श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी84. राढ़-देश में उन्मत्त-भ्रमण
उस समय तक राढ़-देश में भगवन्नाम-संकीर्तन का प्रचार नहीं हुआ था, इसलिये उस देश की ऐसी दशा देखकर प्रभु को अत्यन्त ही दु:ख हुआ। वे विकलता प्रकट करते हुए नित्यानन्द जी से कहने लगे- ‘श्रीपाद! इस देश में कहीं भी संकीर्तन की सुमधुर ध्वनि सुनायी नहीं पड़ती है और न यहाँ किसी के मुख से भगवन्नामों का ही उच्चारण सुना है। सचमुच यह देश भक्तिशून्य है। भगवन्नाम को बिना सुने, मेरा जीवन व्यर्थ है, मेरे इस व्यर्थ के भ्रमण को धिक्कार है।’ इतने ही में प्रभु को जगंल में बहुत-सी गौएं चरती हुई दिखायी दीं। उनमें से बहुत-सी तो हरी-हरी दूब को चर रही थीं, बहुत-सी प्रभु के मुख की ओर निहार रही थीं, बहुत-सी पूंछों को उठा-उठाकर इधर-से-उधर प्रभु के चारों ओर भाग रही थीं- मानो वे प्रभु की परिक्रमा कर रही हों। उनके चराने वाले ग्वाले कम्बल की घोंघी (खोइया) ओढे़ हुए हाथ में लाठी लिये प्रभु की ओर देख रहे थे। प्रभु को देखते ही ये जोरों से ‘हरि बोल, हरि बोल’ कहकर चिल्लाने लगे। उन छोटे-छोटे बालगोपालों के मुख से श्रीहरि का कर्णप्रिय सुमधुर नाम सुनकर प्रभु अधीर हो उठे। उन्हें उस समय एकदम वृन्दावन का स्मरण हो आया और वे बालगोपालों के समीप जाकर उनके सिरों पर हाथ रखते हुए कहने लगे- ‘हां, और कहो, बोलो हरि हरि कहो।’ बच्चे आनन्द में आकर और जोरों के साथ हरिध्वनि करने लगे। प्रभु की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। वे उन बालकों के पास बैठ गये और बालकों की –सी क्रीडाएँ करने लगे। उनसे बहुत-सी बातें पूछने लगे। बातों-ही-बातों में प्रभु ने उन लोगों से पूछा- ‘यहाँ से गंगाजी कितनी दूर हैं?’ एक चुलबुले स्वभाव वाले बालक ने कहा- ‘महाराज जी! गंगा जी दूर कहाँ हैं, बस, अपने को गंगा जी के किनारे ही समझो। हमारा गांव गंगा जी के खादर में तो है ही। दो-तीन घंटे में आप धारा के समीप पहुँच जायंगे। प्रभु ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा- ‘धन्य है, गंगा माता का ही ऐसा प्रभाव है कि जहाँ के छोटे-छोटे बच्चे भी भगवन्नामों का उच्चारण करते हैं। जगन्माता भगवती भागीरथी का प्रभाव ही ऐसा है, कि उसके किनारे पर रहने वाले कूकर-शूकर भी भगवान के प्रिय बन सकते हैं।’ इस प्रकार बहुत देर तक बालकों से बातें करने के अनन्तर प्रभु भक्तों के सहित सांयकाल के समय पुण्यतोया सुरसरि मां जाह्नवी के किनारे पहुँचे। गंगा माता के दर्शनों से ही प्रभु गद्गद हो उठे और दोनों हाथों को जोड़कर स्तुति करने लगे- ‘गंगा मैया! तुम सचमुच संसार के सभी प्रकार के पाप-तापों को मेटने वाली हो। माता! सहस्रवदन शेष जी भी तुम्हारे यश का गायन नहीं कर सकते। |