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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
68. गीता में भगवान् का आश्वासन
परमात्मा प्राप्ति कोई विघ्न-बाधा हैं ही नहीं। यह मार्ग सम्पूर्ण विघ्न-बाधाओं से रहित है-'एष निषाण्टक: पंथा:।' इस मार्ग में आँखे मीचकर दौड़ने पर भी मनुष्य न तो ठोकर खाता है और न गिरता ही है। जिस साधक का अपने कल्याण का, परमात्मा-प्राप्ति हो उद्देश्य, लक्ष्य, ध्येय बन जाता है, उसका बहुत काम हो जाता है। स्वयं भगवान् ने अपने साधक मात्र को आश्वासन देते हुए कहा हैकि अपने कल्याण के लिये कर्म करने वाले की दुर्गति नहीं होती -'न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गति तात गच्छति'[1] जो केवल परमात्मा के लिये ही सब काम करता है, उसके स्म्पूर्ण कर्म सत् हो जाते हैं।[2] और सत् का कभी अभाव (नाश) नहीं होता। समता का थोड़ा-सा भी अनुष्ठान जन्म-मरणरुप महान् भय से रक्षा कर लेता है- 'स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्'[3] वेदों में, यज्ञों में, तपों में और दानों में जो पुण्य फल कहे गये हैं, उन सबको योगी अतिक्रमण कर जाता है।[4] योगी ही नहीं, योग (समता) का जिज्ञासु भी वेदों में कहे गये सकाम अनुष्ठानों का अतिक्रमण कर जाता है -'जिज्ञासुरषि योग्यस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते'[5] जिन्होंने अपनी कहलाने वाली वस्तुओं सहित अपने-आपको भगवान् के समर्पित कर दिया हैं, ऐसे अनन्य भक्तो का उद्धार भगवान् बहुत जल्दी कर देते हैं।[6] ऐसे भक्तों का योगक्षेम (अप्राप्ति की प्राप्ति कराना और प्राप्त की रक्षा करना) भी भगवान् स्वयं वहन करते हैं-'तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्'[7] मत करो- ‘मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव’[8] अगर साधक अपने पापों को लेकर सिद्धि के विषय में हताश होता है तो उसके लिए भगवान् आश्वासन देते हैं कि मैं तुम्हें संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा; अतः तुम चिन्ता मत करो- ‘अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः’[9][10] साधन में साधन और सिद्धि के विषय में चिन्ता तो नहीं होनी चाहिए, पर भगवान् की प्राप्ति के लिए व्याकुलता जरूर होनी चाहिए। कारण कि चिन्ता भगवान् से दूर करने वाली है और व्याकुलता भगवान् की प्राप्ति कराने वाली है। चिन्ता निराशा होती है और व्याकुलता में भगवान् की आशा दृढ़ होती है। अतः साधक को चिन्ता कभी करनी ही नहीं चाहिए और अपने साधन में तत्परता से लगे रहना चाहिए। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (6।40)
- ↑ (17।27)
- ↑ (2।40)
- ↑ (8।28)
- ↑ (6।44)
- ↑ (12।7)
- ↑ (9।22)
- ↑ (16।5)
- ↑ (18।66)
- ↑ भगवान् के आश्वासन की बात इन श्लोकों में भी आयी है- दूसरे अध्याय का बहत्तरवाँ श्लोक, चौथे अध्याय का छत्तीसवाँ श्लोक, पाँचवें अध्याय का उन्तीसवाँ श्लोक, छठे अध्याय का इकतीसवाँ श्लोक, सातवें अध्याय का चौदहवँ श्लोक, आठवें अध्याय का पाँचवाँ और चौदहवाँ श्लोक, नवें अध्याय का तीसवाँ और अकतीसवाँ श्लोक, दसवें अध्याय का नवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ श्लोक, ग्यारहवें अध्याय का पचपनवाँ श्लोक, बारहवें अध्याय का सातवाँ श्लोक, तेरहवें अध्याय का पचीसवाँ और चौंतीसवाँ श्लोक, चौदहवें अध्याय का छब्बीसवाँ श्लोक, पंद्रहवें अध्याय का उन्नीसवाँ श्लोक और अठारहवें अध्याय का अट्ठावनवाँ श्लोक।
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