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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 9-10
पर्वत और वर्षों की पहचान यथासंभव इस प्रकार है- चतुर्द्वीपी और सप्तद्वीपी भूगोल का मध्य-बिन्दु जो महामेरु था वही यहाँ परम मेरु या पामीर का पठार है। यह तथ्य है कि किसी समय शकों का राज्य मेरु के चारों ओर फैला हुआ था और वे वंक्षु नदी के किनारे बसे थे। वहाँ से 160 ई. पूर्व के लगभग उन्हीं की एक दूसरी प्रबल ऋणिक संज्ञक शाखा ने उन्हें पामीर से खदेड़ दिया और तब शक भागकर ईरान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर शकस्थान में बस गये। ‘जलद पर्वत’ का सम्बन्ध ‘कुमुद वर्ष’ से था, जिसकी पहचान टालमी के ‘कोमेदाई पर्वत’ से स्पष्ट है, जो ‘सीर नदी’ और ‘आमू नदी’ के उद्गम-स्थानों के बीच में था। ‘स्टाइन’ ने कुमुद नदी की पहचान ‘वखशाब नदी’ और ‘कारातिगिन’ तथा ‘आक्सस नदी’ के बीच की भूमि से की है। जलधार पर्वत और सुकुमार वर्ष इसी से मिलते हुए ऊपर की दोनों नदियों के बीच में कुछ पश्चिम की ओर रहे होंगे, जिसे टालमी ने ‘कोमाराई’ कहा है। ‘श्यामगिरि’ ‘मुस्ताग’ पर्वत था। ‘मुस्ताग’ का अर्थ ‘काला पर्वत’ है। ‘अवस्ता’ में भी श्यामक-पर्वत का उल्लेख आता है। ‘दुर्गशैल’ को आम्बिकेय भी कहा गया है, जिससे ज्ञात होता है कि वहाँ ‘दुर्गा’ या ‘मातृदेवी’ का कोई पुराना मंदिर था। केसरी और मोदकी के विषय में कुछ ज्ञात नहीं होता, केवल इतना सूचित होता है कि काश्मीर की तरह वहाँ भी ‘केसर’ की खेती होती थी। शाक द्वीप को सात नदियों के नाम दिये गए हैं - सुकुमारी, कुमारी, सीता, कावेरका, महानदी, मणिजला, इक्षुवर्धनिका। विष्णु पुराण के अनुसार ‘सीता’ मेरु के पूर्व की ओर और चक्षु पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां थीं।[1] यह चतुर्द्वीपी भूगोल का वर्णन था, जो सप्तद्वीपी भूगोल में भी बचा रहा। इक्षु, चक्षु, वक्षु या वंक्षु, ये सब एक ही बड़ी नदी की संज्ञाएं हैं, जिसे आजकल ‘आक्सस’ कहते हैं। ‘सीता’ को चीनी लेखकों ने ‘सीतो’ कहा है, जो वर्तमान ‘यारकन्द नदी’ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णु. 2।2।35-37
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