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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
7. गीता में भगवन्नाम
ज्ञातव्य
उत्तर- एक ‘होना’ होता है और एक ‘करना’ होता है। भाग्य अर्थात् पुराने कर्मों का फल होता है और नये कर्म किए जाते हैं, होते नहीं। जैसे व्यापार करते हैं और नफा-नुकसान होता है; खेती करते हैं और लाभ हानि होती है; मंत्र का सकामभाव से जप (अनुष्ठान) करते हैं और उसका नीरोगता आदि फल होता है। बद्रीनारायण जाते हैं- यह ‘करना’ हुआ और चलते-चलते बद्रीनारायण पहुँच जाते हैं- यह ‘होना’ हुआ। दवा लेते हैं- यह ‘करना’ हुआ और शरीरर स्वस्थ होता है- यह ‘होना’ हुआ। हानि-लाभ, जीना-मरना, यश-अपयश- ये सब होने वाले हैं; क्योंकि ये पूर्वजन्म में ए हुए कर्मों फल हैं[1] परंतु नामजप करना नाय काम है। यह करने का है, होने का नहीं। इसको करने में सब स्वतंत्र हैं। हाँ, इसमें इतनी बात होती है कि अगर क सी ने पहले नाम जप किया हुआ है तो नामजप की महिमा सुनते ही उसकी नामजप में रुचि हो जाएगी और वह सुगमता से होने लग जाएगा। परंतु पहले जिसका नामजप किया हुआ नहीं है, वह अगर नाम की महिमा सुने तो उसकी नामजप में जल्दी रुचि नहीं होगी। अगर नामजप की महिमा कहने वाला अनुभवी हो तो सुनने वाले की भी नाम में रुचि हो जाएगी और उस अनुभवी संग में रहने से उनके लिए नामजप करना भी सुगम हो जाएगा। जो भाग्य में लिखा है, वह फल होता है, नया कर्म नहीं। नामजप करना शुरू कर दें तो वह होने लग जाएगा; क्योंकि नामजप करना नया कर्म, नयी उपासना है। अतः ‘हमारे भाग्य में नामजप करना, सत्संग करना, शुभ कर्म करना लिखा हुआ नहीं है’- ऐसा कहना बिल्कुल बहाने बाजी है। ‘नामजप, सत्संग आदि हमारे भाग्य में नहीं हैं’- ऐसा भाव रखना कुसंग है, जो नामजप आदि करने का भाव का नाश करने वाला है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑
सुनहु भरत की भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनात।
हानि लाभु जीवनु मरनु जुस अपजसु बिधि हाथ।।(मानस 2।171)
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