श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी150. छोटे हरिदास को स्त्री-दर्शन का दण्ड
प्रभु ने उसी प्रकार कठोरता के स्वर में कहा- 'तुम लोग अब इस सम्बन्ध में मुझसे कुछ भी न कहो। मैं ऐसे आदमी का मुख देखना नहीं चाहता जो वैरागी वेष बनाकर स्त्रियों से सम्भाषण करता है।' अत्यन्त ही दीनता के साथ स्वरूपगोस्वामी ने कहा- 'प्रभो ! उनसे भूल हो गयी, फिर माधवी देवी तो परम साध्वी भगवदभक्ति परायणा देवी हैं, उनके दर्शनों के अपराध के ऊपर इतना कठोर दण्ड न देना चाहिये।' प्रभु ने दृढ़ता के साथ कहा- 'चाहे कोई भी क्यों न हो ! स्त्रियों से बात करने की आदत पड़ना ही विरक्त साधु के लिये ठीक नहीं। शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा है कि अपनी सगी माता, बहिन और युवती लड़की से भी एकान्त में बातें न करनी चाहिये। ये इन्द्रियाँ इतनी प्रबल होती हैं कि अच्छे-अच्छे विद्वानों का मन भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।' प्रभु का ऐसा दृढ़ निश्चय देखकर और उनके स्वर में दृढ़ता देखकर फिर किसी को कुछ कहने का साहस नहीं हुआ। हरिदास जी ने जब सुना कि प्रभु किसी भी तरह क्षमा करने के लिये राजी नहीं हैं, तब तो उन्होंने अन्न-जल बिलकुल छोड़ दिया। उन्हें तीन दिन बिना अन्न-जल के हो गये, किन्तु प्रभु अपने निश्चय से तिलभर भी न डिगे। तब तो स्वरूपगोस्वामी जी को बड़ी चिन्ता हुई। प्रभु के पास रहने वाले सभी विरक्त भक्त डरने लगे। उन्होंने नेत्रों से तो क्या मन से भी स्त्रियों का चिन्तन करना त्याग दिया। कुछ विरक्त स्त्रियों से भिक्षा ले आते थे, उन्होंने उनसे भिक्षा लाना ही बन्द कर दिया। स्वरूप गोस्वामी डरते-डरते एकान्त में प्रभु के पास गये। उस समय प्रभु स्वस्थ होकर कुछ सोच रहे थे। स्वरूप जी प्रणाम करके बैठ गये। प्रभु प्रसन्नता पूर्वक उनसे बातें करने लगे। प्रभु को प्रसन्न देखकर धीरे-धीरे स्वरूपगोस्वामी कहने लगे- 'प्रभो ! छोटे हरिदास ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है। उसके ऊपर इतनी अप्रसन्नता क्यों? उसे अपने किये का बहुत दण्ड मिल गया, अब तो उसे क्षमा मिलनी चाहिये।' |