श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी81. गौरहरि का संन्यास के लिये आग्रह
इतने में ही ग्राम के दस-पांच आदमी भारती जी के आश्रम में आ गये। उन्होंने देखा एक देव-तुल्य परम सुकुमार युवक एक ओर संन्यासी बनने के लिये बैठा है, उसके आसपास कई भद्रपुरुष बैठे हुए आंसू बहा रहे हैं, सामने शोकसागर में डूबे हुए-से भारती कुछ सोच रहे हैं। महाप्रभु के उस अद्भुत रूप-लावण्य को देखकर ग्रामवासी भौचक्के-से रह गये। उन्होंने मनुष्य-शरीर में ऐसा अलौकिक रूप और इतना भारी तेज आज तक देखा ही नहीं था। बात-की-बात में यह बात आसपास के सभी ग्रामों में फैल गयी। प्रभु के रूप, लावण्य और तेज की ख्याति सुनकर दूर-दूर से लोग उनके दर्शनों के लिये आने लगे। कटवा-ग्राम के तो स्त्री–पुरुष,बूढ़े-जवान तथा बाल-बच्चे सभी भारती के आश्रम पर आकर एकत्रित हो गये। जो स्त्रियाँ कभी भी घर से बाहर नहीं निकलती थीं , वे भी प्रभु के देवदुर्लभ दर्शनों की अभिलाषा से सब कुछ छोड़-छाड़कर भारती जी के आश्रम पर आ गयीं। प्रभु एक ओर चुपचाप बैठे हुए थे। उनके काले-काले घुंघराले बाल बिना किसी नियम के स्वाभाविक रूप से इधर-उधर छिटके हुए थे। वे अपनी स्वाभाविक दशा में प्रभु के मुख की शोभा को और भी अत्यधिक आलोकमय बना रहे थे। प्रभु की दोनों आँखें ऊपर चढ़ी हुई थी। शरीर के गीले वस्त्र शरीर पर ही सूख गये थे। वे अपने एक घोंटूपर सिर रखे ऊर्ध्वदृष्टि से आकाश की ओर निहार रहे थे। उनकी दोनों आँखों की कोरों में से निरंतर अश्रु बह रहे थे। पीछे नित्यानंद आदि भक्त भी चुपचाप बैठे हुए अश्रुविमोचन कर रहे थे। |