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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
21. गीता में भगवान की शक्तियाँ
गीता में भगवान की पाँच शक्तियों का वर्णन हुआ है जैसे- 1. मूलप्रकृति- महाप्रलय के समय सम्पूर्ण प्राणी इसी मूल प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात इसी मूल प्रकृति में लीन होते हैं- 'सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यांति मामिकाम्। कल्पक्षये....'[1] महासर्ग के समय भगवान् इसी मूल प्रकृति को वश में करके अपने-अपने स्वभाव के वश में हुई प्राणियों की रचना करते है- 'प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य.....'[2] और यही प्रकृति भगवान की अध्यक्षता में सम्पूर्ण संसार की रचना करती है।[3] इसी मूल प्रकृति के भगवान ने 'मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्'[4] और 'तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता'[5]- 'इन पदों से सम्पूर्ण प्राणियों का उत्पत्ति-स्थान और अपने को बीज प्रदान करने वाला पिता बताया है। 2. दिव्य चिन्मय शक्ति- भगवान स्वयं जब कभी अवतार लेते हैं, तब इसी दिव्य चिन्मय-शक्ति का आश्रय लेकर लेते हैं। इसी शक्ति से भगवान् भक्तों को आनन्द देने वाली प्रेम की लीला करते हैं। यह शक्ति दिव्य चिन्मय गुणोंवाली होती है। अत: भगवान का अवतारी शरीर भी दिव्य चिन्मय होता है। इसी दिव्य चिन्मय शक्ति को भगवान ने 'प्रकृतिं स्वामन्धिष्ठाय सम्भवामि'[6] पदों से कहा है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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