विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 45-91
55. भीष्म-युद्ध-वर्णन
सातवें दिन कौरव सेना ने मण्डल व्यूह और पाण्डव सेना ने वज्र व्यूह बनाकर भीषण संग्राम किया। द्रोणाचार्य को विराट ने ललकारा। तब विराट का पुत्र शंख, जो पहले दिन के युद्ध में भीष्म से लड़ चुका था, द्रोण के सम्मुख आया, पर वह जूझ गया। तब शिखण्डी और अश्वत्थामा, सात्यकि और अलम्बुष, धृष्टद्युम्न और दुर्योधन एवं भीमसेन और कृतवर्मा इन वीर योद्धाओं में परस्पर संग्राम हुआ। इसी दिन भगदत्त के सामने घटोत्कच की पराजय हुई। नकुल और सहदेव ने मद्रराज शल्य पर विजय प्राप्त की। युधिष्ठिर ने भी राजा श्रुतायु से युद्ध करके उसे पराजित किया। भूरिश्रवा से धृष्टकेतु और अभिमन्यु से चित्रसेन पराजित हुए। इस दिन के युद्ध की एक बड़ी घटता त्रिगर्त देश के राजा सुशर्मा का, जो संशप्तकगणों का भी नेता था, अर्जुन के साथ युद्धारम्भ करना था। उसकी बहुत इच्छा थी कि अर्जुन को युद्ध में जीतूं; पर अर्जुन के पराक्रम के सामने वह न ठहर सका। इसी दिन भीष्म और युधिष्ठिर का भी युद्ध हुआ। आठवें दिन दोनों सेनाओं के घमासान युद्ध के अतिरिक्त मैदान घटोत्कच के हाथ रहा। उसने दुर्योधन एवं द्रोण आदि प्रमुख वीरों के साथ भयंकर युद्ध किया। उसकी माया से मोहित होकर कौरव सेना भागने लगी। तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त ने घटोत्कच को युद्ध में रोका। भगदत्त ने भीमसेन के साथ भी घोर युद्ध किया। अभिमन्यु ने अम्बष्ठ राजा के साथ घोर युद्ध किया। आठवें दिन की भयानक स्थिति से चिन्तित होकर दुर्योधन ने भीष्म से कहा, “पितामह, ऐसे कब तक काम चलेगा? या तो आप स्वयं पाण्डवों को मारिए या कर्ण को युद्ध के लिए आज्ञा दीजिए।” भीष्म ने दुर्योधन को समझाया और स्वयं भयंकर युद्ध करने की प्रतिज्ञा की। दिन के पहले भाग में पाण्डव सेना प्रबल रही। द्रौपदी के पांचों पुत्र और अभिमन्यु ने एक साथ राक्षसराज अलम्बुष के साथ युद्ध करके कौरव सेना को युद्ध-भूमि से खदेड़ दिया। इधर, अर्जुन ने भीष्म के साथ और सात्यकि ने कृपाचार्य, अश्वत्थामा और द्रोण के साथ युद्ध किया। अर्जुन ने भी द्रोण और त्रिगर्तराज सुशर्मा के साथ संग्राम किया। अर्जुन के द्वारा त्रिगर्त सेना की पराजय हुई। इधर, अभिमन्यु से चित्रसेन, द्रोण से द्रुपद और भीमसेन से बाह्लीक की हार हुई। युधिष्ठिर और नकुल, सहदेव ने शकुनि की घुड़सवार सेना को हराया और फिर वे सब मद्रराज शल्य की सेना पर टूट पड़े। यह सब देखकर भीष्म ने इस दिन अपने पराक्रम का पूरा प्रयोग करते हुए घोर युद्ध किया और पाण्डव सेना में भगदड़ मच गई। कृष्ण इसे सहन न कर सके और रथ से कूदकर क्रोधपूर्वक भीष्म की ओर दौड़े। उन्हें सन्देह था कि अर्जुन पूरे मन से युद्ध नहीं कर रहा है। अर्जुन ने आगे बढ़कर कृष्ण को रोकते हुए उन्हें उनकी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाया और यह आश्वासन दिया कि वे स्वयं अपने बल का पूरा प्रयोग करते हुए भीष्म को जीतेंगे। रात में पाण्डवों की गुप्त मंत्रणा हुई। अगले दिन जब दोनों पक्ष की सेनाएं तैयार हो गईं तो अर्जुन ने शिखण्डी को आगे करके भीष्म पर आक्रमण कराया। दोनों पक्ष के महारथी घोर युद्ध करने लगे, किन्तु शिखण्डी की आड़ लेकर अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को बींधकर रथ से गिरा दिया। भीष्म युद्ध भूमि में शर-शय्या पर स्थित होकर प्राण-त्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा करने लगे। इस प्रकार भीष्म के सेनापतित्व में दस दिन का युद्ध समाप्त हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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