श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी37. नदिया में प्रत्यागमन
प्रभु अन्तिम शब्दों को ठीक-ठीक कह भी न पाये थे कि वे बीच में ही बेहोश होकर गिर पड़े। लोगों को इनकी ऐसी दशा देखकर महान आश्चर्य हुआ। सभी भौचक्के से एक-दूसरे की ओर देखने लगे। तीन महीने पहले उन्होंने जिस निमाई को देखा था, आज उसे इस प्रकार प्रेम में विह्वल देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। निमाई लम्बी-लम्बी साँसें ले रहे थे। उनकी आँखों में से निरन्तर अश्रु निकल रहे थे, शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था। थोड़ी देर में वे ‘हा कृष्ण! हा प्राणनाथ! प्यारे! ओ मेरे प्यारे! मुझे छोड़कर कहाँ चले गये?’ यह कहते-कहते बहुत जोरों के साथ रुदन करने लगे। सभी ने शान्त करने की चेष्टा की, किन्तु परिणाम कुछ भी नहीं हुआ। इन्होंने रूँधे हुए कण्ठ से कहा- ‘आज हमारी प्रकृति स्वस्थ नहीं है। कल हम स्वयं शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी के निवासस्थान पर आकर अपनी यात्रा का समाचार सुनायँगे।’ इतना सुनकर इनके सभी साथी अपने-अपने स्थानों के लिये चले गये। अब तो इनके इस अद्भुत नूतन भाव की नवद्वीप में स्थान-स्थान पर चर्चा होने लगी। हँसते-हँसते श्रीमान पण्डित ने श्रीवास आदि भक्तों से कहा- ‘आज हम आप लोगों को बड़ी ही प्रसन्नता की बात सुनाना चाहते हैं, आप लोग सभी सुनकर परम आश्चर्य करेंगे। गया में जाकर निमाई पण्डित की तो काया पलट ही हो गयी। वे श्रीकृष्ण-प्रेम में विह्वल होकर कभी रोते हैं, कभी गाते हैं, कभी हँसते हैं और कभी-कभी जोरों से नृत्य करने लगते हैं। उनके जीवन में महान परिवर्तन हो गया है। आज तक किसी को स्वप्न में भी ऐसी आशा नहीं थी कि उनका जीवन इस प्रकार एक साथ ही इतना पलटा खा जायगा।’ परम प्रसन्नता प्रकट करते हुए श्रीवास पण्डित ने कहा- ‘सचमुच ऐसी बात है? तब तो फिर वैष्णवों के भाग्य ही खुल गये। वैष्णवों का एक प्रधान आश्रय हो गया। निमाई पण्डित के वैष्णव हो जाने पर भक्ति फिर से सनाथ हो गयी। आप हँसी तो नहीं कर रहे हैं? क्या यथार्थ में ऐसी बात है?’ जोर देकर श्रीमान पण्डित ने कहा- ‘मैं शपथपूर्वक कहता हूँ, हँसी का क्या काम? आप स्वयं जाकर देख आइये, वे तो बालकों की भाँति फूट-फूटकर रुदन कर रहे हैं। कल सदाशिव, मुरारी आदि सभी लोगों को शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी के स्थान पर बुलाया है, वहाँ अपनी यात्रा का समस्त वृत्तान्त सुनावेंगे।’ इस बात को सुनकर श्रीवास आदि सभी भक्तों को परम सन्तोष हुआ। किन्तु गदाधर पण्डित को अब भी कुछ सन्देह ही बना रहा। उन्होंने निश्चय किया कि ब्रह्मचारी के घर में छिपकर सब बातें सुनूँगा, देखें उन्हें यथार्थ में श्रीकृष्ण-प्रेम उत्पन्न हुआ है या नहीं। यह सोचकर वे दूसरे दिन नियत समय के पूर्व ही शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी के घर में जा छिपे। |