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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 207-212
जैसा मनुस्मृति में कहा है, ‘उसी एक प्राणतत्त्व को कोई अग्नि, कोई मनु प्रजापति, इन्द्र और कोई शाश्वत ब्रह्म कहते हैं।’ सृष्टि का मूल-भूत महान ऊष्मा ही महान अग्नि या महाप्राण है, जो भूत या पिंडों में लक्षित है। वही मनु प्रजापति या हृदय तत्त्व है: ऊष्मा चैवोष्मणो जज्ञे सोऽग्निर्भूतेषु लक्ष्यते। अन्त में ‘अग्नीषोमात्मक जगत’ की व्याख्या को पूर्ण करते हुए कहा है कि जितनी अग्नियाँ हैं, उतने ही सोम हैं, और अग्नि के समान समस्त सोम भी एक ही मूल ब्रह्म-तत्त्व से उत्पन्न हुए हैं। तात्त्विक अग्नि का वर्णन करते हुए ऋषि का ध्यान उन अग्नियों की ओर जाता है, जिन्हें मनुष्य यज्ञ की वेदियों में प्रज्वलित करते हैं। ये यज्ञवेदियाँ नदियों के तटों पर बनाई गईं। सिंधु, सरस्वती, गंगा, सरयू, कौशिकी, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, ये सब नदियाँ उन यज्ञीय अग्नियों की माताएँ हैं। (एता नद्यस्तु द्यिष्णयानां मातरो याः प्रकीर्त्तिता-213।24)। इस प्रकार भरत अग्नि के बहुधा प्रज्वलित होने से सारा देश ही यज्ञीय और भारत बन गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आरण्यक पर्व 211।4
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