विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 9-10
सप्तद्वीपी भूगोल के नए संस्करण में ‘शाकद्वीप’ का तथ्यात्मक वर्णन जोड़ दिया गया, जो उस समय की आंखों-देखी सूचनाओं के आधार पर इकट्ठा किया गया था। शाकद्वीप के साथ इस प्रकार का परिचय एक ओर यूनानी इतिहास-लेखक हीरोदोतस को ज्ञात था, जैसा उसके इतिहास से प्रकट होता है। दूसरी ओर ईरान सम्राट ‘दारा’ को भी ऐसा ही परिचय था, जैसा उसके ‘भगस्थान’ (बिहिश्तून) और ‘शूषा’ के लेखों से विदित होता है। तीसरी ओर भारतवर्ष का भी शकों के साथ प्रथम परिचय लगभग छठी शती ईसवी पूर्व से आरम्भ हो गया था, इसके कुछ प्रमाण पाणिनीय ‘अष्टाध्यायी’ में मिलते हैं, जैसे 5 सूत्रों में आया हुआ ‘कन्था’ शब्द, जो नगर के अर्थ में शक भाषा का शब्द था। अतएव भारतीय भुवन कोश में शाकद्वीप का जो वर्णन मिलता है, वह भी लगभग छठीं-पांचवी शती. ई. पूर्व में संकलित हुआ होगा। आगे चलकर वही शती विक्रम पूर्व में तो शक स्थान से आये हुए, शक क्षत्रपों ने तक्षशिला, मथुरा और उज्जैनी में अपने राज्य जमा लिये। उस समय उनके धर्म और संस्कृति का गाढ़ा परिचय भारतवासियों को हुआ, जिसका छिपा हुआ वर्णन महाभारत के ‘नारायणी-पर्व’ में आया है और कुछ प्रकट वर्णन भविष्य पुराण के ‘ब्राह्मपर्व’ में विस्तार से आया है।[1] शाकद्वीप का सम्बन्ध क्षीरोद समुद्र के साथ बार-बार दोहराया गया है।[2] यह शाकद्वीप का स्थान समझने की कुंजी है। आजकल के ‘कास्पियन सागर’ का प्राचीन नाम क्षीर-सागर था। इसका प्रमाण यह है कि ‘मार्कोपोलो’ के समय तक यह क्षीरवान नाम से प्रसिद्ध था। एक बार इस पहचान को स्वीकार कर लेने पर शाकद्वीप की स्थिति ‘कास्पियन’ से मध्य एशिया तक के प्रदेश के बीच में ठहरती है और शाकद्वीप से सम्बन्धित नदी और पर्वतों की अधिकांश पहचान मिल जाती है। ‘दारा प्रथम’ के लेख में ‘कास्पियन समुद्र’ के आस पास बसे हुए शकों को ‘शका तर-दरिया’ और ‘शका पर-दरिया’ कहा गया है। फारसी में दरिया समुद्र के लिए है, जिसका अभिप्राय ‘कास्पियन सागर’ से ही था। वे ही भारतीय भूगोल में ‘क्षीरोद सागर’ के शक कहलाये। और शाकद्वीप ही यूनानी लेखकों का ‘सीथिया’ हुआ। शाकद्वीप में सात पर्वत कहे गए हैं - 1. परममेरु, 2. मलय, 3. जलधार, 4. रैवतक, 5. श्याम, 6. दुर्गशैल, और 7. केसरी।[3] इन्हीं नामों की दूसरी सूची भी तुरन्त आगे (श्लोक 23-24) दी गई है। उसमें मलय का पाठ ‘जलद’ है। और छठे ‘दुर्गशैल’ का नाम छूटा हुआ है। ‘मत्स्य और वायु पुराण’ में ‘जलद’ का पाठ ‘उदय’ है और भीष्म पर्व के कुछ हस्त लेखों में मलय की जगह जलद पठ ही है। ज्ञात होता है, मूल नाम जलद ही था। जैसा कि मत्स्य के इस उल्लेख से कि वहाँ वृष्टि के लिए मेघ आते हैं और चले जाते हैं, ज्ञात होता है। वायु पुराण से यह भी संकेत मिलता है कि इन द्वीपों के पर्वतों, वर्षों और नदियों के नाम दो-दो प्रसिद्ध थे, जिसे द्विनामवती शैली कहा है।[4] भीष्म पर्व की दूसरी सूची में पर्वतों के साथ वर्षों का भी उल्लेख है; किन्तु उसमें केवल पाँच नाम हैं, जो इस प्रकार हैंः
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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