श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी62. घर-घर में हरिनाम का प्रचार
लोग इन्हें भिखारी समझकर भाँति-भाँति की भिक्षा लेकर इनके समीप आते। ये कहते हम अन्न के भिखारी नहीं हैं, हम तो भगवन्नाम के भिखारी हैं। आप लोग एक बार अपने मुख से श्रीहरि के- श्रीकृष्ण! गोविंद! हरे मुरारे! हे नाथ! नारायण! वासुदेव! इन सुमधुर नामों का उच्चारण करके हमारे हृदयों को शीतल कीजिये, यही हमारे लिये परम भिक्षा है। लोग इनके इस प्रकार के मार्मिक वाक्यों को सुनकर प्राभावान्वित हो जाते और उच्च स्वर से सभी मिलकर हरि नामों का संकीर्तन करने लगते। इस प्रकार ये एक द्वार से दूसरे द्वार पर जाने लगे। ये जहाँ भी जाते, लोगों की एक बड़ी भीड़ इनके साथ हो लेती और ये सभी से उच्च स्वर से हरिकीर्तन करने को कहते। सभी लोग मिलकर इनके पीछे नाम-संकीर्तन करते जाते। इस प्रकार मुहल्ले-मुहल्ले और बाजार-बाजार में चारों ओर भगवान् के सुमधुर नामों की ही गूंज सुनायी देने लगी। नित्यानंद रास्ते चलते-चलते भी अपनी चंचलता को नहीं छोड़ते थे। कभी रास्ते में साथ चलने वाली किसी लड़के को धीरे से नोंच लेते, वहा चौंककर चारों ओर देखने लगता, तब ये हंसने लगते। कभी दो लड़कों के सिरों को सहसा पकड़कर जल्दी से उन्हें लड़ा देते। कभी बच्चों के साथ मिलकर नाचने ही लगते। छोटे-छोटे बच्चों को द्वार पर जहाँ भी खड़ा देखते उनकी ओर बंदर का-सा मुख बनाकर बंदर की तरह ‘खौ-खौ’ करके घुड़की देने लगते। बच्चा रोता हुआ अपनी माता की गोदी में दौड़ा जाता और ये आगे बढ़ जाते। कोई-कोई आकर इन्हें डांटता, किंतु इनके लिये डांटना और प्यार करना दोनों समान ही था। उसे गुस्से में देखकर आप उपेक्षा के भाव से कहते ‘कृष्ण-कृष्ण कहो’ ‘कृष्ण-कृष्ण'’। व्यर्थ में जिह्व को क्यों कष्ट देते हो। यह कहकर अपने कोकिल-कूजित कमनीय कण्ठ से गायन करने लगते – |