- महाभारत भीष्म पर्व में जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व के अंतर्गत नवम अध्याय में 'भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन' हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
धृतराष्ट्र के प्रश्न का संजय द्वारा उत्तर
संजय द्वारा रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन करने के बाद अब धृतराष्ट्र बोले- संजय! यह जो भारतवर्ष है, जिसमें यह राजाओं की विशाल वाहिनी युद्ध के लिये एकत्र हुई है, जहाँ का साम्राज्य प्राप्त करने के लिये मेरा पुत्र दुर्योधन ललचाया हुआ है, जिसे पाने के लिये पाण्डवों के मन में भी बड़ी इच्छा है तथा जिसके प्रति मेरा मन भी बहुत आसक्त हैं, उस भारतवर्ष का तुम यथार्थरूप से वर्णन करो क्योंकि इस कार्य के लिये मेरी दृष्टि में तुम्हीं सबसे अधिक बुद्धिमान् हो। संजय ने कहा- राजन्! आप मेरी बात सुनिये। पाण्डवों को इस भारतवर्ष के साम्राज्य का लोभ नहीं हैं। दुर्योधन तथा सुबलपुत्र शकुनि ही उसके लिये बहुत लुभाये हुए हैं। विभिन्न जनपदों के स्वामी जो दूसरे-दूसरे क्षत्रिय हैं, वे भी इस भारतवर्ष के प्रति गृध्र-दृष्टि लगाये हुए एक-दूसरे के उत्कर्ष को सहन नहीं कर पाते हैं। भारत! अब मैं यहाँ आपसे उस भारतवर्ष का वर्णन करूंगा, जो इन्द्रदेव और वैवस्वत मनु का प्रिय देश है। राजन्! दुर्धर्ष महाराज! वेननन्दन पृथु, महात्मा इक्ष्वाकु, ययाति, अम्बरषि, मान्घाता, नहुष, मुचुकुन्द, उशीनर-पुत्र शिबि, ॠषभ, इलानन्दन, पुरूरवा, राजा नृग, कुशिक, महात्मा गाधि, सोमक, दिलीप तथा अन्य जो महाबली क्षत्रिय नरेश हुए हैं, उन सभी को भारतवर्ष बहुत प्रिय रहा है। शत्रुदमन नरेश! मैं उसी भारतवर्ष का यथावत् वर्णन कर रहा हूँ। आप मुझसे जो कुछ पूछते या जानना चाहते हैं, वह सब बताता हूं, सुनिये।
भारतवर्ष के पर्वतों का वर्णन
इस भारतवर्ष में महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, ॠक्षवान्, विन्ध्य और पारियात्र- ये सात कुल पर्वत कहे गये हैं। राजन्! इनके आसपास और भी हजारों अविज्ञात पर्वत हैं, जो रत्न आदि सार वस्तुओं से युक्त, विस्तृत और विचित्र शिखरों से सुशोभित हैं। इनसे भिन्न और भी छोटे-छोटे अपरिचित पर्वत हैं, जो छोटे-छोटे प्राणियों के जीवन-निर्वाह का आश्रय बने हुए हैं। प्रभो! कुरुनन्दन! इस भारतवर्ष में आर्य, म्लेच्छ तथा संकर जाति के मनुष्य निवास करते हैं। वे लोग यहाँ की जिन बड़ी-बड़ी नदियों के जल पीते हैं,
नदियों का वर्णन
उनके नाम बताता हूं, सुनिये। गङ्गा, सिन्धु, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, बाहुदा, महानदी, शतद्रु, चन्द्रभागा, महानदी यमुना, दृषद्वती, विपाशा, विपापा, स्थूलबालु का, वेत्रवती, कृष्णवेणा, इरावती, वितस्ता, पयोष्णी, देविका,वेदस्मृता, वेदवत्ती, त्रिदिवा, इक्षुला, कृमि, करीषिणी, चित्रवाहा तथा चित्रसेना नदी। गोमती, धूतपापा, महानदी वन्दना, कौशिकी, त्रिदिवा, कृत्या, निचिता, लोहितारणी, रहस्या, शतकुम्भा, सरयू, चर्मण्वती, वेत्रवती, हस्तिसोमा, दिक, शरावती, पयोष्णी, वेणा, भीमरथी, कावेरी, चुलुका, वाणी और शतबला। नरेश्वर! नीवारा, अहिता, सुप्रयोगा, पवित्रा, कुण्डली, सिन्धु, राजनी, पुरमालिनी, पूर्वाभिरामा, वीरा (नीरा), भीमा, ओघवती, पाशाशिनी, पापहरा, महेन्द्रा, पाटलावती, करीषिणी, असिक्नी, महानदी कुशचीरा, मकरी, प्रवरा, मेना, हेमा, घृतवती, पुरावती, अनुष्णा, शैब्या, कापी, सदानीरा, अधृष्या और महानदी कुशधारा।
सदाकान्ता, शिवा, वीरमती, वस्त्रा, सुवस्त्रा, गौरी, कम्पना, हिरण्वती, वरा, वीरकरा, महानदी पंचमी, रथचित्रा, ज्योतिरथा, विश्वमित्रा, कपिञ्जला, उपेन्द्रा, बहुला, कुबीरा, अम्बुवाहिनी, विनदी, पिञ्जला, वेणा, महानदी तुंगवेणा, विदिशा, कृष्णवेणा, ताम्रा, कपिला, खलु, सुवामा, वेदाश्र्वा, हरिश्रावा, महापगा, शीघ्रा, पिच्छिला, भारद्वाजी नदी, कौशिकी नदी, शोणा, बाहुदा, चन्द्रमा, दुर्गा, चित्रशिला, ब्रह्मवेध्या, वृहद्वती, यवक्षा, रोही तथा जाम्बूनदी। सुनसा, तमसा, दासी, वसा, वराणसी, नीला, धृतवती, महानदी पर्णाशा, मानवी, वृषभा, ब्रह्ममेध्या, बृहद्वनि, राजन्! ये तथा और भी बहुत-सी नदियां हैं। भारत! सदा निरामया, कृष्णा, मन्दगा, मंदवाहिनी, ब्राह्मणी, महागौरी, दुर्गा, चित्रोत्पला, चित्ररथा, मञ्जुला, वाहिनी, मंदाकिनी, वैतरणी, महानदी कोषा, शुक्तिमती, अनंगा, वृषा, लोहित्या, करतोया, वृषका, कुमारी, ऋषिकुल्या, मारिषा, सरस्वती, मंदाकिनी, सुपुण्या, सर्वा आदि है, भारत! इन नदियों का जल भारतवासी पीते हैं।
राजन्! पूर्वोक्त सभी नदियां सम्पूर्ण विश्व की माताएं हैं, वे सबकी सब महान् पुण्य फल देने वाली है। इनके सिवा सैकड़ों और हजारों ऐसी नदियां हैं,जो लोगों के परिचय में नहीं आयी हैं। राजन्! जहाँ तक मेरी स्मरण शक्ति काम दे सकी है, उसके अनुसार मैंने इन नदियों के नाम बताये हैं।
टीका टिप्पणी व संदर्भ
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भीष्मवध पर्व
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| उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्द्व युद्ध
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| भीष्म द्वारा श्वेत का वध
| भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति
| युधिष्ठिर की चिंता और श्रीकृष्ण द्वारा उनको आश्वासन
| धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना
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| कौरव-पांडव सेना में शंखध्वनि और सिंहनाद
| भीष्म और अर्जुन का युद्ध
| धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का युद्ध
| भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध
| भीमसेन द्वारा शक्रदेव और भानुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध
| अभिमन्यु और अर्जुन का पराक्रम तथा दूसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडवों की व्यूह रचना
| उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़
| दुर्योधन और भीष्म का संवाद
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| कौरव-पांडव सेनाओं का व्यूह निर्माण
| भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध
| अभिमन्यु का पराक्रम
| धृष्टद्युम्न द्वारा शल के पुत्र का वध
| धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्ष के वीरों का युद्ध
| भीमसेन द्वारा गजसेना का संहार
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| सात्यकि और भूरिश्रवा की मुठभेड़
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| उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध
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| भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन
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| श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़
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| सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय
| धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध
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| सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ
| अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ
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| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध
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| घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन
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| इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध
| अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध
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| दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा
| दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध
| भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा
| दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था
| उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध
| विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन
| अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन
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| अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय
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| कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
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| अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय
| सात्यकि और भीष्म का युद्ध
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| शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय
| युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध
| भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन
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| कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना
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| भीष्म-दुर्योधन संवाद
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| कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध
| कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ
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| कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| भीष्म का अद्भुत पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम
| अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना
| भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार
| अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना
| शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन
| भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना
| भीष्म की महत्ता
| अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना
| उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
| अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद
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