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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 45-91
भीष्म ने पाण्डवों से दस दिन तक युद्ध किया। संक्षेप में, पहले दिन एक पक्ष के चुने हुए सैनिकों का दूसरे पक्ष के वैसे ही मुड्ढ सैनिकों के साथ द्वन्द्व-युद्ध हुआ। फिर कौरव सेना और पाण्डव सेना परस्पर घमासान युद्ध करने लगीं। इसी दिन अभिमन्यु ने भीष्म के साथ भयंकर युद्ध किया। शल्य ने भी कुछ पराक्रम दिखाया और विराट के पुत्र उत्तर कुमार का वध कर डाला। तब पाण्डवों की ओर से विराट के दूसरे पुत्र श्वेत ने महाभयंकर युद्ध किया। पर वह भीष्म के प्रचण्ड बल के सामने न ठहर सका और मारा गया। तब विराट के तीसरे पुत्र शंख ने अपने दोनों भाइयों के वध से दुःखी होकर भीष्म पर प्रहार किया। यों पहले दिन का युद्ध समाप्त हुआ। पहले दिन के युद्ध में अपने पक्ष की हानि देखकर युधिष्ठिर को चिन्ता हुई, तब कृष्ण ने उन्हें धैर्य दिया। धृष्टद्युम्न ने उत्साह-पूर्वक पाण्डवों की ओर से दूसरे दिन क्रोंचारुण व्यूह का निर्माण किया। इस दिन भीष्म और अर्जुन का युद्ध तथा धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य का भयंकर युद्ध हुआ। भीमसेन ने भी कलिंग और निषादों की सेना से युद्ध किया। तीसरे दिन दोनों पक्ष अपनी-अपनी सेनाओं की व्यूह-रचना करके संग्राम करने लगे। पाण्डव-पक्ष के लोगों ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि कौरव सेना में भगदड़ मच गई। तब दुर्योधन ने भीष्म के पास जाकर उन्हें उलाहना दिया कि आपकी छिपी हुई सहानुभूति पाण्डवों की ओर है। इसे अन्यथा सिद्ध करने के लिए भीष्म ने अद्भुत पराक्रम प्रकट किया, यहाँ तक कि कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर भीष्म को मारने के लिए रथ-चक्र लेकर दौड़े। अर्जुन भी वीर रस में आ गये और उनके द्वारा उस दिन कौरव सेना की पराजय हुई। तीसरे दिन का उफान अपने वेग पर था और चौथे दिन प्रातः काल ही सेनाएं व्यूह रचकर खड़ी हुईं तो भीष्म और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध आरम्भ हो गया। अभिमन्यु और धृष्टद्युम्न ने भी पराक्रम किया; पर इस दिन सबसे अधिक भीमसेन ने गज सेना का संहार करके एवं भीष्म के साथ भी युद्ध में अपने बल का परिचय दिया। घटोत्कच ने भी अपना बल दिखाया। चौथे दिन युद्ध का झुकाव कौरवों के विरुद्ध रहा। पांचवें दिन दुर्योधन बहुत घबराया हुआ था। कौरवों की सेना ने मकर व्यूह रचना की। पाण्डवों ने श्येन व्यूह रचकर उसका उत्तर दिया। युद्ध में पहले भीष्म और भीमसेन और फिर भीष्म और अर्जुन के बीच घनघोर युद्ध हुआ। बीच-बीच में और भी योद्धाओं ने द्वन्द्व-युद्ध में भाग लिया, जैसे- विराट और भीष्म, अश्वत्थामा और अर्जुन, दुर्योधन और भीमसेन तथा अभिमन्यु और लक्ष्मण (दुर्योधन का पुत्र)। इन्होंने आमने-सामने डटकर संग्राम किया। सात्यकि और भूरिश्रवा जो चौथे दिन के युद्ध में मुठभेड़ कर चुके थे, आज भी पुराने वैर को साधने पर उतर आये और भूरिश्रवा ने सात्यकि के दस पुत्रों का वध कर डाला। उत्तप्त होकर अर्जुन ने भी अपना पराक्रम दिखाया। छठे दिन दोनों सेनाओं के वीर बराबरी के उत्साह से भरे हुए थे। उस दिन पाण्डव सेना ने मकर व्यूह और कौरव सेना ने क्रौञ्चव्यूह बनाया। धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य दोनों में खुलकर युद्ध हुआ। भीमसेन और दुर्योधन भी एक-दूसरे से घमासान युद्ध करने लगे, पर दुर्योधन की पराजय हुई। इसी दिन अभिमन्यु ने अन्य द्रौपदीपुत्रों के साथ मिलकर धृतराष्ट्र के पुत्रों से युद्ध किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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