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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
उद्योग पर्व
अध्याय : 9-18
उद्योग पर्व में इन्द्र-वृत्र की कथा के वैदिक स्वरूप के निर्वाह के साथ आगे के अंश में कुछ उस युग का पांचरात्रिक पुट दिया गया है जब अव्ययात्मा महाविष्णु को देवाधि देव माना जाने लगा था। इसके अनुसार वृत्र का बल ऐसा बढ़ा कि इन्द्र उससे हारने लगा और उसने विष्णु से यह बात कही- “मैं पहले समर्थ था, अब असमर्थ हो गया हूँ।”[1] विष्णु ने कहा- “हे देवी, मैं इन्द्र के वज्र में प्रविष्ट होकर उसे वृत्र-वध की शक्ति प्रदान करूंगा।” कथा में जो यह कहा है कि इन्द्र ने समुद्र के फेन से वृत्र का नाश किया, इतना अंश भी वैदिक वर्णन के अनुकूल था। वैदिक विज्ञान में अम्भोवाद नामक एक दृष्टिकोण था, नासदीय सूक्त में जिसका उल्लेख आया है। इसके अनुसार आप या जल या वायु के संघर्ष से विकास की परम्परा बताते हुए शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि सबसे पहली उत्पत्ति फेन की हुई। तब क्रमशः मृत, ऊष (क्षार पदार्थ), सिकता (बालू), शर्करा (कंकड़), अश्मा अयस और हिरण्य- इन आठ प्रकार के पदार्थों का निर्माण हुआ जिनमें कोमल फेन से लेकर कड़े-से-कड़े रत्नादि सब आ जाते हैं। जिस समय आपोमय समुद्र में फेन बनने लगा उसी समय मानो वृत्र का आवरण हट गया या वृत्र का नाश हो गया। उस समय रौद्र वायु के स्थान में शिव वायु बहने लगी अर्थात जल के मन्थन से सोम उत्पन्न होकर आग्नेय तत्त्व का संवर्धन करने लगा। पारमेष्ठ्य तत्त्व को महान या महत ब्रह्म कहा जाता है। इसीलिए पारमेष्ठ्य जलों पर जब तापधर्मा इन्द्र या अग्नि को विजय मिली तो कथा के ढंग से कहा गया कि इन्द्र को ब्रह्महत्या का अपराध लगा। उस कहानी को बढ़ाते हुए कहा गया है कि इन्द्र छिप गया और उसके स्थान में नहुष को देवों ने इन्द्र बनाया। इन्द्राणी के लिए कामुक होने के कारण नहुष को अपदस्थ होना पड़ा। यहाँ कहानी को फिर वैष्णव मोड़ दिया गया है। जब इन्द्र का पता न चला तब देवता विष्णु के पास गए। विष्णु ने कहा, “मेरा भजन करो। मैं ब्रह्महत्या के दोष से इन्द्र को मुक्त करूंगा। पवित्र अश्वमेध यज्ञ से इन्द्र फिर देवराज पदवी पाएगा।” देवों ने ऐसा ही किया। इन्द्राणी द्वारा इन्द्र की अलग खोज हो रही थी, उसने किसी उपश्रुति नामक देवी का आवाहन किया। इसका उल्लेख ऋग्वेद[2] और अथर्ववेद[3] तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में भी आया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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