कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ

महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 114वें अध्याय मेंं 'कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

अर्जुन का कौरव पक्षों के साथ युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! उस समय रणक्षेत्र में विजय के लिए प्रयत्न करने वाले महारथी शल्य को अर्जुन ने झुकी हुई गांठवाले बाणों की वर्षा करके ढक दिया। उसके बाद सुशर्मा और कृपाचार्य को भी तीन-तीन बाणों से बींध डाला। राजेन्द्र! फिर समरागण में प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत्त, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण, कृतवर्मा, दुमर्षण तथा महारथी विन्द और अनुविन्द- इनमें से प्रत्येक को गीध की पांख से युक्त तीन-तीन बाणों द्वारा विशेष पीड़ा दी। तत्पश्चात् अतिरथी वीर अर्जुन ने युद्ध में आपकी सेना को बाण समूहों द्वारा अत्यन्त पीड़ित कर दिया।

कौरव महारथियों का भीम और अर्जुन के साथ युद्ध

भारत! चित्रसेन के रथ पर बैठे हुए जयद्रथ ने रणक्षेत्र में कुन्तीकुमार अर्जुन को घायल करके भीमसेन को भी बहुत-से सायकों द्वारा वेगपूर्वक बींध डाला। महाराज! फिर रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य तथा शल्य ने भी समरागण में मर्मस्थल को विदीर्ण करने वाले बाणों द्वारा अर्जुन को बारम्‍बार घायल किया। माननीय प्रजानाथ! चित्रसेन आदि आपके पुत्रों ने भी युद्वस्थल में तुरंत ही पांच-पांच तीखे बाणों द्वारा अर्जुन और भीमसेन को घायल कर दिया। उस समय वहाँ रथियों में श्रेष्ठ भरतकुलभूषण कुन्ती कुमार भीमसेन और अर्जुन ने समरभूमि में त्रिगतों की विशाल सेना को पीड़ित कर दिया। इधर सुशर्मा ने भी रणक्षेत्र में नौ शीघ्रगामी बाणों द्वारा अर्जुन को घायल करके पाण्डवों की विशाल सेना को भयभीत करते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसी प्रकार अन्य शूरवीर महारथियों ने भीमसेन और अर्जुन को सुवर्ण पंखयुक्त, सीधे जाने वाले पैने बाणों द्वारा बींध डाला। उन समस्त रथियों के बीच में खड़े होकर खेल-से करते हुए भरतभूषण उदार महारथी कुन्ती कुमार भीमसेन और अर्जुन विचित्र दिखायी देते थे। जैसे मांस की इच्छा रखने वाले दो मदोन्मत सिंह गौओं के झुंड में खड़े हुए हों, उसी प्रकार भीमसेन और अर्जुन उस रणभूमि में सुशोभित हो रहे थे। उन दोनों वीरों ने रणक्षेत्र में सैकड़ों शूरवीर मनुष्यों के धनुष और बाणों को बार बार छिन्न-भिन्न करके उनके मस्तकों को भी काट गिराया।

समरभूमि की स्थिती

उस माहसमर में बहुत से रथ टूट गये, सैकड़ों घोड़े मारे गये तथा कितने ही हाथी और हाथीसवार धराशायी हो गये। राजन! बहुत से रथी और घु़ड़सवार जहाँ-तहाँ चारों ओर मारे जाकर कांपते और छटपटाते हुए दिखायी देते थे। वहाँ मरकर गिरे हुए हाथियों, पैदल सिपाहियों, घोड़ों तथा टूटे हुए बहुत-से रथों द्वारा पृथ्वी आच्छादित हो गयी थी। भारत! अनेक टुकड़ों में कटकर गिरे हुए छत्रों, ध्वजाओं, स्वर्णमय दण्ड से विभूषित चामरों, फेंके हुए अंकुशों, चाबुकों, घण्टों और झूलों से वहाँ की भूमि एक गयी थी। केयूर, अंगद, हार तथा मणिजटित कुण्डल आदि आभूषणों, रंकुमृग के कोमल चर्म, वीरों की पगड़ियों, ऋष्टि आदि अस्त्रों तथा चामर और व्यजन आदि से भी वहाँ की धरती आच्छादित हो गयी थी। जहाँ-तहाँ गिरी हुई राजाओं की चन्दनचर्चित भुजाओं और जांघों से वह रणभूमि पट गयी थी।

अर्जुन का पराक्रम

महाराज! मैंने उस रणक्षेत्र में अर्जुन का अद्भुत पराक्रम यह देखा कि उन महाबली वीर ने शत्रुपक्ष के उन सब प्रमुख वीरों को बाणों द्वारा रोककर अनेकों वीरों को मार डाला था। आपका पुत्र महाबली दुर्योधन भीमसेन और अर्जुन का वह पराक्रम देखकर स्वयं भी गंगानन्दन भीष्म के रथ के समीप जा पहुँचा। उस समय कृपाचार्य, कृतवर्मा, सिन्धुराज जयद्रथ तथा अवन्ती के विन्द और अनुविन्द ने भी युद्ध को नहीं छोड़ा। तदनन्तर महाधनुर्धर भीमसेन तथा महारथी अर्जुन रणक्षेत्र में कौरवों की उस भयंकर सेना को जोर-जोर से खदेड़ने लगे। तब बहुत-से भूमिपाल मिलकर तुरंत ही अर्जुन के रथ पर मोर पंखयुक्त अनेक अयुत एवं अर्बुद बाणों की वर्षा करने लगे।[1] तब अर्जुन ने सब ओर से बाणों का जाल-सा बिछाकर उन महारथी भूमिपालों को रोक दिया और तुरंत ही उन्हें मृत्युलोक में पहुँचा दिया। तब महारथी शल्य ने क्रीड़ा करते हुए से कुपित हो समरभूमि में झुकी हुई गांठवाले भल्लों द्वारा अर्जुन की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। यह देख अर्जुन ने पांच बाणों से उनके धनुष और दस्ताने को काटकर तीखें सायकों द्वारा उनके मर्म स्‍थलमें गहरी चोट पहुँचायी। महाराज! फिर मद्रराज ने भी भार-साधन में समर्थ दूसरा धनुष लेकर रणभूमि मं अर्जुन पर रोषपूर्वक तीन बाणों द्वरा प्रहार किया। वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को पांच बाणों से घायल करके उन्‍होंने भीमसेन की भुजाओं तथा छाती में नौ बाण मारे।[2]

नरेश्वर! तदनन्तर दुर्योधन की आज्ञा पाकर द्रोण तथा महारथी मगध नरेश उसी स्थान पर आये, जहाँ पाण्डूकुमार अर्जुन और भीमसेन- ये दोनों महारथी दुर्योधन की विशाल सेना का संहार कर रहे थे। भरतश्रेष्ठ! मगधराज जयत्सेन ने युद्ध के मैदान में भयानक अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले भीमसेन को आठ पैने बाणों द्वारा बींध डाला। तब भीमसेन ने जयत्सेन को दस बाणों से बींधकर फिर पांच बाणों से घायल कर दिया और एक भल्ल मारकर उसके सारथी को भी रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। फिर तो उसके घबराये हुए घोड़े चारों ओर भागने लगे और इस प्रकार वह मगध देश का राजा सारी सेना के देखते-देखते रणभूमि से दूर हटा दिया गया। इसी समय द्रोणाचर्य ने अवसर देखकर लोहे के बने हुए पैंसठ पैने बाणों द्वारा भीमसेन को बींध डाला। भारत! तब युद्ध की श्‍लाघारखने वाले भीमसेन ने भी रणक्षेत्र में पिता के समान पूजनीयगुरु द्रोणाचार्य को पैंसठ भल्लों द्वारा घायल कर दिया। इधर अर्जुन ने लोहे के बने हुए बहुत से बाणों द्वारा सुशर्मा को घायल करके जैसे वायु महान मेघों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उसकी सेना की धज्जियां उड़ा दी। तब भीष्म ,राजा दुर्योधन और कौशल नरेश बृहद्वल- ये तीनों अत्यन्त कुपित होकर भीमसेन और अर्जुन पर चढ़ आये। इसी प्रकार शूरवीर पाण्डव तथा द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न ये रणक्षेत्र में मुंह फैलाये हुए यमराज के समान प्रतीत होने वाले भीष्म पर टूट पड़े।

शिखण्डी ने भरत कुल के पितामह भीष्म के निकट पहुँचकर उन महारथी भीष्म से सम्भावित भय को त्यागकर बड़े हर्ष के साथ उन पर धावा किया। युधिष्ठिर आदि कुन्तीपुत्र रणभूमि में शिखण्डी को आगे करके समस्त सृ़ंजयों को साथ ले भीष्म के साथ युद्ध करने लगे। इसी प्रकार आपके समस्त योद्धा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले भीष्म को युद्ध में आगे रखकर शिखण्डी आदि पाण्डव महारथियों का सामना करने लगे। तदनन्तर वहाँ भीष्म की विजय के उद्देश्य से कौरवों का पाण्डवों के साथ भयंकर युद्ध होने लगा। प्रजानाथ! उस युद्ध रूपी जूए में आपके पुत्रों की ओर से विजय के लिये भीष्म को ही दांव पर लगाया था। इस प्रकार वहाँ विजय अथवा पराजय के लिये रणद्यूत उपस्थित हो गया। राजेन्द्र! उस समय धृष्टद्युम्न ने अपनी समस्त सेनाओं को प्रेरणा देते हुए कहा- ‘श्रेष्ठ रथियो! गंगानन्दन भीष्म पर धावा करों। उनसे तनिक भी भय न मानो’। सेनापति का यह वचन सुनकर पाण्डवों की विशाल वाहिनी उस महासमर में प्राणों का मोह दौड़कर तुरंत ही भीष्म की ओर बढ़ चली। महाराज! रथियों में श्रेष्ठ भीष्म ने भी अपने उपर आती हुई उस विशाल सेना को युद्ध के लिए उसी प्रकार ग्रहण किया, जैसे तटभूमि को महासागर।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 114 श्लोक 1-24
  2. 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 114 श्लोक 25-47

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