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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
25. गीता में जीव की गतियाँ
भगवान् ने गीता में जीव की मुख्यरूप से तीन गतियों का वर्णन किया है- उर्ध्वगति, अधोगति और मध्यगति। जैसे- सत्त्वगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरने वाला और सत्त्वगुण में स्थित रहने वाला मनुष्य ऊर्ध्वगति में जाता है।[1] तमोगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरने वाला और तमोगुण में स्थित रहने वाला मनुष्य अधोगति में जाता है।[2] रजोगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरने वाला और रजोगुण में स्थित रहने वाला मनुष्य मध्यगति में जाता है।[3] इन तीनों गतियों का विस्तार से वर्णन इस प्रकार है- ऊर्ध्वगति - ऊर्ध्वगति में दो प्रकार के जीव जाते हैं- 1. लौटकर न आने वाले-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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