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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
5. उद्योग पर्व
अध्याय : 1-3
इधर दुर्योधन भी अपने गुप्तचरों द्वारा युधिष्ठिर की चेष्टाओं का पता लगा रहा था। उसने जब सुना कि कृष्ण द्वारका लौट गए हैं तो वह भी वहाँ गया। संयोग से उसी दिन अर्जुन ने भी द्वारका के लिए प्रस्थान किया। जब वे पहुँचे कृष्ण सोये हुए थे। दुर्योधन उसी अवस्था में सिरहाने जाकर बैठ गया। उसके पीछे ही अर्जुन भी पहुँचा और पैरों की ओर बैठकर प्रतीक्षा करने लगा। जागने पर कृष्ण ने पहले अर्जुन को देखा और तब दोनों का स्वागत सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा। दुर्योधन ने हंसते हुए कहा, “इस भावी युद्ध में आप मुझे सहायता दें। आपका मुझमें और अर्जुन में बराबर सख्य भाव है। हम दोनों का सम्बन्ध भी आपके साथ एक-सा है और फिर मैं पहले आपके पास पहुँचा हूँ। सज्जन पहले आए हुए को अपनाते हैं। आप इस सद्वृत्त का पालन करें।” कृष्ण ने सरल भाव से उत्तर दिया, “इसमें सन्देह नहीं कि तुम पहले आए, पर मैंने पहले पार्थ को ही देखा। तुम्हारे पहले आने के कारण और उसके पहले देखे जाने के कारण मेरा निश्चय है कि मैं दोनों की सहायता करूंगा। छोटों का मन बहलाव पहले होना चाहिए ऐसी नीति है। एक ओर मेरी असंख्य नारायणी गोप सेना है दूसरी ओर मैं अकेला रहूंगा- सो भी हथियार नहीं उठाऊंगा और युद्ध नहीं करूंगा। हे अर्जुन, इनमें से जो तुम्हें रुचे चुन लो क्योंकि तुम्हारा मन पहले रखना उचित है।” अर्जुन ने तुरन्त कृष्ण को चुन लिया और दुर्योधन उनके सैनिकों को अपने पक्ष में करके फिर बलराम के पास पहुँचा और आने का हेतु कहा। बलराम ने कहा, “मैंने विराट के यहाँ कृष्ण को फटकार कर तुम्हारे पक्ष में कुछ कहा था पर कृष्ण को मेरा वह वाक्य रुचा नहीं। बिना कृष्ण के मैं क्षण भर के लिए किसी पक्ष में नहीं हो सकता। इसलिए मैंने निश्चय किया है कि दोनों में से किसी का सहायक न बनूंगा।” सुनते ही दुर्योधन प्रसन्न हो गया और उसने अपनी जीत निश्चित जान ली और हस्तिनापुर लौट आया। कृष्ण ने एकान्त में अर्जुन से पूछा कि तुमने क्या सोचकर मुझ अकेले को चुना। अर्जुन ने कहा, “आप लोक में यशस्वी हैं। यश के लिए मैंने आपको चुना। बहुत दिन से मेरी इच्छा थी कि आप मेरे सारथी बनें। अब वह अवसर आया है।” कृष्ण ने उसे स्वीकार किया। अर्जुन भी प्रसन्न मन से युधिष्ठिर के पास लौट आया। ऊपर जिन नारायण गोपों का उल्लेख कृष्ण ने अपनी सेना के रूप में किया है। वे यमुना के दक्षिण तटवर्ती कछारों से लेकर किसी समय नर्मदा तटवर्ती चेदि प्रदेश तक फैले हुए थे। महाभारत में अन्यत्र भी उनका उल्लेख आया है। उन्हीं के कारण कुन्ति जनपद या कोतवार प्रदेश गोपाद्रि नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोपालगिरि ही वर्तमान में ग्वालियर है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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