- महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 96वें अध्याय में 'संजय द्वारा धृतराष्ट्र को भीमसेन के पराक्राम और उसके द्वारा मारे गये उनके नौ पुत्रों के वध' का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
भीष्म का पांडवों के साथ युद्ध
संजय कहते हैं- भारत! तदनन्तर जैसे पूर्णिमा को वायु की प्रेरणा से समुद्र का वेग बढ़ जाने से उसकी भीषण गर्जना सुनायी पड़ती है, उसी प्रकार आपकी सेना का महान कोलाहल प्रकट हुआ। महाराज! अपराहकाल में पाण्डवों के साथ भीष्म का भीषण संग्राम आरम्भ हुआ, जिसमें मेघ की गर्जना के समान गम्भीर घोष हो रहा था। राजन्! तब आपके पुत्र, जैसे वसुगण इन्द्र के सब ओर खड़े होते है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य को चारों ओर से घेरकर रणभूमि में भीमसेन पर टूट पड़े। तत्पश्चात् शान्तनुनन्दन भीष्म, रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य भगदत्त और सुशर्मा ने अर्जुन पर धावा किया। कृतवर्मा और बाहृीक सात्यकि पर टूट पड़े। राजा अम्बष्ठ ने अभिमन्यु का सामना किया।[1]
भीम द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध
महाराज! शेष अन्य महारथियों ने शत्रुपक्ष के शेष महारथियों पर आक्रमण किया। फिर तो उनमें घोर एवं भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ। जनेश्वर! जैसे घी की आहुति देने से अग्निदेव प्रज्वलित हो उठते है, उसी प्रकार रणक्षेत्र में आपके पुत्रों को देखकर भीमसेन क्रोध से जल उठे। परंतु महाराज! आपके पुत्रों ने कुन्तीनन्दन भीम को अपने बाणों से उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे वर्षा ऋतु में बादल पर्वत को जल की धाराओं से ढक लेते हैं। प्रजानाथ! भरतनन्दन! आपके पुत्रों द्वारा बार बार बाणों की वर्षा से आच्छादित किये जाने पर क्रोधपूर्वक अपने मुँह के कोनो को चाटते हुए सिंह के समान शौर्य का अभिमान रखने वाले वीर भीमसेन ने एक अत्यन्त तीखे क्षुरप्र के द्वारा आपके पुत्र व्यूढोरस्क को मार गिराया। उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी। तत्पश्चात् जैसे सिंह छोटे से मृग को दबोच लेता है, उसी प्रकार भीम ने दूसरे पानीदार एव तीखे भल्ल से आपके पुत्र कुण्डली को धराशायी कर दिया। आर्य! इसक बाद भीम ने बड़ी उतावली के साथ बहुत से तीखे और पानीदार बाण हाथ में लिये और आपके पुत्रों को लक्ष्य करके छोड़ दिया। सुदृढ़ धनुर्धर भीमसेन के द्वारा चलाये हुए उन बाणों ने आपके बहुत से महारथी पुत्रों को मारकर रथों से नीचे गिरा दिया। उनके नाम इस प्रकार है- अनाधृष्टि, कुण्डभेदी, वैराट, दीर्घलोचन, दीर्घबाहु, सुबाहु तथा कनकध्वज।[2]
भीम का पराक्रम
भरतश्रेष्ठ! वे सभी वीर वहाँ गिरकर वसन्त ऋतु में धराशायी हुए पुरूपयुक्त आम्रवृक्षों की भाँति सुशोभित हो रहे थे। तब उस महायुद्ध में आपके शेष पुत्र महाबली भीमसेन को काल के समान समझकर वहाँ से भाग चले। तदनन्तर युद्धस्थल में आपके पुत्रों को दग्ध करते हुए वीर भीमसेन पर द्रोणाचार्य ने सब ओर से उसी प्रकार बाणों की वर्षा आरम्भ की, जैसे बादल पर्वत पर जल की धाराएँ गिराते हैं। महाराज! उस समय हमने कुन्तीपुत्र भीम का अदभूध पराक्रम देखा। यद्यपि द्रोणाचार्य बाणों की वर्षा करके उन्हें रोक रहे थे, तो भी उन्होंने आपके पुत्रों को मार डाला। जैसे साँड आकाश से गिरती हुई जल वर्षा को अपने शरीर पर शान्त भाव से धारण और सहन करता है, उसी प्रकार भीमसेन द्रोणाचार्य की छोड़ी हुई बाण वर्षा को धारण कर रहे थे। महाराज! भीमसेन ने उस युद्धस्थल में आपके पुत्रों का वध तो किया ही, द्रोणाचार्य को भी आगे बढ़ने से रोक रखा था। यह उन्होंने अदभूध पराक्रम किया। राजन्! जैसे महाबली व्याघ्र मृगों के झुंड में विचरता हो, उसी प्रकार भीमसेन आपके वीर पुत्रों के समुदाय में खेल रहे थे। जैसे भेडि़या पशुओं के बीच में रहकर भी उन्हें विदीर्ण कर डालता है, उसी प्रकार भीमसेन रणभूमि में आपके पुत्रों को भगा रहे थे।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 96 श्लोक 1-18
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 96 श्लोक 19-37
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