श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी98. सार्वभौम का भगवत-प्रसाद में विश्वास
इस प्रकार सार्वभौम को विश्वास के साथ आनन्दपूर्वक प्रसाद पाते देखकर महाप्रभु के आनन्द की सीमा नहीं रही। वे भट्टाचार्य सार्वभौम का हाथ पकड़ कर नृत्य करने लगे। भट्टाचार्य महाशय भी बेसुध होकर प्रभु के साथ पागल की भाँति नाच रहे थे। सार्वभौम की स्त्री तथा उनके शिष्य और पुत्र इस अपूर्व दृश्य को देखकर इसका कुछ भी कारण न समझ सके। महाप्रभु बार-बार सार्वभौम का आलिंगन करते और गदगदकण्ठ से बार-बार कहते- ‘आज सार्वभौम कृतार्थ हो गये, आज वासुदेव सार्वभौम को भगवान वासुदेव ने अपनी शरण में ले लिया। आज भट्टाचार्य महाशय के सभी संसारी बन्धन छिन्न-भिन्न हो गये। आज मुझे सार्वभौम ने खरीद लिया। इतने भारी शास्त्रज्ञ और शौचाचार को जानने वाले सार्वभौम महाशय का जब महाप्रसाद के प्रति इतना अधिक दृढ़ विश्वास हो गया, तो मैं समझता हूँ, इनसे बढ़कर संसार में कोई दूसरा भक्त होगा ही नहीं। भट्टाचार्य महोदय ने आज मुझे कृतकृत्य कर दिया। आज मेरा पुरी में आना सफल हो गया।’ प्रभु के मुख से ऐसी बातें सुनकर भट्टाचार्य सार्वभौम कुछ लज्जित-से हुए और बार-बार प्रभु के चरणों की धूलि को अपने सम्पूर्ण शरीर पर मलते हुए कहने लगे- ‘यह सब प्रभु के चरणों की कृपा है। मुझ अधम के ऊपर कृपा करके ही आपने संसार-सागर में डूबते हुए को हाथ पकड़कर उबारा हैं। अब तो मैं आपका दासानुदास हूँ, जब जैसी भी आज्ञा होगी, उसी का पालन करूँगा।’ भट्टाचार्य के मुख से ऐसी बात सुनकर प्रभु कुछ लज्जा का भाव प्रदर्शित करते हुए वहाँ से चले गये। जब गोपीनाथाचार्य ने यह समाचार सुना तब तो वे बड़े प्रसन्न हुए। शाम को भट्टाचार्य सार्वभौम प्रभु के दर्शन के लिये आये। उसी समय गोपीनाथाचार्य भी वहाँ आ पहुँचे। प्रभु को प्रणाम करके मुसकराते हुए गोपीनाथाचार्य ने कहा- ‘कहो भट्टाचार्य महाशय! हमारी बात ठीक निकली न? अब बोलो, भागकर कहाँ जाओगे?’ पृथ्वी में सिर टेककर और गोपीनाथाचार्य को प्रणाम करते हुए सार्वभौम ने कहा- ‘यह सब आपके चरणों की कृपा है, नहीं तो मुझ-जैसे संसारी मनुष्य के ऊपर प्रभु कृपा कब कर सकते हैं? आपके ही अनुग्रह से मुझे प्रभु के चरण-कमलों की प्राप्ति हो सकी है।’ इस प्रकार शिष्टाचार की बहुत-सी बातें होने पर सार्वभौम अपने घर को चले आये। |