श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी48. स्नेहाकर्षण
इन बातों को भक्त मन्त्रमुग्ध की भाँति चुपचाप पास में बैठे हुए आश्चर्य के साथ सुन रहे थे। मुरारी गुप्त ने धीरे से श्रीवास से पूछा- ‘इन दोनों की बातों से पता हीं नहीं चलता कि इनमें कौन बड़ा है और कौन छोटा?’ धीरे-ही-धीरे श्रीवास पण्डित ने कहा- ‘किसी ने शिव जी से जाकर पूछा कि आपके पिता कौन हैं?’ इस पर शिव जी ने उत्तर दिया- ‘विष्णु भगवान।’ उसी ने जाकर विष्णु भगवान से पूछा कि ‘आपके पिता कौन हैं?’ हँसते हुए विष्णु जी ने कहा- देवाधिदेव श्रीमहादेव जी ही हमारे पिता हैं। इस प्रकार इनकी लीला ये ही समझ सकते हैं, दूसरा कोई क्या समझे? नन्दनाचार्य इन सभी लीलाओं को आश्चर्य के साथ देख रहे थे, उनका घर प्रेम का सागर बना हुआ था, जिसमें प्रेम की हिलोरें मार रही थीं। करुणक्रन्दन और रुदन की हृदय को पिघलाने वाली ध्वनियों से उनका घर गूँज रहा था। दोनों ही महापुरुष चुपचाप पश्यन्ती भाषा में न जाने क्या-क्या बातें कर रहे थे, इसका मर्म वे ही दोनों समझ सकते थे। वैखरी वाणी को बोलने वाले अन्य साधारण लोगों की बुद्धि के बाहर की ये बातें थीं। |