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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
4. विराट पर्व
अध्याय : 12-23
हे द्रौपदी! धर्म को न छोड़ो। क्रोध का त्याग करो। तुम्हारे इस उपालम्भ को राजा युधिष्ठिर सुनते तो प्राण छोड़ देते। अर्जुन भी जीते न रहते। उनके बिना क्या मैं भी जी सकता? शर्यात की पुत्री सुकन्या, नारायणी चन्द्रसेना, वैदेही जानकी और लोपामुद्रा ने अपने पतियों के लिए क्या-क्या नहीं सहा? हे कल्याणी, अब अधिक नहीं सहना होगा। डेढ़ मास और है, पुनः तेरह वर्ष पूरे होने पर तुम रानी बनोगी।’’ भीम के सान्त्वनापूर्ण वचन सुनकर द्रौपदी ने कहा, ‘‘हे भीम, मैंने राजा युधिष्ठिर को उपालम्भ नहीं दिया, अपने दुःख के कारण रोकर कुछ कहा। अब जो उचित हो, तुम करो। दुष्टात्मा कीचक अपने भाव को रानी सुदेष्णा से प्रकट करके मुझे तंग करता है। मैंने उसे अपने गन्धर्व पतियों का भय दिखलाया, पर वह नहीं मानता। यदि इसी प्रकार वह मुझे पीड़ित करता रहा तो मैं प्राण छोड़ दूंगी। आप लोग अपने समय का पालन करके राजा होंगे, पर आपकी भार्या न रहेगी। यदि कल सूर्योदय तक कीचक जीवित रह गया तो मैं विष घोलकर पी लूंगी, पर कीचक के हाथ नहीं पडूंगी।’’ यों कहकर द्रौपदी फिर रुदन करने लगी। तब भीम ने प्रतिज्ञा की, ‘‘हे भद्रे, जैसा कहती हो, मैं करूंगा। आज ही बान्धवों के साथ कीचक का मैं वध करूंगा।’’ अगले दिन प्रातःकाल होते ही कीचक राजकुल में द्रौपदी के पास आकर कहने लगा, ‘‘राजा के देखते हुए मैंने लात से तुम्हें मारा, पर तुम्हें रक्षा प्राप्त नहीं हुई। मत्स्यराज तो नाम के राजा हैं। सच्चा राजा तो मत्स्यों का सेनापति मैं ही हूँ। मैं तुम्हारा दास हूँ, मेरे साथ सुख पाओ। दिन भर के लिए सौ निष्क तुम्हें देता हूँ। द्रौपदी ने उत्तर दिया, ‘‘अच्छा कीचक, आज एक शर्त मुझसे करो। तुम्हारा कोई सखा या भाई मुझसे तुम्हारा मिलना न जान पावे, क्योंकि गन्धर्वों को सूचना मिल गई तो मुझे डर है। ऐसी प्रतिज्ञा करो तो मैं तुम्हारे वश में हूँ।’’ यह सुनते ही कीचक प्रसन्नता से उछल पड़ा और दोनों ने यह तय किया कि राजा नर्तनागार में रात्रि के समय मिलेंगे। वहाँ अंधेरे में गन्धर्वों को भी क्या पता चलेगा तब कीचक ने आधा दिन एक महीने के समान किसी प्रकार बिताया। उधर द्रौपदी ने रसोईघर में भीम को सूचना दी कि आज रात में शून्य नर्तनागार में पहुँचकर मददर्पित कीचक का वध करो और मुझ दुःखिनी के आंसू पोंछो भीमसेन ने उसे आश्वासन दिया। रात्रि के समय भीमसेन पहले ही पहुँचकर वहाँ छिप गया कीचक भी सजकर नर्तनागार के संकेतस्थल पर पहुँचा। उसने एकान्त में बैठे हुए भीम को देखकर उसे सैरन्ध्री समझकर छेड़ते हुए कहा, ‘‘देखो, मैं कैसा सुन्दर और दर्शनीय हूँ।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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