श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी76. भक्तवृन्द और गौरहरि
प्रभु ने रोते हुए मुकुन्द को अपने गले से लगाया। अपने कोमल करों से उनके गरम-गरम आंसुओं को पोछते हुए कहने लगे- ‘मुकुन्द! तुम इतने अधीर मत हो। तुम्हारे रुदन को देखकर हमारा हृदय फटा जाता है। हम तुमसे कभी पृथक न होंगे। तुम सदा हमारे हृदय में ही रहोगे।’ मुकुन्द को इस प्रकार समझाकर प्रभु गदाधर के समीप आये। महाभागवत गदाधर ने प्रभु को इस प्रकार आसमय में आते देखकर कुछ आश्चर्य-सा प्रकट किया और जल्दी से प्रभु की चरण-वंदना करके उन्हें बैठने को आसन दिया। आज ये प्रभु की ऐसी दशा देखकर कुछ भयभीत-से हो गये। उन्होंने आजतक प्रभु की ऐसी आकृति कभी नहीं देखी थी। उस समय की प्रभु की चेष्टा में दृढ़ता थी, ममता थी, वेदना थी और त्याग, वैराग्य, उपरति और न जाने क्या-क्या भव्य भावनाएँ भरी हुई थीं। गदाधर कुछ भी न बोल सके। तब प्रभु आप-से-आप ही कहने लगे- गदाधर! तुम्हें मैं एक बहुत ही दु:खपूर्ण बात सुनाने आया हूँ। बुरा मत मानना! क्यों, बुरा तो न मानोगे?’ मानो गदाधर के ऊपर यह दूसरा प्रहार हुआ। वे उसी भाँति चुप बैठे रहे। प्रभु की इस बात का भी उन्होंने कुछ उत्तर नहीं दिया। तब प्रभु कहने लगे- ‘मैं अब तुम लोगों से पृथक हो जाऊँगा। अब मैं इन संसारी भोगों का परित्याग कर दूँगा और यतिधर्म का पालन करूँगा।’ |