भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण

महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 115वें अध्याय मेंं 'भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण करने' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]

संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कौरव और पांडवों के बीच युद्ध का वर्णन करना

धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा- संजय! दसवें दिन महापराक्रमी शान्तनुकुमार भीष्म ने पाण्डवों तथा सृंजयों के साथ किस प्रकार युद्ध किया तथा कौरवों ने पाण्डवों को युद्ध में किस प्रकार रोका ? रणक्षेत्र में शोभा पाने वाले भीष्म के उस महायुद्ध का वृत्तान्त मुझसे कहो। संजय ने कहा- भारत! कौरवों ने पाण्डवों के साथ जो युद्ध किया और जिस प्रकार वह युद्ध हुआ, वह सब इस समय बताता हूँ। किरीटधारी अर्जुन ने प्रतिदिन अपने उत्तम अस्त्रों द्वारा क्रोध में भरे हुए आपके महारथियों को परलोक में पहुँचाया है। इसी प्रकार युद्ध विजयी कुरुकुलनन्दन भीष्म ने भी सदा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार युद्ध में कुन्‍तीपुत्रों के सैनिकों का संहार किया। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! एक ओर से कौरवों सहित भीष्म से युद्ध कर रहे थे और दूसरी ओर से पांचाल देशीय वीरों के सहित अर्जुन उनका सामना कर रहे थे, यह देखकर सबके मन में संशय हो गया कि किस पक्ष की विजय होगी। दसवें दिन भीष्म और अर्जुन के उस युद्ध में निरन्तर महाभयंकर जनसंहार होने लगा। राजन! उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता तथा शत्रुओं को संताप देने वाले शान्तनुनन्दन भीष्म ने उस युद्ध में कई अयुत योद्धाओं का संहार कर डाला। भूपाल! जिनके नाम और गोत्र प्रायः अज्ञात थे तथा जो सभी युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाते थे, वे शूरवीर वहाँ भीष्म के हाथों मारे गये। परंतप! इस प्रकार दस दिनों तक धर्मात्मा भीष्म पांडव सेना को संतप्त करके अन्ततोगत्वा अपने जीवन से ही ऊब गये।

भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण करना

अब वे रणक्षेत्र में सम्मुख रहकर शीघ्र ही अपने वध की इच्छा करने लगे। महाराज! आपके ताऊ महाबाहु देवव्रत ने यह सोचकर कि अब मैं संग्राम में बहुसंख्यक श्रेष्ठ मानवों का वध न करूं, अपने निकटवर्ती पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले-‘सम्पूर्ण शास्त्रों निपुण विद्वान, महाज्ञानी तात युधिष्ठिर! मैं तुम्हें धर्म के अनुकूल तथा स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाली एक बात बता रहा हूं, तुम मेरे उस वचन को सुनो। ‘तात भरतनन्दन! अब मैं इस देह से ऊब गया हूँ क्योंकि रणभूमि में बहुत से प्राणियों का वध करते हुए ही मेरा समय बीता है। ‘इसलिये यदि तुम मेरा प्रिय करना चाहते हो तो अर्जुन तथा पांचालों और सृंजयों को आगे करके मेरे वध के लिए प्रयत्न करो।’ भीष्म के इस अभिप्राय को जानकर सत्यदर्शी पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिर रणभूमि में सृंजय वीरों को साथ ले भीष्म की ओर आगे बढ़े। राजन! उस समय भीष्मजी का वह वचन सुनकर धृष्टद्युम्न और पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर ने अपनी सेना को आज्ञा दी- वीरों! आगे बढ़ो। युद्ध करो और संग्राम में भीष्म पर विजय पाओ। तुम सब लोग शत्रुविजयी सत्यप्रितिज्ञ अर्जुन के द्वारा सुरक्षित हो। ‘ये महाधनुर्धर सेनापति धृष्टद्युम्न तथा भीमसेन भी समरागंण में निश्चय ही तुम सब लोगों की रक्षा करेंगे। ‘सृंजय वीरो! आज तुम युद्ध में भीष्मजी से तनिक भी भय न करो। हम शिखण्डी को आगे करके भीष्म पर अवश्य ही विजय पायेंगे। तब वे पाण्डव सैनिक दसवें दिन वैसा ही करने की प्रतिज्ञा करके ब्रह्मलोक को अपना लक्ष्य बनाकर क्रोध से मूर्च्छित हो शिखण्डी तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन को आगे करके आगे बढ़े और भीष्म को मार गिराने का महान प्रयत्न करने लगे। तदनन्तर आपके पुत्र की आज्ञा पाकर नाना देशों के स्वामी महाबली नरेशगण अपनी विशाल सेनासहित द्रोण तथा अश्वत्थामा के साथ अग्रसर हुए। उस समय वे सब वीर और समस्त भाइयों सहित बलवान दुःशासन समर भूमि में खड़े हुए भीष्म की रक्षा करने लगे।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 115 श्लोक 1-22

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महाभारत भीष्म पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
कुरुक्षेत्र में उभय पक्ष के सैनिकों की स्थिति | कौरव-पांडव द्वारा युद्ध के नियमों का निर्माण | वेदव्यास द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान | वेदव्यास द्वारा भयसूचक उत्पातों का वर्णन | वेदव्यास द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों का वर्णन | वेदव्यास द्वारा विजयसूचक लक्षणों का वर्णन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र से भूमि के महत्त्व का वर्णन | पंचमहाभूतों द्वारा सुदर्शन द्वीप का संक्षिप्त वर्णन | सुदर्शन द्वीप के वर्ष तथा शशाकृति आदि का वर्णन | उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन | रमणक, हिरण्यक, शृंगवान पर्वत तथा ऐरावतवर्ष का वर्णन | भारतवर्ष की नदियों तथा देशों का वर्णन | भारतवर्ष के जनपदों के नाम तथा भूमि का महत्त्व | युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
भूमि पर्व
संजय द्वारा शाकद्वीप का वर्णन | कुश, क्रौंच तथा पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन | राहू, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन
श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
संजय का धृतराष्ट्र को भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाना | भीष्म के मारे जाने पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से भीष्मवध घटनाक्रम जानने हेतु प्रश्न करना | संजय द्वारा युद्ध के वृत्तान्त का वर्णन आरम्भ करना | दुर्योधन की सेना का वर्णन | कौरवों के व्यूह, वाहन और ध्वज आदि का वर्णन | कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों का वर्णन | अर्जुन द्वारा वज्रव्यूह की रचना | भीमसेन की अध्यक्षता में पांडव सेना का आगे बढ़ना | कौरव-पांडव सेनाओं की स्थिति | युधिष्ठिर का विषाद और अर्जुन का उन्हें आश्वासन | युधिष्ठिर की रणयात्रा | अर्जुन द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति | अर्जुन को देवी दुर्गा से वर की प्राप्ति | सैनिकों के हर्ष तथा उत्साह विषयक धृतराष्ट्र और संजय का संवाद | कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों तथा शंखध्वनि का वर्णन | स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद | कृष्ण द्वारा अर्जुन का उत्साहवर्धन एवं सांख्ययोग की महिमा का प्रतिपादन | कृष्ण द्वारा कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञ की स्थिति और महिमा का प्रतिपादन | कर्तव्यकर्म की आवश्यकता का प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालन की महिमा का वर्णन | कामनिरोध के उपाय का वर्णन | निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषों के आचरण एवं महिमा का वर्णन | विविध यज्ञों तथा ज्ञान की महिमा का वर्णन | सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं ध्यानयोग का वर्णन | निष्काम कर्मयोग का प्रतिपादन और आत्मोद्धार के लिए प्रेरणा | ध्यानयोग एवं योगभ्रष्ट की गति का वर्णन | ज्ञान-विज्ञान एवं भगवान की व्यापकता का वर्णन | कृष्ण का अर्जुन से भगवान को जानने और न जानने वालों की महिमा का वर्णन | ब्रह्म, अध्यात्म तथा कर्मादि विषयक अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर | कृष्ण द्वारा भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गों का प्रतिपादन | ज्ञान विज्ञान सहित जगत की उत्पत्ति का वर्णन | प्रभावसहित भगवान के स्वरूप का वर्णन | आसुरी और दैवी सम्पदा वालों का वर्णन | सकाम और निष्काम उपासना का वर्णन | भगवद्भक्ति की महिमा का वर्णन | कृष्ण द्वारा अर्जुन से शरणागति भक्ति के महत्त्व का वर्णन | कृष्ण द्वारा अपनी विभूति और योगशक्ति का वर्णन | कृष्ण द्वारा प्रभावसहित भक्तियोग का कथन | कृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का पुन: वर्णन | अर्जुन द्वारा कृष्ण से विश्वरूप का दर्शन कराने की प्रार्थना | कृष्ण और संजय द्वारा विश्वरूप का वर्णन | अर्जुन द्वारा कृष्ण के विश्वरूप का देखा जाना | अर्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति और प्रार्थना | कृष्ण के विश्वरूप और चतुर्भुजरूप के दर्शन की महिमा का कथन | साकार और निराकार उपासकों की उत्तमता का निर्णय | भगवत्प्राप्ति वाले पुरुषों के लक्षणों का वर्णन | ज्ञान सहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन | प्रकृति और पुरुष का वर्णन | ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति का वर्णन | सत्त्व, रज और तम गुणों का वर्णन | भगवत्प्राप्ति के उपाय तथा गुणातीत पुरुषों के लक्षणों का वर्णन | संसारवृक्ष और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन | प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप और पुरुषोत्तम के तत्त्व का वर्णन | दैवी और आसुरी सम्पदा का फलसहित वर्णन | शास्त्र के अनुकूल आचरण करने के लिए प्रेरणा | श्रद्धा और शास्त्र विपरीत घोर तप करने वालों का वर्णन | आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद की व्याख्या | ओम, तत्‌ और सत्‌ के प्रयोग की व्याख्या | त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन | भक्तिसहित निष्काम कर्मयोग का वर्णन | फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन | उपासना सहित ज्ञाननिष्ठा का वर्णन | भक्तिप्रधान कर्मयोग की महिमा का वर्णन | गीता के माहात्म्य का वर्णन
भीष्मवध पर्व
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