श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी72. क़ाज़ी की शरणागति
महाप्रभु भी घर के भीतर संकीर्तन की तैयारियाँ कर रहे थे। उन्होंने विशेष-विशेष भक्तों को बुलाकर नगर-कीर्तन की सभी व्यवस्था समझा दी। कौन आगे रहेगा, कौन उसके पीछे रहेगा और कौन सबसे पीछे रहेगा, ये सभी बातें बता दीं। किस सम्प्रदाय में कौन प्रधान नृत्यकारी होगा, इसकी भी वयवस्था कर दी। अब प्रभु के अन्तरंग भक्त गदाधर ने महाप्रभु श्रृंगार किया। प्रभु के घुंघराले काले-काले बालों में भाँति-भाँति के सुगन्धित तैल डालकर उसका जूरा बांधा गया, उसमें मालती, चम्पा आदि के सुगन्धित-पुष्प गूंथे गये। नासिका पर ऊर्ध्व-पुण्ड्र लगाया गया। केसर-कुंकुम की महीन बिन्दियों से मस्तक तथा दोनों कपोलो के ऊपर पत्रावली बनायी गयी। उनके अंग-प्रत्यंग की सजावट इस प्रकार की गयी कि एक बार कामदेव भी देखकर लज्जित हो उठता। महाप्रभु ने एक बहुत ही बढ़िया पीताम्बर अपने शरीर पर धारण किया। नीचे तक लटकती हुई थोड़ी किनारीदार चुनी हूई पीले रंग की धोती बड़ी ही भली मालूम होती थी। गदाधर ने घुटनों तक लटकने वाला एक बहुत ही बढ़िया हार प्रभु के गले में पहना दिया। उस हार के कारण प्रभु का तपाये हुए सुवर्ण के समान शरीर अत्यंत ही शोभित होने लगा। मुख में सुंदर पान की बीरी लगी हुई थी, इससे बायीं तरफ का कपोल थोड़ा उठा हुआ-सा दीखता था। दोनों अरुण अधर पान की लालिमा से और भी रक्तवर्ण के बन गये थे। उन्हें बिम्बा-फल की उपमा देने में भी संकोच होता था। कमान के समान दोनों कुटिल भ्रुकुटियों के मध्य में चारों ओर केसर लगाकर बीच में एक बहुत ही छोटी कुंकुम की बिन्दी लगा दी थी, पीतवर्ण के शरीर में वह लाल बिन्दी लाल रंग के हीरे की कनी की भाँति दूर ही चमक रही थी। इस प्रकार भलीभाँति श्रृंगार करके प्रभु घर से बाहर निकले। प्रभु के बाहर निकलते ही द्वारपर जो अपार भीड़ प्रभु की प्रतीक्षा कर रही थी, उसमें एकदम कोलाहल होने लगा। मानो समुद्र में ज्वार आ गया हो। सभी जोरों से ‘हरि बोल,’ ‘हरि बाल’ कहकर दिशा- विदिशाओं को गुँजाने लगे। लोग प्रभु के दर्शनों के लिये उतावले हो उठे। एक-दूसरे को धक्का देकर सभी पहले प्रभु के पाद-पद्मों के निकट पहुँचना चाहते थे। |