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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 89-153
युधिष्ठिर ने पूछने पर लोमश ने सगर और भगीरथ की कथा सुनाई। सगर के यज्ञ का अश्व समुद्र के किनारे कहीं अदृश्य हो गया। उसे ढूंढ़ते हुए उसके साठ हजार पुत्रों ने समुद्र को खोद डाला और अन्त में महात्मा कपिल के आश्रम में वह अश्व दिखाई दिया। उन्होंने कालवश कपिल का अनादर किया और वे कपिल के नेत्रों की अग्नि से भस्म हो गए। सगर का दूसरा पुत्र असमंजस अत्याचारी था। पुरवासियों के कहने से राजा ने उसे निकाल दिया। तब सगर का पौत्र अंशुमान कपिल के आश्रम में गया। उसने ऋषि को प्रसन्न करके अश्वमेध का घोड़ा प्राप्त किया, जिससे सगर का यज्ञ पूरा हुआ। अंशुमान के पुत्र दिलीप और दिलीप के भगीरथ हुए। भगीरथ ने गंगा को भूतल पर लाने के लिए सुदीर्घ तप किया हैमवती गंगा प्रत्यक्ष हुई। भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए देवनदी गंगा से पृथ्वी पर आने ही प्रार्थना की। गंगा के भार को सम्हालने के लिए भगीरथ ने कैलाश पर्वत पर शंकर को प्रसन्न किया। इस प्रकार गंगा आकाश से भूतल पर आईं। उन्होंने भगीरथ से कहा, ‘‘महाराज, आपके लिए मैं पृथ्वी पर आई हूँ मुझे मार्ग दिखाइये।’’ यह सुन भगीरथ मार्ग दिखाते हुए गंगा को समुद्र तक ले गए और गंगा ने पाँच सौ नदियों की सहायता से समुद्र को भर दिया। भगीरथ की तपश्चर्या से प्रसन्न गंगा वरदान के रूप में आकाश से पृथ्वी पर आईं-यह कथा भारतीय उपाख्यान-निर्माताओं की विलक्षण प्रतिभा का फल थी। भारतीय भूमि, जन और संस्कृति की धात्री गंगा के लिए जो भी कहा जाय, कम है। हमारी भाषा गंगा की प्रशंसा में अपने शब्दों का पुष्पोहार अर्पित करके पूरी तरह उऋण नहीं हो सकती। दिलीप और भगीरथ-जैसे राजर्षियों ने तप द्वारा गंगा के अवतरण में भाग लिया। इससे अधिक गंगा की महिमा में और क्या कहा जा सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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