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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
7. गीता में भगवन्नाम
ज्ञातव्य
उत्तर- यद्यपि सांसारिक तुच्छ कामनाओं की पूर्ति के लिए नाम को खर्च करना बुद्धिमानी नहीं है, तथापि अगर सकामभाव से भी नामजप किया जाए तो भी नाम का माहात्म्य नष्ट नहीं होता। नामजप करने वालो को पारमार्थिक लाभ होगा ही; क्योंकि नाम का भगवान् के साथ साक्षात् संबंध है। हाँ, नाम को सांसारिक कामना पूर्ति में लगाकर उसने नाम का जो तिरस्कार किया है, उससे उसको पारमार्थिक लाभ कम होगा। अगर वह तत्परता से नाम में लगा रहेगा, नाम के परायण रहेगा तो नाम की कृपा से उसका सकामभाव मिट जाएगा। जैसे, ध्रुव जी ने सकामभाव से, राज्य की इच्छा से ही नामजप किया था। परंतु जब उनको भगवान् के दर्शन हुए, तब राज्य एवं पद मिलने पर भी वे प्रसन्न नहीं हुए, प्रत्युत उनको अपने सकामभाव का दुःख हुआ अर्थात् उनका सकामभाव मिट गया। जो सकामभाव से नाम जप किया करते हैं, उनको भी नाम-महाराज की कृपा से अंत समय में नाम याद आ सकता है और उनका कल्याण हो सकता है!
उत्तर- हाँ, ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।’ –इस मंत्र का साढ़े तीन करोड़ जप करने से भगवान् के दर्शन हो जाते हैं- ऐसा ‘कलिसंतरणोपनिषद्’ में आया है। ‘राम’- नाम का तेरह करोड़ जप करने से भगवान् के दर्शन हो जाते हैं- ऐसा समर्थ रामदास बाबा ने ‘दासबोध’ में लिखा है। परंतु नाम में, भगवान् में श्रद्धा विश्वास और प्रेम अधिक हो तो उपर्युक्त संख्या से पहले भी भगवान् के दर्शन हो सकते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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