवाले तीखे एवं पैने नौ बाणौं से कृतवर्मा-को क्षत- विक्षत कर दिया। उस समय भीष्मजी के निमित्त उस महान संग्राम मे वृत्रासुर और इन्द्र के समान उन दोनों वीरों का घोर युद्ध होने लगा, जिसमें वे एक दूसरे से आगे बढ़ जाने के प्रयत्न में लगे थे। इसी तरह महारथी भीष्म की ओर आते हुए भीमसेन -पर भूरिश्रवा ने तुरन्त आक्रमण किया और कहा-- खड़ा रह, खड़ा रह। तदनन्तर सोमदत्त कुमार ने युद्ध स्थल मे सुवर्णमय पंख से युक्त अत्यन्त तीखे नाराच द्वारा भीमसेन की छाती में प्रहार किया। नृपश्रेष्ट! छाती मे लगे हुए उस बाण से प्रतापी भीमसेन वैसे ही सुशोभित हुए, जैसे पूर्वकाल में कार्तिकेय की शक्ति से आविद्ध होने पर क्रौच्च पर्वत की शौभा हुई थी। क्रौध में भरे हुए वे दोनों नरश्रेष्ठ युद्ध में एक दूसरे पर लोहार के द्वारा माँजकर साफ किये हुए सूर्य के समान तेजस्वी बाणों का प्रहार कर रहे थे। भीमसेन भीष्म के वध की इच्छा रखकर महारथी भूरिश्रवा पर चोट करते थे और भूरिश्रवा भीष्म की विजय चाहता हुआ पाण्डुकुमार भीमसेन पर प्रहार करता था। वे दोनों युद्ध में एक दूसरे के अस्त्रों का प्रतीकार करते हुए लड़ रहे थे।

दूसरी ओर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर को विशाल सेना के साथ भीष्म के सम्मुख आते देख द्रोणाचार्य ने रोक दिया; वहाँ उन दोनों पुरुषसिंहों में घोर युद्ध हुआ। राजन्! द्रोणाचार्य के रथ की घबराहट मेघ की गर्जना के समान जान पड़ती थी। आर्य! उसे सुनकर प्रभद्रक वीर काँप उठे। महाराज! उस युद्धस्थल में पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर की वह विशाल सेना द्रोण के द्वारा जब रोक दी गयी, तब प्रयत्न करने पर भी वह एक पग भी आगे न बढ़ सकी। जनेश्वर! दूसरी ओर भीष्म के प्रति प्रयत्न पूर्वक आक्रमण करने वाले क्रोध में भरे हुए चेकितान को रणभूमि में आपके पुत्र चित्रसेन ने रोक दिया। पराक्रमी चित्रसेन भीष्म की रक्षा के लिये पराक्रम दिखा रहा था। भारत! उसने पूरी शक्ति लगाकर चेकितान के साथ युद्ध किया। इसी प्रकार चेकितान ने भी चित्रसेन की गति रोक दी। उन दोनों की मुठभेड़ में वहाँ महान युद्ध होने लगा। भरतनन्दन! वहाँ बार बार रोके जाने पर भी अर्जुन ने आपके पुत्र को युद्ध से विमुख करके आपकी सेना को रौंद डाला। भारत! उस समय दुःशासन भी यह निश्चय करके कि ये किसी प्रकार हमारे भीष्म को मार न सकें, पूरी शक्ति लगा कर अर्जुन को रोकने का प्रयत्न करता रहा। राजन्! अर्जुन ने भी समर में दुःशासन को अपने बाणों से बहुत घायल किया। सीधे जाने वाले अर्जुन के बाणों से आपके पुत्र के बार बार घायल होने पर पार्थ के उस पराक्रम को देखकर आपकी सारी सेना व्यथित हो उठी। अमित तेजस्वी अर्जुन ने उसे बार बार पीड़ित किया। भरतनन्दन! उस संग्राम में आपके पुत्र की सारी सेना को जहाँ-तहाँ श्रेष्ठ रथियों ने बाणों से विद्ध करके मथ डाला था।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 111 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 111 श्लोक 21-40
  3. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 111 श्लोक 41-58

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