श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी73. भक्तों की लीलाएँ
हाय! कितनी भारी कठोरता है! भक्त देवी! तेरे चरणों में कोटि-कोटि नमस्कार है। जिस प्रेम और भक्ति में इतनी भारी स्निग्धता और सरसता है, उसमें क्या इतनी भारी कठोरता भी रह सकती है? जिसका एकमात्र प्राणों से भी प्यारा, नयनों का तारा, सम्पूर्ण घर को प्रकाशित करने वाला इकलौता पुत्र मर गया हो और उसका मृत देह माता के सम्मुख ही पड़ा हो, उस माता से कहा जाता है कि तू आंसू भी नहीं बहा सकती। जोर से रोकर अपने हृदय की ज्वाला को भी कम नहीं कर सकती। कितना भारी अन्याय है, कैसी निर्दय आज्ञा है? कितनी भारी कठोरता है? किंतु भक्त को अपने इष्टदेव की प्रसन्नता के निमित्त सब कुछ करना पड़ता है। पतिपरायणा बेचारी मालिनी देवी मन मसोसकर चुप हो गयी! उसने अपनी छाती पर पत्थर रखकर कलेजे को कड़ा किया। भीतर की ज्वाला को भीतर ही रोका और आंसुओं को पोंछकर चुप हो गयी। पत्नी के चुप हो जाने पर श्रीवास धीरे-धीरे उसे समझाने लगे- ‘इस बच्चे का इससे बढ़कर और बड़ा भारी सौभाग्य क्या हो सकता है, जो साक्षात गौरांग जब आंगन में नृत्य कर रहे हैं, तब इसने शरीर-त्याग किया है। महाप्रभु ही तो सबके स्वामी हैं। उनकी उपस्थिति में शरीर-त्याग करना क्या कम सौभाग्य की बात है?’ चार घड़ी रात्रि बीतने पर बच्चे की मृत्यु हुई थी। आधी रात्रि से कुछ अधिक समय तक भक्तगण उसी प्रकार कीर्तन करते रहे, किंतु इतनी बड़ी बात और कितनी देर तक छिपी रह सकती है। धीरे-धीरे भक्तों में यह बात फैलने लगी। एक से दूसरे के कान में पहुँचती, जो भी सुनता, वही कीर्तन बंद करके चुप हो जाता। इस प्रकार धीरे-धीरे सभी भक्त चुप हो गये। ढोल-करताल आदि सभी वाद्य भी आप-से-आप ही बंद हो गये। प्रभु ने भी नृत्य बंद कर दिया। इस प्रकार कीर्तन को आप-से-आप ही बंद होते देखकर प्रभु श्रीवास की ओर देखते हुए कुछ कहने लगे- ‘पण्डित जी! आपके घर में कोई दुर्घटना तो नहीं हो गयी है? न जाने क्यों हमारा मन संकीर्तन में नहीं लग रहा है। हृदय में एक प्रकार की खलबली-सी हो रही है।’ |