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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
5. उद्योग पर्व
अध्याय : 180-197
यह कुछ उलझा हुआ उपाख्यान महाभारत के इस प्रसंग का आवश्यक अंग नहीं ज्ञात होता। एक तो आदि पर्व में अम्बा की कथा का उचित स्थान था ही। दूसरे, यहाँ की इस कथा के सूत्र बहुत ही उखड़े और उलझे हुए हैं। शैखावत्यं का आश्रम, वहाँ अकृतव्रण राजा का अकस्मात आ जाना और सबसे अधिक परशुराम का भी अकस्मात प्रकट हो जाना, ऐसे अभिप्राय हैं, जो कथा की कृत्रिमता सूचित करते हैं। सर्वथा यह कहानी बाद में जोड़ी गई प्रतीत होती है। भीष्म और जमदग्नि राम के इस घोर युद्ध की कल्पना भी जान बूझकर की गई है। हमें विदित है कि भार्गव राम का चरित्र महाभारत के कितने स्थलों पर अजेय योद्धा के रूप में रखा गया है, जिन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से शून्य कर दिया था। वही भार्गव वीर राम अपने शिष्य गांगेय भीष्म से परास्त होते हैं और निस्तेज एवं निरुपाय होकर महेन्द्र पर्वत पर चले जाते हैं। यह कथा किसने रची होगी? इस पर विचार करते हुए हमारा ध्यान पंचरात्र भागवतों की ओर जाता है। गुप्त युग की भागवत मान्यता के अनुसार द्वादश महाभागवतों में भीष्म की प्रमुख गणना थी। जैसा भागवत में स्पष्ट कहा हैः स्वयंभूर्नारदः शम्भुः कुमारः कपिलो मनुः। द्वादशेते विजानीमो धर्म भागवतं भटाः। इस सूची में स्वयं शिव को भी भागवत कहा गया है। भीष्म वासुदेव कृष्ण के बड़े भक्त थे, ऐसा महाभारत में शान्ति पर्व में आये हुए भीष्म-स्तवराज [3] नामक स्तोत्र से सूचित होता है। भृगुवंशी परशुराम शिव के भक्त थे। एक मान्यता के अनुसार वे शिव के अवतार ही थे। इस प्रकार के परम शैव ऋषि, परम भागवत भीष्म के समक्ष प्रभावहीन हो जाते हैं। यही इस आख्यान की रचना का मार्मिक उद्देश्य था। शिखण्डिनी में लिंग-परिवर्तन की घटना उसी प्रकार तथ्यात्मक जान पड़ती है, जैसी कई घटनाएं वर्तमान युग में सुनी जाती हैं। प्राचीन काल में ठीक हो इसे दैवी चमत्कार समझा गया, जिसमें एक ओर शिव के वरदान और दूसरी ओर कुबेर के अनुचर यक्ष की सहायता की आवश्यकता पड़ी। वक्ष स्त्री प्रसक्त मनोवृत्ति के प्रतीक माने जाते थे। ऊपर की पृष्ठ भूमि में इस विचित्र कथा के तन्तुओं की संगति समझी जा सकती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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