श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी26. पूर्व बंगाल की यात्रा
एक दिन महामहिम निमाई पण्डित एकान्त स्थान में बैठे हुए थे। उसी समय एक तेजस्वी ब्राह्मण उनके समीप आया। ब्राह्मण के चेहरे से उसकी नम्रता, शीलता, पवित्रता ओर प्रभु-प्राप्ति के लिये विकलता प्रकट हो रही थी। ब्राह्मण अपनी वाणी से निरन्तर भगवान के सुमधुर नामों का उच्चारण कर रहा था। उसने आते ही इनके चरण पकड़ लिये और फूट-फूटकर रोने लगा। इन्होंने उस ब्राह्मण को उठाकर गले से लगाया और अपना कोमल कर उसके अंग पर फेरते हुए बोले- ‘आप यह क्या कर रहे हैं, आप तो हमारे पूज्य हैं, हम तो अभी बालक हैं। आप स्वयं हमारे पूजनीय हैं।’ ब्राह्मण इनके पैरों को पकड़े हुए निरन्तर रुदन कर रहा था, वह कुछ सुनता ही नहीं था, बस, हिचकियाँ भर-भरकर जोरों से रोता ही था। प्रभु ने आश्वासन देते हुए कहा- ‘बात तो बताओ, इस प्रकार रुदन क्यों कर रहे हों तुम पर क्या विपत्ति है, मंगलमय भगवान तुम्हारा सब भला ही करेंगे, मुझे अपने दुःख का कारण बताओ।’ प्रभु के इस प्रकार बहुत आश्वासन देने पर ब्राह्मण ने कहा- ‘प्रभो! मैं बड़ा ही अधम और साधन शून्य दीन-हीन ब्राह्मण-बन्धु हूँ। अभी तक इस संसार में मनुष्य का साध्य क्या है, उस तक पहुँचने का असली साधन कौन-सा है, इस बात को नहीं समझ सका हूँ। मैं सदा इसी चिन्ता में मग्न रहा करता था कि साध्य-साधन का निर्णय कैसे हो, भगवान से नित्य प्रार्थना किया करता था कि- ‘भगवन! मैं तुम्हारी स्तुति-प्रार्थना कुछ नहीं जानता। आपको कैसे पुकारा जाता है, यह बात भी नहीं जानता। इस दीन-हीन कंगाल को आप स्वयं ही किसी प्रकार साध्य-साधन का तत्त्व समझा दीजिये।’ अन्तर्यामी भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली। कल रात में मैं सो रहा था। स्वप्न में एक महापुरुष ने आकर मुझसे कहा- ‘पूर्व बंगाल में जो आजकल निमाई पण्डित भ्रमण कर रहे हैं उन्हें तुम साधारण पण्डित ही न समझो, वे साक्षात नारायणस्वरूप हैं, उन्हीं के पास तुम चले जाओ, वे ही तुम्हारी शंका का समाधान करके तुम्हें साध्य-साधन का मर्म समझावेंगे।’ बस, आँख खुलते ही मैं इधर चला आया हूँ। आज मेरा जीवन सफल हुआ, मैं श्रीचरणों के दर्शन करके कृतकृत्य हो गया। प्रभु तनिक मुसकराये और फिर धीरे-धीरे तपन मिश्र से कहने लगे- ‘महाभाग! आपके ऊपर श्रीकृष्ण भगवान की बड़ी कृपा है। आपकी अन्तरात्मा अत्यन्त पवित्र है, इसीलिये आप सभी में भगवद्भावना करते हैं। मनुष्य जैसी भावना किया करता है, वैसे ही रात्रि में स्वप्न देखता है। आप इस बात को सत्य समझें और किसी के सामने प्रकाशित न करें।’ |