श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी112. प्रेम रस लोलुप भ्रमर भक्तों का आगमन
इस प्रकार वह दिन बात की बात में ही प्रभु का समाचार पूछते पूछते ही व्यतीत हो गया। दूसरे दिन श्रीवास आदि भक्तवृन्द कृष्णदास को साथ लेकर शान्तिपुर में अद्वैताचार्य के घर गये और उन्होंने बड़े ही उल्लास के सहित प्रभु के पुरी में लौट आने का समाचार सुनाया और प्रभु का भेजा हुआ महाप्रसाद भी उन्हें दिया। प्रभु के समाचार और महाप्रसाद को पाते ही बूढ़े आचार्य के सभी अंग-प्रत्यंग मारे प्रेम के फड़कने लगे, वे लम्बी लम्बी सांसें खींचते हुए हा गौर ! कहकर प्रेम में निमग्न हो गये और उठकर जोरों से संकीर्तन करने लगे। कुछ समय के पश्चात प्रेम का तूफान समाप्त हुआ, तब अद्वैताचार्य अन्य सभी भक्तों के साथ पुरी चलकर प्रभु के दर्शन करने के सम्बन्ध में परामर्श करने लगे। सभी ने निश्चय किया कि शीघ्र ही प्रभु के दर्शनों के लिये चलना चाहिये। पाठक श्रीपरमानन्द पुरी महाराज का नाम न भूले होंगे। ये महाप्रभु को दक्षिण-यात्रा के समय मिले थे और गंगास्नान की इच्छा से प्रभु से विदा होकर नवद्वीप की ओर आये थे। प्रभु ने इनसे पुरी में आकर एक साथ रहने की प्रार्थना की थी और इन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार भी कर लिया था। प्रभु से विदा होकर वे गंगा जी के दक्षिण किनारे-किनारे नवद्वीप आये थे और यहाँ आकर उन्होंने शचीमाता को प्रभु का संवाद सुनाया। संन्यासी के मुख से प्रभु का समाचार सुनकर माता को अत्यधिक आनन्द हुआ और उसने पुरी महाराज का यथोचित खूब सत्कार किया। पुरी महाराज भक्तों के आग्रह से कुछ काल नवद्वीप में ठहर गये थे। |