श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी136. श्री रूप को प्रयाग में महाप्रभु के दर्शन
अब दूसरे भाई रूपजी की बात सुनिये। अपने भाई के राजबन्दी होने का समाचार सुनने के पूर्व ही उन्होंने प्रभु की खोज के लिये दो नौकर पुरी भेजे थे। उन्होंने आकर समाचार दिया कि प्रभु तो वन के पथ से श्री वृन्दावन की यात्रा करने चले गये हैं। प्रभु के वृन्दावन-गमन का समाचार सुनकर रूप अपने छोटे भाई अनूप (श्रीवल्लभ)- को साथ लेकर प्रभु की खोज में वृन्दावन की ओर चल पड़े। चलते समय वे अपने भाई सनातन के पास एक पत्र इस आशय का भेज गये कि 'हम श्री चैतन्य की खोज में वृन्दावन जा रहे हैं। हमारा मनमधुप चैतन्य-चरणारविन्दों का मकरन्द पान करने के निमित्त उन्मत्त-सा हो रहा है। अब हम अपने को क्षण भर भी यहाँ नहीं रख सकते। श्रीचैतन्य-चरण जहाँ भी होंगे वहीं जाकर हम उनके शरणापन्न होंगे। आप किसी बात की चिन्ता न करें। मंगलमय श्रीचैतन्य आपका भला करेंगे। वे आप को शीघ्र ही इस कारागार के बन्धन से ही नहीं, संसारी बन्धन से भी उन्मुक्त करेंगे। अमुक मोदी की दुकान पर आप के निमित्त मैं दस हजार रूपये जमा कर चला हूँ। यदि कारावास मुक्ति में उनका कुछ उपयोग हो सके तो कीजिये और शीघ्र ही कारागार से मुक्त होकर व्रज में आकर श्रीचैतन्य-चरणों के दर्शन कीजिये। यह पत्र मैं गुप्त रीति से आप के पास भेज रहा हूँ। मंगलमय भगवान आपका भला करें। गुप्त रीति से यह पत्र सनातन जी के पास पहुँचा। पत्र को पढ़कर उनका चित्त भी श्रीचैतन्य-चरणों के दर्शनों के लिये तड़फड़ाने लगा। वे किसी-न-किसी प्रकार जेल से उन्मुक्त होने का उपाय सोचने लगे। उधर रूप जी अपने भाई अनूप जी के साथ प्रभु की खोज करते हुए काशी होकर प्रयाग पहुँचे। प्रयाग में प्रतिष्ठानपुर (झूसी)- के घाट से पार होकर वे वर्तमान दारागंज के समीप पहुँचे। वहीं उन्हें अनेक आदमियों से घिरे हुए महाप्रभु चैतन्यदेव जी के दर्शन हुए। प्रभु प्रेम में विभोर हुए भक्तों के साथ संकीर्तन-नृत्य करते हुए विन्दुमाधव जी के दर्शन के लिये जा रहे थे। वे दोनों भाई भी उस भीड़ के साथ-ही-साथ हो लिये, महाप्रभु को जो भी नृत्य करते हुए देखता वही उनके साथ चल पड़ता। इस प्रकार विन्दुमाधव जी के दर्शन करके प्रभु लौटे। एक दक्षिणी ब्राह्मण ने उस दिन निमंत्रण किया था। |