श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी85. शान्तिपुर में अद्वैताचार्य के घर
‘बड़ी देर तक माता इसी प्रकार प्रलाप करती रही। कुछ धैर्य धारण करके आचार्य ने संन्यास की सभी बातें बता दीं। उनके सुनते ही माता फिर बेहोश हो गयी और विष्णुप्रिया भी अचेतन होकर शचीदेवी के चरणों में गिर पड़ी। इस प्रकार रुदन करते-करते आधी से अधिक रात्रि बीत गयी। शचीमाता की बहिन ने खाने के लिये बहुत अधिक आग्रह किया, किंतु माता ने कुछ भी नहीं खाया। उसी हालत में वह विष्णुप्रिया को लिये हुए रात्रि भर पड़ी रोती रही। प्रात:काल आचार्य उन्हें घर पहुँचा आये। इस प्रकार श्रीवास, वासुदेव, नंदनाचार्य, गंगादास आदि सभी बिना कुछ खाये-पीये प्रभु के ही लिये अधीर होकर विलाप करते रहते थे। इस प्रकार तीसरे ही दिन नित्यानंद जी भी नवद्वीप आ पहुँचे। नित्यानंद जी के आगमन का समाचार सुनकर बात-की-बात में सम्पूर्ण नगर के नर-नारी, बालक-वृद्ध तथा सभी श्रेणी के पूरूष उनके पास आ-आकर प्रभु का समाचार पूछने लगे। कोई पूछता- ‘प्रभु कहाँ है?’ कोई कहता- ‘यहाँ कब आवेंगे?’ कोई कहता- ‘हमें स्थान बता दो हम अभी जाकर उनके दर्शन कर आवें।’ जो लोग महाप्रभु से द्वेषभाव रखते थे, वे भी अपने कुकृत्यपर पश्चात्ताप करते हुए नित्यानन्द जी से रोते-रोते अत्यन्त ही दीनभाव से सरलतापूर्वक कहने लगे- ‘श्रीपाद! हम दुष्टों ने ही मिलकर प्रभु को गृहत्यागी-विरागी बनाया। हमारे ही कारण संन्यासी हुए। हमीलोग प्रभु को नवद्वीप से निर्वासित करने में कारण हैं। प्रभो! हमारी निष्कृति का भी कोई उपाय हो सकता है? दयालु गौरांग क्या हम-जैसे पापियों को भी क्षमा प्रदान कर सकते हैं? वे क्षमा चाहे न करें, हम अपने पापों का फल भोगने के लिये तैयार हैं, किंतु वे एक बार कृपा की दृष्टि से हमारी ओर देखभर लें। क्या प्रभु के दर्शन हम लोगों को कभी हो सकेंगे? क्या इस जीवन में गौरचन्द्र के सुन्दर तेजयुक्त श्रीमुख के दर्शनों का सौभाग्य हम लोगों को कभी प्राप्त हो सकता है? |