श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी158. भक्त कालिदास पर प्रभु की परम कृपा
इनके अतिरिक्त ये योग, यज्ञ, तप, पूजा, पाठ, अध्ययन और अभ्यास आदि कुछ भी नहीं करते थे। इनका विश्वास था कि हमें इन्हीं साधनों के द्वारा प्रभुपादपद्मों की प्रीति प्राप्त हो जायगी। ऐसा दृढ़ विश्वास था, इसमें बनावटी गन्ध तक भी नहीं थी। इनके गाँव ही एक झा नाम के भूमि माली जाति के शूद्र भगवत-भक्त थे। उनकी पत्नी भी अत्यन्त ही पतिपरायणा सती साध्वी नारी थी। दोनों की खूब भक्ति भाव से श्रीकृष्ण-कीर्तन किया करते थे। एक दिन भक्त कालिदास जी उन दोनों भक्त दम्पति के दर्शनों के निमित्त उनके घर पर गये। उन दिनों आमों की फसल थी, इसलिये वे उनकी भेंट के लिये बहुत बढ़िया बढ़िया सुन्दर आम ले गये थे। प्रतिष्ठित कुलोद भूत कालिदास को अपनी टूटी झोंपड़ी में आया देखकर उस भक्त दम्पति के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उन दोनों ने उठकर कालिदास जी की अथ्यर्थना की और उन्हें बैठने के लिये एक फटा सा आसन दिया। कालिदास जी के सुख पूर्वक बैठ जाने पर कुछ लज्जित भाव से अत्यन्त की कृतज्ञता प्रकट करते हुए झाड़ू भक्त कहने लगे-‘महाराज ! आपने अपनी पदधूलि से इस शूद्राधम की कुटी को परम पावन बना दिया। आप-जैसे श्रेष्ठ पुरुषों का हम-जैसे नीच जाति के पुरुषों के यहाँ आना साक्षात भगवान के पधारने के समान है। हम एक जो वैसे ही शूद्र हैं दूसरे धनहीन हैं, फिर आपकी किस प्रकार सेवा करें। आप-जैसे अतिथि हमारे यहाँ काहे को आने लगे, हम आपका सत्कार किस वस्तु से करें। आज्ञा हो तो किसी ब्राह्मण के यहाँ से कोई वस्तु बनवा लावें।’ कालिदास जी ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा- ‘आप दोनों के शुभ दर्शनों से ही मेरा सर्वश्रेष्ठ सत्कार हो चुका। यदि आप कृपा करके कुछ करना ही चाहते हैं, तो यही कीजिये कि अपने चरणों को मेरे मस्तक पर रखकर उनकी पावन पराग से मेरे मस्तक को पवित्र बना दीजिये। यही मेरी आपसे प्रार्थना है, इसी के द्वारा मुझे सब कुछ मिल जायेगा।’ अत्यन्त ही दीनता के साथ गिड़गिड़ाते हुए झाड़ू भक्त ने कहा- ‘स्वामी ! आप यह कैसी भूली-भूली सी बातें कर रहे हैं। भला, हम जाति के शूद्र, धर्म कर्म से हीन, आपके शरीर को स्पर्श करने तक के भी अधिकारी तीे नहीं हैं, फिर हम आपको अपने पैर कैसे छुआ सकते हैं। हमारी यही आपसे प्रार्थना है कि ऐसी पाप चढ़ाने वाली बात फिर कभी भी अपने मुँह से न निकालें। इससे हमारें सर्वनाश होने की सम्भावना है।’ |