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श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
142. श्री सनातन को शास्त्रीय शिक्षा
पृथ्वी पर ये सात द्वीप हैं, इसीलिये पृथ्वी सप्तद्वीपा कही जाती है। इसे भूलोक भी कहते हैं। इसी प्रकार भूसे भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, और सत्यम- ये छः लोक ऊपर हैं और तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, पाताल और रसातल- ये सात लोक नीचे हैं। इन प्रत्येक लोकों में अनेक छोटे-छोटे लोक हैं। स्वर्ग ही देख लो, असंख्यों लोक हैं। रात्रि में जो असंख्य तारे चमकते हैं, ये सब स्वर्ग के पृथक-पृथक लोक हैं। इनमें भी पृथ्वी की तरह असंख्यों जीव हैं। चन्द्रलोक, भौमलोक, ध्रुवलोक, सूर्यलोक- जैसे असंख्यों लोक स्वर्ग में हैं। उन्हें सूर्य के प्रकाश की भी अपेक्षा नहीं रहती। ये सब अपने-अपने प्रकाशों से प्रकाशित होते हैं। लाखों, करोड़ों नहीं, असंख्यों लोक इतने बड़े हैं कि जिनके सामने सूर्य का प्रकाश जुगनू (पटबीजने)-की भाँति प्रतीत होता है। ये सभी लोक स्वर्ग में ही बोले जाते हैं। स्वर्गलोक से ऊपर महर्लोक है; उसमे भी असंख्यों जीव हैं। इसी प्रकार जन, तप और सत्यलोक में असंख्यों छोटे-छोटे स्वतंत्र लोक हैं। नीचे के सात लोकों में भी स्वर्ग के समान सुख है। नरक के लोक भी वहीं है। और नरक भी लाखों प्रकार के हैं। इन चौदह लोकों के स्वामी ब्रह्मा जी हैं, ब्रह्मालोक सबसे श्रेष्ठ है। यह चौदह लोकों वाला ब्रह्मा जी का अण्ड है, इसीलिये ब्रह्माण्ड कहते हैं। इस ब्रह्माण्ड के स्वामी सदा एक ही ब्रह्मा नहीं होते। सौ वर्ष के पश्चात् वे बदल जाते हैं। वे सौ वर्ष भी हमारे नहीं, ब्रह्मा जी के अपने सौ वर्ष।'
सनातन- 'प्रभो! मैं ब्रह्मा जी के वर्ष का परिणाम जानना चाहता हूँ। ब्रह्मा जी का एक वर्ष हमारे वर्षों से कितने दिन का होता है?'
प्रभु ने कहा- 'अच्छा तुम हिसाब लगाओ। जो किसी प्रकार भी न दीखे और जिसके किसी तरह भी विभाग न हो सकें, उसे 'परम अणु' कहते हैं। दो परमाणुओं को एक अणु होता है, तीन अणुओं का एक 'त्रिसरेणु' होता है। हां, 'त्रिसरेणु' दीखता है। झरोखे में से सूर्य के प्रकाश के साथ जो छोटे-छोटे कण उड़ते-से दीखते हैं, वे ही त्रसरेणु हैं। वह इतना हल्का होता है कि उसका पृथ्वी पर गिरना असम्भव है, वह आकाश में ही घूमा करता है और सूर्य के प्रकाश के साथ झरोखे में से दीखता है। जितनी देर में तीन 'त्रसरेणु' को उल्लंघन करके सूर्य आगे बढ़े उस कालको 'त्रुटि' कहते हैं। ऐसी-ऐसी तीन सौ त्रुटियों का एक 'बोध' होता है तीन बोध का एक 'लव' और तीन लवका एक 'निमेष' माना जाता है। तीन निमेष का एक क्षण और पांच क्षण के काल को 'काष्ठा' कहते हैं। पंद्रह काष्ठा का एक 'लघु' और पंद्रह लघु की एक 'घड़ी' होती है। दो घड़ी कर एक मुहूर्त और छः या सात (दिन के घटने-बढ़ने के कारण) घड़ी होने पर मनुष्यों का एक 'पहर' होता है। चार पहर का 'दिन' और चार पहर की 'रात्रि' होती है, इसलिये आठ पहर की एक दिन-रात्रि मानी गयी है। ऐसे सात दिन-रात्रि का एक 'सप्ताह' और पंद्रह दिनों का एक पक्ष होता है।
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