श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी69. भक्तों के साथ प्रेम-रसास्वादन
प्रभु इनके इस स्तोत्र पाठ से अत्यन्त ही प्रसन्न हुए और इनके मस्तक पर ‘रामदास’ शब्द लिख दिया। निम्न-श्लोक में इस घटना का कैसा सुन्दर और सजीव वर्णन है- वे प्रभु राजसिंह श्रीरामचन्द्र जी के इन आठ श्लोकों को सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और वैद्यवर मुरारी गुप्त के मस्तक पर अपने श्रीचरणों को रखकर उनसे कहने लगे-‘तुम्हें मेरी कृपा से श्रीरामचन्द्र जी की अविरल भक्ति प्राप्त हो।’ ऐसा कहकर प्रभु ने उनके मस्तक पर ‘रामदास’ ऐसा लिख दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिनके दीप्तिमान मुकुट में स्थित मणियों से सम्पूर्ण दिशाएँ उद्भासित हो रही हैं, जिनके कानों में बृहस्पति और शुक्राचार्य के समान दो कुण्डल शोभा दे रहे हैं एवं जिनका मुखमण्डल कलंकरहित चन्द्रमा के समान शीतलता और सुख प्रदान करने वाला है, ऐसे तीनों लोकों के स्वामी श्रीरामचन्द्र जी का हम भक्ति-भाव से स्मरण करते हैं।
उदीयमान सूर्य की किरणों से विकसित हुए कमल के समान जिनके आनन्ददायक बड़े-बड़े़ सुन्दर नेत्रयुगल हैं, बिम्बाफल के समान जिनके मनोहर अरुण रंग के ओष्ठद्वय हैं एवं मन को हरने वाली जिनकी नुकीली नासिका हैं, जिनके मनोहर हास्य के सम्मुख चन्द्रमा की किरणें भी लज्जित हो जाती हैं, ऐसे त्रिभुवन के गुरु श्रीरामचन्द्र जी का भक्तिभाव से हम भजन करते हैं। मुरारीकृ. चैतन्य-च.