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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
7. गीता में भगवन्नाम
ज्ञातव्य
उत्तर- हाँ, भगवन्नाम के जप से, कीर्तन से प्रारब्ध बदल जाता है, नया प्रारब्ध बन जाता है; जो वस्तु न मिलने वाली हो वह मिल जाती है; जो असंभव है, वह संभव हो जाता है- ऐसा संतों का, महापुरुषों का अनुभव है। जिसने कर्मों के फल का विधान किया है, उसको कोई पुकारे, उसका नाम ले तो नाम लेने वाले का प्रारब्ध बदलने में आश्चर्य ही क्या है? ये जो लोग भीख माँगते फिरते हैं, जिनको पेटभर खाने को भी नहीं मिलता, वे अगर सच्चे हृदय में नामजप में लग जायँ तो उनके पास रोटियों का, कपड़ों का ढेर लग जाएगा; उनको किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। परंतु नामजप को प्रारब्ध बदलने में, पापों को काटने में नहीं लगाना चाहिए। जैसे अमूल्य रत्न के बदले में कोयला खरीदना बुद्धिमानी नहीं है, ऐसे ही अमूल्य भगवन्नाम तो तुच्छ कामनापूर्ति में लगाना बुद्धिमानी नहीं हैं।
उत्तर- नामजप से ज्ञात, अज्ञात आदि सभी पापों का प्रायश्चित हो जाता है, सभी पाप नष्ट हो जाते हैं; परंतु नाम पर श्रद्धा विश्वास न होने से शास्त्रों में तरह-तरह के प्रायश्चित बताये गये हैं। अगर नाम पर श्रद्धा विश्वास हो जाय तो दूसरे प्रायश्चित करने की जरूरत नहीं है। नामजप करने वाले भक्त से अगर कोई पाप भी हो जाए, गलती हो जाय तो उसको दूर करने के लिए दूसरा प्रायश्चित करने की जरूरत नहीं है। वह नामजप को ही तत्परता से करता रहे तो सब ठीक हो जाएगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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