श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी75. संन्यास से पूर्व
सत्यान्नास्ति परो धर्मों मौनान्नास्ति परं तप:। अर्थात जिसने एक सत्य का अवलम्बन कर लिया उसने सभी धर्मों का पालन कर लिया। जिसने मौन रहकर वाणी का पूर्णरीत्या संयम कर लिया, उसे सभी तपों का फल प्राप्त हो गया। जो सदा सत्-असत् का विचार करता रहता है, उसके लिये इससे बढ़कर और ज्ञान हो ही क्या सकता है और जिसने सर्वस्व त्याग कर दिया, उसने सबसे श्रेष्ठ परम सुखको प्राप्त कर लिया। अब पाठक! आगे कलेजे को खूब कसकर पकड़ लीजिये। दिल को थामकर उन महान त्यागी महाप्रभु के महात्याग की तैयारी की बात सुनिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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