- संजय कहते हैं- महाराज! पितामह भीष्म के साथ युद्ध करते हुए अर्जुन को शिथिल होते देख कृष्ण युद्धभूमी में कूद जाते हैं और भीष्म को मारने के लिए उद्यत होते हैं। तब अर्जुन उन्हें पकड़कर रोकते हैं और शपथ लेते हुए भीष्म का वध करने की बात कहते हैं, जिसका वर्णन महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 106वें अध्याय में दिया गया है जो इस प्रकार हैं[1]-
विषय सूची
अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना
संजय कहते हैं- राजन! इधर महाबाहु अर्जुन श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे दौड़ रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों भुजाओं से उन्हें पकड़कर काबू में कर लिया। अर्जुन के द्वारा पकड़े जाने पर भी कमलनयन पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण उन्हें लिये दिये ही वेगपूर्वक आगे बढ़ने लगे। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन ने बलपूर्वक भगवान के चरणों को पकड़ लिया और इस प्रकार दसवें कदम तक जाते जाते वे किसी प्रकार हृषीकेश को रोकने में सफल हो सके। उस समय श्रीकृष्ण के नेत्र क्रोध से व्याप्त हो रहे थे और वे फुफकारते हुए सर्प के समान लम्बी साँस खींच रहे थे। उनके सखा अर्जुन आर्तभाव से प्रेमपूर्वक बोले- 'महाबाहो! लौटिये, अपनी प्रतिज्ञा को झूठी न कीजिये। केशव! आपने पहले जो यह कहा था कि मैं युद्ध नहीं करूँगा उस वचन की रक्षा कीजिये। अन्यथा माधव! लोग आपको मिथ्यावादी कहेंगे। केशव! यह सारा भार मुझ पर है। मैं अपने अस्त्र शस्त्र, सत्य और सुकृत की शपथ खाकर कहता हूँ कि पितामह भीष्म का वध करूँगा। शत्रुसूदन! मैं सब शत्रुओं का अन्त कर डालूंगा। देखिये, आज ही मैं पूर्ण चन्द्रमा के समान दुर्जय वीर महारथी भीष्म को उनके अन्तिम समय मे इच्छानुसार मार गिराता हूँ। महामना अर्जुन का यह वचन सुनकर उनके पराक्रम को जानते हुए भगवान श्रीकृष्ण मन ही मन अत्यन्त प्रसन्न हुए और ऊपर से कुछ भी न बोलकर पुनः क्रोधपूर्वक ही रथ पर जा बैठे।
भीष्म द्वारा पांडव सेना को खदेड़ना
पुरुषसिंह श्रीकृष्ण और अर्जुन को रथ पर बैठे देख शान्तनुनन्दन भीष्म ने पुनः उन पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो मेघ दो पर्वतों पर जल की धारा गिरा रहा हो। राजन! आपके ताऊ देवव्रत उसी प्रकार पाण्डव योद्धाओं के प्राण लेने लगे, जैसे ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी किरणों द्वारा सबके तेज हर लेते है। महाराज! जैसे पाण्डवों ने युद्ध में कौरव सेनाओं को खदेड़ा था, उसी प्रकार आपके ताऊ भीष्म ने भी पाण्डव सेनाओं को मार भगाया। घायल होकर भागे हुए सैनिक उत्साहशून्य और अचेत हो रहे थे। वे रणक्षेत्र में अनुपम वीर भीष्म जी की ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सके, ठीक उसी तरह, जैसे दोपहर में अपने तेज से तपते हुए सूर्य की ओर कोई भी देख नहीं पाता। महाराज! भीष्म के द्वारा मारे जाते हुए सैकड़ों और हजारों पाण्डव सैनिक समर में अलौकिक पराक्रम प्रकट करने वाले भीष्म को भय से पीड़ित होकर देख रहे थे। भारत! भागती हुई पाण्डव सेनाएँ कीचड़ में फँसी हुई गायों की भाँति किसी को अपना रक्षक नहीं पाती थीं। समरभूमि में बलवान भीष्म ने उन दुर्बल सैनिकों को चीटियों की भाँति मसल डाला। भारत! महारथी भीष्म अविचलभाव से खड़े होकर बाणों की वर्षा करते और पाण्डव पक्षीय नरेशों को संताप देते थे। बाणरूपी किरणावलियों से सुशोभित और सूर्य की भाँति तपते हुए भीष्म की ओर वे देख भी नहीं पाते थे। भीष्म पाण्डव सेना को जब इस प्रकार रौंद रहे थे, उसी समय सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य अस्तांचल को चले गये। उस समय परिश्रम से थकी हुई समस्त सेनाओं के मन में यही इच्छा हो रही थी कि अब युद्ध बंद हो जाये।
टीका टिप्पणी व संदर्भ
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| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
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