- महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 113वें अध्याय मेंं 'कौरवपक्ष के दस प्रमुख महारथियों के साथ अकेले घोरयुद्ध करते हुए भीमसेन के अद्भुत पराक्रम' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
कौरवपक्ष के प्रमुख महारथियों के साथ अकेले घोरयुद्ध करते हुए भीमसेन का अद्भुत पराक्रम
संजय कहते हैं- राजन! भगदत्त, कृपाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण तथा दुमर्षण- ये दस योद्धा भीमसेन के साथ युद्ध कर रहे थे। नरेश्वर! इनके साथ अनेक देशों से आयी हुई विशाल सेना मौजूद थी। ये समरभूमि में भीष्म के महान यश की रक्षा करना चाहते थे। शल्य ने नौ बाणों से भीमसेन को गहरी चोट पहुँचायी। फिर कृतवर्मा ने तीन और कृपाचार्य उन्हें नौ बाण मारे। आर्य! फिर लगे हाथ चित्रसेन, विकर्ण और भगदत्त ने भी दस-दस महाराज! तब शत्रुवीरों का नाश करने वाले पाण्डु कुमार वीर भीमसेन ने सम्पूर्ण जगत के उन समस्त राजाओं, प्रमुख वीरों तथा आपके महारथी पुत्रों को पृथक-पृथक बाण मारकर समरागण में घायल कर दिया। भारत! भीमसेन ने शल्य को सात और कृतवर्मा को आठ बाणों से बींध डाला। फिर कृपाचार्य के बाण सहित धनुष को बीच से ही काट दिया। धनुष कट जाने पर उन्होंने पुनः सात बाणों से कृपाचार्य को घायल किया। फिर बिन्द और अनुविन्द को तीन-तीन बाण मारे। तत्पश्चात् दुमर्षण को बीस, चित्रसेन को पांच, विकर्ण को दस तथा जयद्रथ को पांच बाणों से बींधकर भीमसेन ने बड़े हर्ष के साथ सिंहनाद किया और जयद्रथ को पुनः तीन बाणों से बींध डाला। जैसे महान गजराज अंकुशों से पीड़ित होने पर चिंघाड़ उठता है, उसी प्रकार उन दस बाणों से घायल होने पर शूरवीर भीमसेन ने युद्ध के मुहाने पर सिंह के समान गर्जना की। महाराज! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए प्रतापी भीमसेन ने रणक्षेत्र में कृपाचार्य को अनेक बाणों द्वारा घायल किया। इसके बाद प्रलयकालीन यमराज के समान तेजस्वी भीमसेन ने तीन बाणों द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ के घोड़ों तथा सारथी को यमलोक भेज दिया। तब उस अश्वहीन रथ से तुरन्त ही कूदकर महारथी जयद्रथ ने युद्धस्थल में भीमसेन के ऊपर बहुत-से तीखे बाण चलाये। माननीय भरतश्रेष्ठ! उस समय भीमसेन दो भल्ल मारकर महामना सिन्धुराज के धनुष को बीच से ही काट दिया। राजन! धनुष के कटने तथा घोड़ों और सारथि के मारे जाने पर रथहीन हुआ जयद्रथ तुरंत ही चित्रसेन के रथ पर जा बैठा। आर्य! वहाँ पाण्डुनन्दन भीमसेन ने रणक्षेत्र में यह अदभुत् कर्म किया कि सब महारथियों को बाणों से घायल करके रोक दिया और सब लोगों के देखते-देखते सिन्धुराज को रथहीन कर दिया। उस समय राजा शल्य भीमसेन के उस पराक्रम को न सह सके। उन्होंने लोहार के मांजे हुए पैने बाणों का संधान करके समरभूमि में भीमसेन को बींध डाला और कहा - ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। तत्पश्चात् कृपाचार्य, कृतवर्मा, पराक्रमी भगदत्त्त, अवन्ती के विन्द और अनुविन्द, चित्रसेन,दुमर्षण, विकर्ण और पराक्रमी सिन्धुराज जयद्रथ शत्रुओं का दमन करने वाले इन वीरों ने राजा शल्य की रक्षा के लिये भीमसेन को तुरंत ही घायल कर दिया। फिर भीमसेन भी उन सबको पांच-पांच बाणों से घायल करके तुरंत ही बदला लिया। इसके बाद उन्होंने शल्य को पहले सत्तर और फिर दस बाणों से बींध डाला।[1]
यह देख शल्य ने भीमसेन को पहले नौ बाणों से विदीर्ण करके फिर पांच बाणों द्वारा घायल किया। साथ ही एक भल्ल के द्वारा उनके सारथी के भी मर्म स्थानों में अधिक चोट पहुँचायी। उस समय प्रतापी भीमसेन ने अपने सारथी विशोक को अत्यन्त क्षत-विक्षत हुआ देख तीन बाणों से मद्रराज शल्य की भुजाओं तथा छाती में प्रहार किया। भगदत्त, वीरवर, कृतवर्मा तथा अन्य महाधनुर्धर वीरों को उन्होंने तीन-तीन सीधे जाने वाले सायकों द्वारा समर भूमि में मारा और सिंह के समान गर्जना की। तब उन सभी महाधनुर्धरों ने एक साथ प्रयत्न करके तीखे अग्र भागवाले तीन-तीन बाणों द्वारा युद्ध कुशल पाण्डुपुत्र भीम के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी। उनके द्वारा अत्यन्त घायल होने पर भी महाधनुर्धर भीमसेन बादलों की बरसायी हुई जल-धाराओं से पर्वत की भाँति तनिक भी व्यथित एवं विचलित नहीं हुए। राजन! तब क्रोध में भरे हुए पाण्डवों के महारथी महायशस्वी भीमसेन ने मद्रराज शल्य को तीन और कृपाचार्य को नौ बाणों द्वारा सब ओर से अत्यन्त घायल करके प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत्त को सैकड़ों बाणों द्वारा समरभूमि में बींध डाला। तत्पश्चात् सिद्धहस्त पुरुष की भाँति भीमसेन ने अत्यन्त तीखे क्षुरप्र के द्वारा महामना कृतवर्मा के बाणसहित धनुष को काट डाला। तब शत्रुओं को संताप देने वाले कृतवर्मा ने दूसरा धनुष लेकर भीमसेन की दोनों भौहों के मध्य भाग में नाराच के द्वारा प्रहार किया। तत्पश्चात् भीमसेन ने समरागण में लोहे के बने हुए नौ बाणों से राजा शल्य को बेधकर तीन बाणों से भगदत्त को, आठ से कृतवर्मा को और दो-दो बाणों द्वारा कृपाचार्य आदि रथियों को बींध डाला।[2]
राजन! फिर उन्होंने भी अपने तीखे बाणों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया। उन महारथियों द्वारा सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से पीड़ित किये जाने पर भी भीमसेन उन्हें तिनकों के समान मानकर व्यथारहित हो विचरण करने लगे। रथियों में श्रेष्ठ उन वीरों ने भी व्यग्रतारहित हो भीमसेन सैकड़ों और हजारों की संख्या में तीखे बाण चलाये। महामते! उस समर भूमि में वीर महारथी भगदत्त ने भीमसेन पर स्वर्णमय दण्ड से विभूषित एक महावेग शालिनी शक्ति चलायी। सिन्धु देश के राजा महाबाहु जयद्रथ ने तोमर और पट्टिश चलाया। राजन! कृपाचार्य ने शतघ्नी का प्रयोग किया तथा राजा शल्य ने युद्ध स्थल में एक बाण मारा। इनके सिवा दूसरे धनुर्धर वीरों ने भी भीमसेन को लक्ष्य करके बलपूर्वक पांच-पांच बाण चलाये। परंतु वायु पुत्र भीमसेन ने एक क्षुरप्र से जयद्रथ के चलाये हुए तोमर के दो टुकड़े कर दिये। फिर तीन बाण मारकर पट्टिश को तिल के डंठल के समान टूक-टूक कर डाला। तत्पश्चात् कंक पत्रयुक्त नौ बाणों द्वारा शतघ्नी का को छिन्न-भिन्न कर दिया। इसके बाद महारथी भीमसेन ने मद्रराज शल्य के चलाये हुए बाण को काटकर रणक्षेत्र में भगदत्त की चलायी हुई शक्ति के भी सहसा टुकड़े-टुकड़े कर डाले। तदनन्तर झुकी हुई गांठ वाले बहुत-से बाणों द्वारा अन्यान्य योद्धाओं के चलाये हुए भयंकर शरसमूहों को भी युद्ध की श्लाघा रखने वाल भीमसेन ने काटकर एक-एक के तीन-तीन टुकड़े कर दिये। इस प्रकार शत्रुओं के अस्त्र-शस्त्रों का निवारण करके भीमसेन ने उन सभी महाधनुर्धर वीरों को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया।[2]
अर्जुन का शत्रुओं से युद्ध
तब उस महासमर में महारथी भीमसेन को, जो समर भूमि में सायकों द्वारा शत्रुओं का संहार करते हुए उनके साथ युद्ध कर रहे थे, देखकर रथ के द्वारा अर्जुन भी वहीं आ पहुँचे। उन दोनों महामनस्वी पाण्डव बन्धुओं को एकत्र हुआ देख आपकी सेना के श्रेष्ठ पुरुषों ने वहाँ अपनी विजय की आशा त्याग दी। भरतनन्दन! उस रणक्षेत्र में भीम जिनके साथ युद्ध कर रहे थे, आपके पक्ष के उन दस महारथी वीरों के सामने भीष्म के वध की इच्छा रखने वाले अर्जुन भी शिखण्डी को आगे किये आ पहुँचे। राजन! जो लोग रणक्षेत्र में भीमसेन के साथ युद्ध करते हुए खड़े थे, उन सबको अर्जुन ने भीम का प्रिय करने की इच्छा से अच्छी तरह घायल कर दिया। तब राजा दुर्योधन ने अर्जुन और भीमसेन दोनों के वध के लिये सुशर्मा को भेजा। भेजते समय उसने कहा- ‘सुशर्मन्! तुम विशाल सेना के साथ शीघ्र जाओ और अर्जुन तथा भीमसेन इन दोनों पाण्डु कुमारों को मार डालो।’ दुर्योधन की यह बात सुनकर प्रस्थला के स्वामी त्रिगर्तराज सुशर्मा ने रणक्षेत्र में धावा करके भीमसेन और अर्जुन दोनों धनुर्धर वीरों को अनेक सहस्र रथों द्वारा सब ओर से घेर लिया। उस समय अर्जुन का शत्रुओं के साथ घोर युद्ध होने लगा।[3]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 113 श्लोक 1-24
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 113 श्लोक 25-44
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 113 श्लोक 45-52
सम्बंधित लेख
महाभारत भीष्म पर्व में उल्लेखित कथाएँ
जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
कुरुक्षेत्र में उभय पक्ष के सैनिकों की स्थिति
| कौरव-पांडव द्वारा युद्ध के नियमों का निर्माण
| वेदव्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान
| वेदव्यास द्वारा भयसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों का वर्णन
| वेदव्यास द्वारा विजयसूचक लक्षणों का वर्णन
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र से भूमि के महत्त्व का वर्णन
| पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन
| सुदर्शन द्वीप के वर्ष तथा शशाकृति आदि का वर्णन
| उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन
| रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन
| भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन
| भारतवर्ष के जनपदों के नाम तथा भूमि का महत्त्व
| युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
भूमि पर्व
संजय द्वारा शाकद्वीप का वर्णन
| कुश, क्रौंच तथा पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन
| राहू, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन
श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
संजय का धृतराष्ट्र को भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाना
| भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप
| धृतराष्ट्र का संजय से भीष्मवध घटनाक्रम जानने हेतु प्रश्न करना
| संजय द्वारा युद्ध के वृत्तान्त का वर्णन आरम्भ करना
| दुर्योधन की सेना का वर्णन
| कौरवों के व्यूह, वाहन और ध्वज आदि का वर्णन
| कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों का वर्णन
| अर्जुन द्वारा वज्रव्यूह की रचना
| भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना
| कौरव-पांडव सेनाओं की स्थिति
| युधिष्ठिर का विषाद और अर्जुन का उन्हें आश्वासन
| युधिष्ठिर की रणयात्रा
| अर्जुन द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति
| अर्जुन को देवी दुर्गा से वर की प्राप्ति
| सैनिकों के हर्ष तथा उत्साह विषयक धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
| कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों तथा शंखध्वनि का वर्णन
| स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद
| कृष्ण द्वारा अर्जुन का उत्साहवर्धन एवं सांख्ययोग की महिमा का प्रतिपादन
| कृष्ण द्वारा कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञ की स्थिति और महिमा का प्रतिपादन
| कर्तव्यकर्म की आवश्यकता का प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालन की महिमा का वर्णन
| कामनिरोध के उपाय का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषों के आचरण एवं महिमा का वर्णन
| विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन
| सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं ध्यानयोग का वर्णन
| निष्काम कर्मयोग का प्रतिपादन और आत्मोद्धार के लिए प्रेरणा
| ध्यानयोग एवं योगभ्रष्ट की गति का वर्णन
| ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन
| कृष्ण का अर्जुन से भगवान को जानने और न जानने वालों की महिमा का वर्णन
| ब्रह्म, अध्यात्म तथा कर्मादि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
| कृष्ण द्वारा भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गों का प्रतिपादन
| ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| प्रभावसहित भगवान के स्वरूप का वर्णन
| आसुरी और दैवी सम्पदा वालों का वर्णन
| सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन
| भगवद्भक्ति की महिमा का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अर्जुन से शरणागति भक्ति के महत्त्व का वर्णन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूति और योगशक्ति का वर्णन
| कृष्ण द्वारा प्रभावसहित भक्तियोग का कथन
| कृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का पुन: वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण से विश्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना
| कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन
| अर्जुन द्वारा कृष्ण के विश्वरूप का देखा जाना
| अर्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति और प्रार्थना
| कृष्ण के विश्वरूप और चतुर्भुजरूप के दर्शन की महिमा का कथन
| साकार और निराकार उपासकों की उत्तमता का निर्णय
| भगवत्प्राप्ति वाले पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन
| प्रकृति और पुरुष का वर्णन
| ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन
| सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन
| भगवत्प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुषों के लक्षणों का वर्णन
| संसारवृक्ष और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन
| प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप और पुरुषोत्तम के तत्त्व का वर्णन
| दैवी और आसुरी सम्पदा का फलसहित वर्णन
| शास्त्र के अनुकूल आचरण करने के लिए प्रेरणा
| श्रद्धा और शास्त्र विपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन
| आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद की व्याख्या
| ओम, तत् और सत् के प्रयोग की व्याख्या
| त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन
| भक्तिसहित निष्काम कर्मयोग का वर्णन
| फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन
| उपासना सहित ज्ञाननिष्ठा का वर्णन
| भक्तिप्रधान कर्मयोग की महिमा का वर्णन
| गीता के माहात्म्य का वर्णन
भीष्मवध पर्व
युधिष्ठिर का भीष्म, द्रोण आदि से अनुमति लेकर युद्ध हेतु तैयार होना
| कौरव-पांडवों के प्रथम दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्द्व युद्ध
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध
| भीष्म के साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध
| शल्य द्वारा उत्तरकुमार का वध और श्वेत का पराक्रम
| विराट के पुत्र श्वेत का महापराक्रम
| भीष्म द्वारा श्वेत का वध
| भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति
| युधिष्ठिर की चिंता और श्रीकृष्ण द्वारा उनको आश्वासन
| धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना
| कौरव सेना की व्यूह रचना
| कौरव-पांडव सेना में शंखध्वनि और सिंहनाद
| भीष्म और अर्जुन का युद्ध
| धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का युद्ध
| भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध
| भीमसेन द्वारा शक्रदेव और भानुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कई गजराजों और केतुमान का वध
| भीमसेन द्वारा कौरव सेना के असंख्य सैनिकों का वध
| अभिमन्यु और अर्जुन का पराक्रम तथा दूसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडवों की व्यूह रचना
| उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों का पराक्रम और कौरव सेना में भगदड़
| दुर्योधन और भीष्म का संवाद
| भीष्म का पराक्रम
| कृष्ण का भीष्म को मारने के लिए उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना की पराजय और तीसरे दिन के युद्ध की समाप्ति
| कौरव-पांडव सेनाओं का व्यूह निर्माण
| भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध
| अभिमन्यु का पराक्रम
| धृष्टद्युम्न द्वारा शल के पुत्र का वध
| धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्ष के वीरों का युद्ध
| भीमसेन द्वारा गजसेना का संहार
| भीमसेन का पराक्रम
| सात्यकि और भूरिश्रवा की मुठभेड़
| भीमसेन और घटोत्कच का पराक्रम
| कौरवों की पराजय तथा चौथे दिन के युद्ध की समाप्ति
| धृतराष्ट्र-संजय प्रसंग में दुर्योधन का भीष्म से पांडवों की विजय का कारण पूछना
| भीष्म का ब्रह्मा द्वारा की हुई भगवत-स्तुति का कथन
| नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुन की महिमा का प्रतिपादन
| भगवान श्रीकृष्ण की महिमा
| ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन की महत्ता
| कौरवों द्वारा मकरव्यूह तथा पांडवों द्वारा श्येनव्यूह का निर्माण
| भीष्म और भीमसेन का घमासान युद्ध
| भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओं का घमासान युद्ध
| कौरव-पांडव सेनाओं का परस्पर घोर युद्ध
| कौरव-पांडव योद्धाओं का द्वन्द्व युद्ध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के दस पुत्रों का वध
| अर्जुन का पराक्रम तथा पाँचवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| पांडवों द्वारा मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौंचव्यूह का निर्माण
| धृतराष्ट्र की चिन्ता
| भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का संकुल युद्ध
| भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| अभिमन्यु आदि का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति
| भीष्म द्वारा दुर्योधन को आश्वासन
| कौरव-पांडव सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
| श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरव सेना में भगदड़
| द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध तथा विराटपुत्र शंख का वध
| शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष की पराजय
| धृष्टद्युम्न और दुर्योधन तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध
| इरावान द्वारा विन्द-अनुविन्द की पराजय
| भगदत्त द्वारा घटोत्कच की पराजय
| मद्रराज पर नकुल और सहदेव की विजय
| युधिष्ठिर द्वारा राजा श्रुतायु की पराजय
| महाभारत युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना
| भूरिश्रवा से धृष्टकेतु तथा अभिमन्यु से चित्रसेन आदि की पराजय
| सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ
| अर्जुन का पराक्रम और पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| युधिष्ठिर का शिखण्डी को उपालम्भ
| भीमसेन का पुरुषार्थ
| भीष्म और युधिष्ठिर का युद्ध
| धृष्टद्युम्न के साथ विन्द-अनुविन्द का संग्राम
| द्रोण आदि का पराक्रम और सातवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं की रणयात्रा
| व्यूहबद्ध कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध
| भीष्म का रणभूमि में पराक्रम
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध
| दुर्योधन और भीष्म का युद्ध विषयक वार्तालाप
| कौरव-पांडव सेना का घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
| इरावान द्वारा शकुनि के भाइयों का वध
| अलम्बुष द्वारा इरावान का वध
| घटोत्कच और दुर्योधन का भयानक युद्ध
| घटोत्कच का दुर्योधन एवं द्रोण आदि वीरों के साथ युद्ध
| घटोत्कच की रक्षा के लिए भीमसेन का आगमन
| भीम आदि शूरवीरों के साथ कौरवों का युद्ध
| दुर्योधन और भीमसेन तथा अश्वत्थामा और राजा नील का युद्ध
| घटोत्कच की माया से कौरव सेना का पलायन
| भीष्म की आज्ञा से भगदत्त का घटोत्कच से युद्ध हेतु प्रस्थान
| भगदत्त का घटोत्कच, भीमसेन और पांडव सेना के साथ युद्ध
| इरावान के वध से अर्जुन का दु:खपूर्ण उद्गार
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध
| अभिमन्यु और अम्बष्ठ का युद्ध
| युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन और आठवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| दुर्योधन की शकुनि तथा कर्ण आदि के साथ पांडवों पर विजय हेतु मंत्रणा
| दुर्योधन का भीष्म से पांडवों का वध अथवा कर्ण को युद्ध हेतु आज्ञा देने का अनुरोध
| भीष्म का दुर्योधन को अर्जुन का पराक्रम बताना और भयंकर युद्ध की प्रतिज्ञा
| दुर्योधन द्वारा भीष्म की रक्षा की व्यवस्था
| उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूह रचना तथा घमासान युद्ध
| विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन
| अभिमन्यु के पराक्रम से कौरव सेना का युद्धभूमि से पलायन
| अभिमन्यु तथा द्रौपदी के पुत्रों का अलम्बुष से घोर युद्ध
| अभिमन्यु द्वारा अलम्बुष की पराजय
| अर्जुन के साथ भीष्म का युद्ध
| कृपाचार्य, द्रोणाचार्य तथा अश्वत्थामा के साथ सात्यकि का युद्ध
| द्रोणाचार्य और सुशर्मा के साथ अर्जुन का युद्ध
| भीमसेन द्वारा रणभूमि में गजसेना का संहार
| कौरव-पांडव उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| रक्तमयी रणनदी का वर्णन
| अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों की पराजय
| अभिमन्यु से चित्रसेन की पराजय
| सात्यकि और भीष्म का युद्ध
| दुर्योधन द्वारा दु:शासन को भीष्म की रक्षा का आदेश
| शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय
| युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध
| भीष्म द्वारा पराजित पांडव सेना का पलायन
| भीष्म को मारने के लिए कृष्ण का उद्यत होना
| अर्जुन द्वारा उद्यत हुए कृष्ण को रोकना
| नवें दिन के युद्ध की समाप्ति
| कृष्ण व पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| कृष्णसहित पांडवों का भीष्म से उनके वध का उपाय पूछना
| उभयपक्ष की सेना का रण प्रस्थान व दसवें दिन के युद्ध का प्रारम्भ
| शिखण्डी को आगे कर पांडवों का भीष्म पर आक्रमण
| शिखंडी एवं भीष्म का युद्ध
| भीष्म-दुर्योधन संवाद
| भीष्म द्वारा लाखों पांडव सैनिकों का संहार
| अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखंडी का भीष्म पर आक्रमण
| दु:शासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध
| कौरव-पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देना
| द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश
| कौरव पक्ष के दस महारथियों के साथ भीम का घोर युद्ध
| कौरव महारथियों के साथ भीम और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ
| भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण
| कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध
| कौरव-पांडव महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन
| भीष्म का अद्भुत पराक्रम
| उभय पक्ष की सेनाओं का युद्ध तथा दु:शासन का पराक्रम
| अर्जुन के द्वारा भीष्म का मूर्च्छित होना
| भीष्म द्वारा पांडव सेना का भीषण संहार
| अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना
| शरशय्या पर स्थित भीष्म के पास ऋषियों का आगमन
| भीष्म द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा कर प्राण धारण करना
| भीष्म की महत्ता
| अर्जुन द्वारा भीष्म को तकिया देना
| उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिर में जाना एवं कृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
| अर्जुन की प्रसंशा कर भीष्म का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| भीष्म और कर्ण का रहस्यमय संवाद
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज