श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी92. श्रीसाक्षिगोपाल
ब्राह्मण को तो उसके पुत्र ने पहले ही सिखा-पढ़ाकर ठीक कर रखा था। उसने पिता को समझा रखा था आप झूठ-सत्य कुछ भी न कहें। केवल इतना ही कह दें- ‘मुझे उस समय का कुछ पता नहीं। इसमें झूठ भी नहीं। आप ही बतावें किस दिन की बात है? दु:ख के सहित पुत्र स्नेह के कारण पिता ने पंचों के सामने ऐसा कहना स्वीकार कर लिया। पंचों के पूछने पर ब्राह्मण ने धीरे से कहा- ‘मुझे ठीक-ठीक याद नहीं हैं, यह कब की बात है।’ बस, इतने पर ही, उसके पुत्र ने बीच में ही कहा- यह अकुलीन ब्राह्मण युवक झुठा है। मेरे पिता के साथ कोई दुसरा पुरुष था ही नही, यही अकेला था, इसने मेरे पिता से धन अपहरण करने के लिये उन्हें धतूरा खिला दिया और सब धन ले लिया। अब ऐसी बातें बनाता है। भला, मेरे पिता ऐसे अकुलीन, घरबारहीन, कंगाल को अपनी पुत्री देने का वचन कभी दे सकते हैं?’ पंचों ने उस युवक से कहा- ‘क्यों भाई! यह क्या कह रहा है? वृद्ध ने जब तुम्हें पुत्री देने का वचन दिया, उस समय वहाँ कोई और भी पुरुष था, तुम किसी की साक्षी दे सकते हो?’ युवक ने गम्भीरता के साथ कहा- 'गोपाल जी के ही सामने इन्होंने कहा था और गोपाल जी को छोड़कर और मेरा कोई दूसरा साक्षी नहीं है।’ एक युवक ने पंच ने इस बात को सुनकर हंसी के स्वर में कहा- ‘तो क्या तुम गोपाल को यहाँ साक्षी देने के लिये ला सकते हो? आवेश में आकर जोर से उस युवक ने कहा- ‘हाँ, ला सकता हूँ।’ इस बात को सुनते ही सभी अवाक रह गये और आश्चर्य प्रकट करते हुए एक स्वर में सब के-सब कहने लगे- हाँ,हाँ, यदि तुम साक्षी के लिये गोपाल जी को ले आओ और सब पंचों के सामने गोपाल जी तुम्हारी साक्षी दे दें तो हम जबरदस्ती लड़की का विवाह तुम्हारे साथ करवा सकते है।’ इस बात से प्रसन्नता प्रकट करते हुए वृद्ध ब्राह्मण ने कहा- ‘हाँ, यही ठीक है। यदि यह साक्षी के लिये गोपाल जी को ले आवें तो मैं अपनी कन्या का विवाह इसके साथ जरूर कर दूँगा।’ ‘वृद्ध को विश्वास था कि भक्तवत्सल भगवान मेरी प्रतीज्ञा को पूर्ण करने के निमित और इस ब्राह्मणकुमार की लाज बचाने के निमित्त अवश्य ही साक्षी देने के लिये आ जायँगे। किंतु उसके उस उद्दण्ड पुत्र को इस बात का विश्वास कब हो सकता था कि पाषाण की मूर्ति भी साक्षी देने के लिये कभी आ सकती है क्या? उसने सोचा, यह अपने-आप ही बहुत अच्छा उपाय निकल आया। न तो पत्थर की प्रतिमा साक्षी देने के लिये यहाँ आवेगी और न मुझे अपनी बहिन का विवाह इसके साथ करना होगा। यह सोचकर वह जल्दी से बोल उठा- ‘यह बात मुझे भी मंजूर है, यदि गोपाल जी आकर सबके सामने इस बात की साक्षी दे जायँ तो मैं अवश्य ही इन्हें अपना बहनोई बना लूँगा।’ |