दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था

महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 98वें अध्याय में 'दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा करने की व्यवस्था' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

दुर्योधन का युद्ध के लिये अपनी सेना तैयार करना

संजय कहते हैं- जनेश्वर! गान्धारीनन्दन! भीष्म द्वारा दुर्योधन को समझाना और कहना कि तुम चिंता मत करो दुर्योधन मैं कल बड़ा भीषण युद्ध करूँगा, जिसकी चर्चा लोग तब तक करते रहेंगे, जब तक कि यह पृथ्वी बनी रहेगी। भीष्म के ऐसा कहने पर आपका पुत्र दुर्योधन अपने उन गुरुजन के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम करने के पश्चात् अपने शिविर को चला गया। वहाँ आकर शत्रुओं का विनाश करने वाले राजा दुर्योधन ने लोगों के उस महान् समुदाय को तुरंत बिदा कर दिया और स्वयं शिविर के भीतर प्रवेश किया। भूपाल! वहाँ जाकर राजा ने सुख से रात बितायी और सवेरा होने पर उसने प्रातः काल उठकर राजाओं को यह आज्ञा दी- राजसिंहो! तुम सब लोग सेना को युद्ध के लिये तैयार करो, आज पितामह भीष्म रणभूमि में कुपित होकर सोमकों का संहार करेंगे।

राजन्! रात में दुर्योधन के अनेक प्रकार के विलाप को सुनकर भीष्म ने यह समझ लिया कि अब दुर्योधन मुझे युद्ध से हटाना चाहता है। इससे उनके मन में बड़ा खेद हुआ। भीष्म ने पराधीनता की भूरि-भूरि निन्दा करके रणभूमि में अर्जुन के साथ युद्ध करने का संकल्प लेकर दीर्घकाल तक विचार किया।

दुर्योधन का भीष्म की रक्षा की व्यवस्था करना

महाराज! गडंगानन्दन भीष्म ने क्या सोचा है? इस बात को संकेत से समझकर दुर्योधन ने दुःशासन से कहा- दुःशासन! तुम शीघ्र ही भीष्म की रक्षा करने वाले रथों को जोतकर तैयार कराओ। अपने पास कुल बाईस सेनाएँ है। उन सब को भीष्म की रक्षा में ही नियुक्त कर दो।आज वह अवसर प्राप्त हुआ है, जिसके लिये हम बहुत वर्षों से विचार करते आ रहे हैं। आज सेनासहित समस्त पाण्डवों का वध तथा राज्य का लाभ होगा। इस विषय में भीष्म की रक्षा को ही अपना प्रधान कर्तव्य समझता हूँ। वे सुरक्षित रहने पर हमारे सहायक होंगे और संग्राम भूमि में कुन्ती कुमारों का वध कर सकेंगे। विशुद्ध अन्तःकरण वाले महात्मा भीष्म ने मुझसे कहा है कि राजन्! मैं शिखण्डी को नहीं मार सकता; क्योंकि वह पहले स्त्री रूप में उत्पन्न हुआ था और इसलिये युद्ध में मुझे उसका परित्याग कर देना है। महाबाहो! सारा संसार यह जानता है कि मैंने पूर्वकाल में पिता का प्रिय करने की इच्छा से समृद्धिशाली राज्य तथा स्त्रियों का परित्याग कर दिया था। नरश्रेष्ठ! मैं कभी किसी स्त्री को अथवा जो पहले स्त्री रहा हो, उस पुरुष को भी किसी प्रकार युद्ध में मार नहीं सकता; यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। राजन्! तुमने भी सुना होगा, यह शिखण्डी पहले स्त्री रूप में पैदा हुआ था। यह बात मैंने तुमसे युद्ध की तैयारी के समय बता दी थी। इस प्रकार कन्यारूप में उत्पन्न हुई शिखण्डनी पहले स्त्री होकर अब पुरुष हो गयी है। वह पुरुष बना हुआ शिखण्डी यदि मुझसे युद्ध करेगा तो मैं उसके ऊपर किसी प्रकार भी बाण नहीं चलाऊँगा।[1] तात! पाण्डव पक्ष के दूसरे जो जो विजयाभिलाषी क्षत्रिय युद्ध में मुहाने पर मेरे सामने आयेंगे, उन सबका मैं वध करूँगा। भरतश्रेष्ठ दुःशासन! शस्त्रों के ज्ञाता गडंगान्दन भीष्म ने इस प्रकार मुझसे कहा है। अतः युद्धभूमि में सब प्रकार से भीष्म की रक्षा को ही मैं अपना मुख्य कर्तव्य मानता हूँ। यदि महायुद्ध में सिंह की रक्षा नहीं की जाय तो उसे एक भेडि़या मार सकता है, परंतु हम भेडि़ये के सदृश शिखण्डी हाथ से सिंह के समान भीष्म का वध नहीं होने देंगे। (अतः उनकी रक्षा के लिये सारी आवश्यक व्यवस्था करो।) मामा शकुनि, शल्य, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और विविंशति- ये सब लोग सावधान होकर गंडगानन्दन भीष्म की रक्षा करो। उनके सुरक्षित रहने पर ही हमारी विजय निश्चित है।[2]

कौरव सेना का भीष्म की रक्षा करना

उस समय दुर्योधन की यह बात सुनकर उन सब वीरों ने रथ की विशाल सेना द्वारा गडंगानन्दन भीष्म को सब ओर से घेर लिया। आपके सब पुत्र भी भीष्म को चारों ओर से घेरकर प्रसन्नतापूर्वक चले। वे उस समय भूलोक और स्वर्गलोक को भी कँपाते हुए पाण्डवों के मन में क्षोभ उत्पन्न कर रहे थे। वे समस्त कौरव महारथी सुशिक्षित रथों और हाथियों से भीष्म को घेरकर कवच आदि से सुसज्जित हो युद्ध के लिये खड़े हो गये। जिस प्रकार देवासुर-संग्राम के समय देवताओं ने वज्रधारी इन्द्र की रक्षा की थी, उसी प्रकार वे सब कौरव योद्धा महारथी भीष्म की रक्षा करने लगे।

तब राजा दुर्योधन ने अपने भाईयों से पुनः इस प्रकार कहा- दुःशासन! अर्जुन के रथ के बायें पहिये की रक्षा युधामन्यु और दाहिने पहिये की रक्षा उत्तमौजा करते हैं। इस प्रकार अर्जुन के ये दो रक्षक है और अर्जुन भी शिखण्डी की रक्षा करते हैं। अर्जुन से सुरक्षित और हम लोगों से उपेक्षित होकर शिखण्डी हमारे भीष्म को जिस प्रकार मार न सके, ऐसी व्यवस्था करो। बड़े भाई की यह बात सुनकर आपका पुत्र दुःशासन भीष्म को आगे करके सेना के साथ युद्ध के मैदान में गया। भीष्म को रथों के समूह से घिरा हुआ देख रथियों में श्रेष्ठ अर्जुन ने धृष्टद्युम्न से कहा- नरेश्वर! पाञ्चालराजकुमार! आज तुम पुरुषसिंह शिखण्डी को भीष्म के सामने उपस्थित करो। मैं उसकी रक्षा करूँगा।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 98 श्लोक 19-38
  2. 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 98 श्लोक 39-42

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