भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम

महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 77वें अध्याय में 'भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य के पराक्रम' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

संजय द्वारा धृतराष्ट्र को समझाना

धृतराष्ट्र की चिंता देखकर संजय कहते हैं- राजन्! आपने अपने ही दोष से यह संकट प्राप्त किया है। भरश्रेष्ठ! जिन धर्म और अधर्म के सम्मिश्रण से उत्पन्न दोषों को आप देखते थे, उन्हें दुर्योधन नहीं देख सका था। प्रजानाथ! आपके अपराध से ही पहले द्यूतक्रीड़ा की घटना घटी थी। तथा आपके ही दोष से आज पाण्डवों के साथ युद्ध आरम्भ हुआ। आपने स्वयं ही जो पाप किया है, उनका फल आज आप ही भोग रहे हैं। राजन्! इहलोक अथवा परलोक में अपने किये हुए कर्म का फल अपने आपको ही भोगना पड़ता है, अतः आपको जैसे का तैसा प्राप्त हुआ है। राजन्! नरेश्वर! इस महान् संकट को पाकर भी स्थिरतापूर्वक युद्ध का यथावत् वृतान्त जैसा मैं बता रहा हूँ सुनिये।

भीमसेन का पराक्रम

वीर भीमसेन तीखे बाणों से आपकी विशाल सेना को विदीर्ण करके दुर्योधन के सभी भाइयों पर आक्रमण किया। दुःशासन, दुर्विष, दुःसह, दुर्मद, जय, जयत्सेन, विकर्ण, चित्रसेन, सुदर्शन, चारुचि, सुवर्मा, दुष्कर्ण तथा कर्ण- ये तथा और भी बहुत से आपके जो महारथी पुत्र समीप खड़े थे, उन्हें कुपित देखकर महारथी भीमसेन ने समरभूमि में भीष्म के द्वारा सुरक्षित विशाल कौरव से नाम में प्रवेश किया। भीमसेन को सेना के भीतर प्रविष्ट हुआ देख उन सब नरेशों ने आपस में कहा कि हम लोग इन्हें जीवित ही पकड़ कर बंदी बना लें। ऐसा निश्चय करके उन सब भाइयों ने कुन्तीकुमार भमसेन को घेर लिया, मानो प्रजा के संहारकाल में सूर्य देव को बड़े-बड़े क्रूर ग्रहों ने घेर रखा हो। कौरव सेना के भीतर पहुँच जाने पर पाण्डुनन्दन भीमसेन को तनिक भी भय नहीं हुआ, जैसे देवासुरसंग्राम में दानवों की सेना में घुसने पर देवराज इन्द्र को भय का स्पर्श नहीं होता है। प्रभो! तदनन्तर एकमात्र भीमसेन को उन पर तीव्र बाणों की वर्षा करते हुए सैकड़ों-हजारों रथियों ने युद्ध के लिये उद्यत होकर सब ओर से घेर लिया। शूरवीर भीमसेन आपके पुत्रों की तनिक भी परवा न करते हुए हाथी, घोड़े, एवं रथ पर बैठकर युद्ध करने वाले कौरवों के मुख्य-मुख्य योद्धाओं को समरभूमि में मारने लगे।

राजन! उन्हें कैद करने की इच्छा वाले क्षत्रियों के उस निश्चय को जानकर महामना भीमसेन ने उन सबके वध का विचार कर लिया। तदनन्तर पाण्डुनन्दन भीमसेन हाथ में गदा ले रथ को त्याग कर उस विशाल सेना में घूमकर उस महासामगरतुल्य सैन्यसमुदाय का विनाश करने लगे। भीमसेन की गदा के आघात से बड़े-बड़े विशालकाय गजराजों के कुम्भस्थल फट गये, पृष्ठभाग विदीर्ण हो गये तथा उनका एक-एक अंग छिन्न-भिन्न हो गया और उसी अवस्था में वे सवारों सहित धराशायी हो गये, मानो पर्वत ढह गये हों। भारत! उन्होंने उस रणक्षेत्र में सैकड़ों रथों को उनके सवारों सहित तिल-तिल करके तोड़ डाला। घोड़ों व घुड़सवारों तथा पैदलों की भी धज्जियाँ उड़ा दीं। राजन! उस युद्ध में हम लोगों ने भीमसेन का अद्भुत पराक्रम देखा, जैसे प्रलयकाल में यमराज हाथ में दण्ड लिये समस्त प्रजा का संहार करते हैं, उसी प्रकार वे अकेले आपके बहुसंख्यक योद्धाओं के साथ युद्ध कर रहे थे।

धृष्टद्युम्न और विशोक का वार्तालाप

भीमसेन के कौरव सेना में प्रवेश करने पर द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न भी द्रोणाचार्य को छोड़कर बड़े वेग से उस स्थान पर गये, जहाँ शकुनि युद्ध कर रहा था। वहाँ आपकी विशाल सेना को आगे बढ़ने से रोककर नरश्रेष्ठ धृष्टद्युम्न युद्धस्थल में भीमसेन के सूने रथ के पास जा पहुँचे।[1] महाराज! भीमसेन के सारथि विशोक को समरभूमि में अकेला खड़ा देख धृष्टद्युम्न मन ही मन बहुत दुखी और अचेत हो गये। वे लंबी साँस खींचते और आँसू बहाते हुए गद्रदकण्ठ से पूछने लगे-विशोक! मेरे प्राणों से भी अधिक प्यारे भीमसेन कहाँ हैं। इतना कहते-कहते वे बहुत दुखी हो गये। तब विशोक ने हाथ जोड़कर धृष्टद्युम्न से कहा- प्रभो! पराक्रमी और बलवान् पाण्डुनन्दन मुझे यहीं खड़ा करके कौरवों के इस सैन्यसागर में घुस गये हैं। ‘जाते समय पुरुषसिंह भीमसेन ने मुझसे प्रेमपूर्वक यह बात कही कि सूत! तुम दो घड़ी तक इन घोड़ों को रोककर यहीं मेरी प्रतीक्षा करो। जब तक कि ये जो लोग मेरा वध करने के लिये उद्यत हैं, इन्हें अभी मार न डालूँ। ‘तदनन्तर गदा हाथ में लिये महाबली भीमसेन को धावा करते देख समस्त सैनिकों के रोंगटे खड़े हो गये। ‘राजन! उस भयंकर एवं तुमुल युद्ध में भीमसेन ने इस महाव्यूह का भेदन करके इसके भीतर प्रवेश किया था। विशोक की यह बात सुनकर महाबली द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ने उस समरागंण में उनके सारथि से इस प्रकार कहा-‘सारथे! युद्धस्थल में भीमसेन को छोड़कर और पाण्डवों से स्नेह तोड़कर अब मेरे जीवन से कोई प्रयोजन नहीं है। ‘भीम एकमात्र युद्ध के पथ पर गये हैं और मैं भी युद्धस्थल में उपस्थित हूँ। ऐसी दशा में यदि भीमसेन के बिना ही लौट जाऊँ तो क्षत्रिय समाज मुझे क्या कहेगा। ‘जो अपने सहायकों को छोड़कर स्वयं कुशलपूर्वक घर को लौट आता है, उसका इन्द्र आदि देवता अनिष्ट करते हैं। ‘महाबली भीम मेरे सखा और सम्बन्धी हैं। वे हम लोगों के भक्त हैं और मैं भी उन शत्रुसूदन भीम का भक्त हूँ। ‘अतः मैं भी वहीं जाऊँगा जहाँ भीमसेन गये हैं। देखो जैसे इन्द्र दानवों का संहार करते हैं, उसी प्रकार मैं भी शत्रुसेना का विनाश कर रहा हूँ।[2]

भारत! ऐसा कहकर वीरवर धृष्टद्युम्न भीमसेन के बनाये हुए मार्गो से कौरव सेना के भीतर गये। उन मार्गो पर गदा के मारे हुए हाथी पड़े थे। उस समय कुछ दूर जाकर धृष्टद्युम्न ने शत्रुसेना को दग्ध करते हुए भीमसेन को देखा। जैसे आँधी वृक्षों को बलपूर्वक तोड़ देती या उखाड़ डालती है, उसी प्रकार भीमसेन भी रणभूमि में शत्रुओं का संहार कर रहे थे। समरागंण में भीमसेन के मारे हुए रथी, घुड़सवार, पैदल और सवारों सहित हाथी बड़े जोर से आर्तनाद कर रहे थे। आर्य! विचित्र कीर्ति से युद्ध करने वाले विद्वान् भीमसेन के द्वारा मारी जाती हुई आपकी सेना में हाहाकार मच गया। शत्रुओं का संताप देने वाले नरेश! तदनन्तर अस्त्रों के ज्ञाता समस्त कौरव-सैनिक भीमसेन को सब ओर से घेरकर अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करते हुए बिना किसी भय के उन पर चढ़ आये।

धृष्टद्युम्न द्वारा भीमसेन को सांत्वना देना

विश्व के विख्यात वीर बलवान् द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ने देखा- शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ पाण्डुनन्दन भीमसेन पर सब ओर से धावा हो रहा है। अत्यन्त संगठित हुई भयंकर सेना ने उन पर आक्रमण किया है। यह देखकर धृष्टद्युम्न भीमसेन को आश्वासन देते हुए उनके पास गये। उनका प्रत्येक अंग बाणों से क्षत-विक्षत हो रहा था। वे पैदल ही क्रोधरूपी विष उगल रहे थे और गदा हाथ में लिये प्रलयकाल के यमराज के समान जान पड़ते थे।[2] महामना धृष्टद्युम्न ने तुरंत ही उन्हें अपने रथ पर बिठा लिया और उनके शरीर में धँसे हुए बाणों को निकाल दिया। शत्रुओं के बीच में ही भीमसेन को हृदय से लगाकर उन्हें पूर्णतः सान्त्वना दी।

धृष्टद्युम्न का पराक्रम

वह महान् संघर्घ आरम्भ होने पर आपका पुत्र दुर्योधन भाइयों के पास आकर बोला-यह दुरात्मा द्रुपदपुत्र आकर भीमसेन से मिल गया है। हम सब लोग बहुत बड़ी सेना के साथ इस पर आक्रमण करें, जिससे हमारा और तुम्हारा यह शत्रु हम लोगों की इस सेना को हानि पहुँचाने का विचार न कर सके। दुर्योधन का यह कथन सुनकर आपके सभी वीर पुत्र, जो धृष्टद्युम्न का आगमन नहीं सह सके थे, बड़े भाई की आशा से प्रेरित हो प्रलयकाल के भयंकर केतुओं की भाँति हाथ में आयुध लिये धृष्टद्युम्न के वध के लिये उन पर टूट पड़े। उन्होंने अपने हाथों में धनुष बाण ले रखे थे और वे रथ के पहियों की घरघराहट के साथ-साथ धनुष की प्रत्यन्चा को भी कँपाते हुए उसकी टंकार फैला रहे थे। जैसे मेघ पर्वत पर जल की बूँदें बरसाते हैं, उसी प्रकार वे द्रुपद पुत्र पर बाणों की वृष्टि करने लगे। परंतु विचित्र युद्ध करने वाले धृष्टद्युम्न उस समरागंण में अपने पैने बाणों द्वारा उन सबको अत्यन्त घायल करके स्वयं तनिक भी व्यथित नहीं हुए। युद्ध में सामने खड़े हुए आपके वीर पुत्रों को आगे बढ़ते और प्रचण्ड होते देख नवयुवक महारथी द्रुपदकुमार ने उनके वध के लिये भयंकर मोहनास्त्र का प्रयोग किया। राजन्! जैसे युद्ध में देवराज इन्द्र दैत्यों पर कुपित होते हैं, उसी प्रकार आपके पुत्रों पर धृष्टद्युम्न का क्रोध बहुत बढ़ा हुआ था। उसके मोहनास्त्र के प्रयोग से अपनी चेतना और धैर्य खोकर आपके नरवीर पुत्र रणभूमि में मोहित हो गये। आपके पुत्रों को मोह से युक्त एवं मरे हुए के समान अचेत हुआ देख समस्त कौरव-सैनिक हाथी, घोड़े तथा रथसहित सब ओर भाग चले।

इसी समय दूसरी ओर शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने द्रुपद के साथ जाकर उनको तीन भयंकर बाणों द्वारा बींध डाला। राजन! तब रणभूमि में द्रोण के द्वारा अत्यन्त घायल हो राजा द्रुपद पहले के वैर का स्मरण करते हुए वहाँ से दूर हट गये। द्रुपद को जीतकर प्रतापी द्रोणाचार्य ने अपना शंख बजाया। उस शंखनाद को सुनकर समस्त सोमक क्षत्रिय अत्यन्त भयभीत हो गये। तदनन्तर शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ तेजस्वी द्रोणाचार्य ने सुना कि आपके पुत्र रणभूमि में मोहनास्त्र से मोहित होकर पड़े हैं। महाराज! यह सुनते ही महाधनुर्धर प्रतापी भारद्वाज-नन्दन द्रोणाचार्य तुरंत उस युद्धस्थल से चलकर वहाँ आ पहुँचे। आकर उन महारथी ने देखा कि धृष्द्युम्न और भीमसेन उस महायुद्ध में विचर रहे हैं और आपके पुत्र मोहाविष्ट होकर पड़े हुए हैं। तब उन्होंने प्रज्ञास्त्र लेकर उसके द्वारा मोहनास्त्र का नाश कर दिया। इससे आपके महारथी पुत्रों में पुनः चेतनाशक्ति लौट आयी। वे समरभूमि में पुनः युद्ध के लिये भीमसेन और द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न की ओर चले।

तब राजा युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बुलाकर कहा-तुम लोग पूरी शक्ति लगाकर युद्धस्थल में भीमसेन और धृष्टद्युम्न के पथ का अनुसरण करो। अभिमन्यु आदि बारह वीर महारथी कवच आदि से सुसज्जित हो भीमसेन और धृष्टद्युम्न का समाचार प्राप्त करें। मेरा मन उनके विषय में निश्चिन्त नहीं हो रहा है।[3] युधिष्ठिर की ऐसी आज्ञा पाकर पराक्रमपूर्वक युद्ध करने वाले वे पुरुषमानी समस्त शूरवीर ‘बहुत अच्छा, कहकर दोपहर होते-होते वहाँ से चल दिये। अभिमन्यु को आगे करके विशाल सेना से घिरे हुए पाँच केकयराजकुमार, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और पराक्रमी धृष्टकेतु ये शत्रुओं का दमन करने वाले शूरवीर सूची मुख नामक समर व्यूह बनाकर आपके पुत्रों की उस सेना को रणक्षेत्र में विदीर्ण करने लगे। जनेश्वर! आपकी सेना भीमसेन के भय से व्याकुल और धृष्द्युम्न के बाणों से मोहित हो रही थी। अतः आक्रमण करने वाले अभिमन्यु आदि महाधनुर्धर वीरों को वह रोकने में समर्थ न हो सकी। मद और मूर्छा के वशीभूत हुई मतवाली स्त्री की भाँति वह मार्ग में चुपचाप खड़ी रही। सुवर्णनिर्मित ध्वजाओं से सुशोभित होने वाले वे महाधनुर्धर कुलीन योद्धा धृष्टद्युम्न और भीमसेन की रक्षा के लिये बड़े वेग से दौडे़। वे दोनों महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न और भमसेन भी अभिमन्यु आदि वीरों को सहायता के लिये आते देख हर्ष और उत्साह में भर गये और आपकी सेना का विनाश करने लगे।

द्रोणाचार्य का पराक्रम

भारत! पाञ्चाल राजकुमार धृष्टद्युम्न ने धनुर्वेद में कुशल और समस्त विद्याओं के पारंगत विद्वान अपने गुरु द्रोणाचार्य को सहसा वहाँ आये देख आपके पुत्रों के वध की इच्छा छोड़ दी। फिर भीमसेन को केकय के रथ पर बिठाकर क्रोध में भरे हुए धृष्टद्युम्न ने अस्त्रविद्या के पारगामी विद्वान् द्रोणाचार्य पर धावा किया। तब शत्रुओं का नाश करने वाले प्रतापी द्रोणाचार्य ने कुपित होकर अपनी ओर आने वाले धृष्टद्युम्न के धनुष को एक बाण से तुरंत काट दिया। उसके बाद दुर्योधन के हित के लिये स्वामी के अन्न का विचार करते हुए धृष्टद्युम्न पर और भी सैकड़ों बाण चलाये। तत्पश्चात् शत्रुवीरों का हनन करने वाले धृष्टद्युम्न को दूसरा धनुष लेकर पत्थर पर रगड़कर तेज किये हुए सोने की पाँख वाले बीस बाणों से द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। तब शत्रुसूदन द्रोण ने पुनः धृष्टद्युम्न का धनुष काट दिया और चार उत्तम सायकों द्वारा उनके चारों घोड़ों को तुरंत ही भयानक यमलोक को भेज दिया। भारत! फिर एक भल्ल के द्वारा उनके सारथि को भी मृत्यु के हवाले कर दिया। घोड़ों और सारथि के मारे जाने पर महारथी महाबाहु धृष्टद्युम्न तुरंत उस रथ से कूद पड़े और अभिमन्यु के विशाल रथ पर आरूढ़ हो गये। तदनन्तर भीमसेन और धृष्टद्युम्न के देखते-देखते रथ, हाथी और घुड़सवारों सहित सारी पाण्डव सेना काँपने लगी। अमित तेजस्वी आचार्य द्रोण के द्वारा अपनी सेना का व्यूह भंग हुआ देख वे सम्पूर्ण महारथी प्रयत्न करने पर भी उसे रोकने में सफल न हो सके। द्रोणाचार्य के पैने बाणों से पीड़ित हुई वह सेना विक्षुब्ध महासागर के समान वही चक्कर काटने लगी। द्रोणाचार्य को अत्यन्त कुपित होकर शत्रुसेना पर टूटते और पाण्डव-सेना को भागते देख आपके सैनिकों को बड़ा हर्ष हुआ। भारत! आपके सभी योद्धा सब ओर से द्रोणाचार्य को साधुवाद देने लगे।[4]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 1-18
  2. 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 19-38
  3. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 39-55
  4. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 56-75

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का द्वन्द्व युद्ध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के दस पुत्रों का वध | अर्जुन का पराक्रम तथा पाँचवें दिन के युद्ध की समाप्ति | पांडवों द्वारा मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौंचव्यूह का निर्माण | धृतराष्ट्र की चिन्ता | भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम | उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध | भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय | अभिमन्यु आदि का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति | भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन | कौरव-पांडव सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष | श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़ | द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध तथा विराटपुत्र शंख का वध | शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध | सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय | धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध | इरावान द्वारा विन्द-अनुविन्द की पराजय | भगदत्त द्वारा घटोत्कच की पराजय | मद्रराज पर नकुल और सहदेव की विजय | युधिष्ठिर द्वारा राजा श्रुतायु की पराजय | महाभारत युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना | भूरिश्रवा से धृष्टकेतु तथा अभिमन्यु से चित्रसेन आदि की पराजय | सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ | अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण | युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ | भीमसेन का पुरुषार्थ | भीष्म और युधिष्ठिर का युद्ध | धृष्टद्युम्न के साथ विन्द-अनुविन्द का संग्राम | द्रोण आदि का पराक्रम और सातवें दिन के युद्ध की समाप्ति | व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा | व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध | भीष्म का रणभूमि में पराक्रम | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध | दुर्योधन और भीष्म का युद्ध विषयक वार्तालाप | कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार | इरावान द्वारा शकुनि के भाइयों का वध | अलम्बुष द्वारा इरावान का वध | घटोत्कच और दुर्योधन का भयानक युद्ध | घटोत्कच का दुर्योधन एवं द्रोण आदि वीरों के साथ युद्ध | घटोत्कच की रक्षा के लिए भीमसेन का आगमन | भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध | दुर्योधन और भीमसेन तथा अश्वत्थामा और राजा नील का युद्ध | घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन | भीष्म की आज्ञा से भगदत्त का घटोत्कच से युद्ध हेतु प्रस्थान | भगदत्त का घटोत्कच, भीमसेन और पांडव सेना के साथ युद्ध | इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध | अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध | युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति | दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा | दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध | भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा | दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था | उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध | विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन | अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन | अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध | अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय | अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध | कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध | द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध | भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार | कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | रक्तमयी रणनदी का वर्णन | अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय | अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय | सात्यकि और भीष्म का युद्ध | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश | शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय | युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध | भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन | भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना | अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना | नवें दिन के युद्ध की समाप्ति | कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा | कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना | उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ | शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण | शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध | भीष्म-दुर्योधन संवाद | भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार | अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण | दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध | कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना | द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश | कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध | कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ | भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण | कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध | कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन | भीष्म का अद्भुत पराक्रम | उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम | अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना | भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार | अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना | शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन | भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना | भीष्म की महत्ता | अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना | उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद | अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना | अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद

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