विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 80-83
इन स्थानों के सिलसिले में दो भौगोलिक मार्ग मुख्यतः दृष्टि में आते हैं। एक मार्ग गंगा के उत्तर कोसल देश से लोहित्य तक चला गया था। यह पुराना रास्ता था। कालिदास ने रघु-दिग्विजय में इसी मार्ग का वर्णन किया है। अतएव रघु को दक्षिण की ओर जाने के लिए गंगा के स्रोतों को पार करने की आवश्यकता पड़ी थी। दूसरा मार्ग गंगा के दक्षिण जाता हुआ मगध को पूरब में गंगा-सागर-संगम के साथ पश्चिम में मध्य देश के साथ और दक्षिण–पश्चिम में दक्षिण कोसल के साथ मिलाता था। इस तीसरे मार्ग का अनुसरण करते हुए यात्रा में निम्नलिखित स्थानों का उल्लेख हैं: मगध से दक्षिण-पूर्व की ओर वैतरणी नदी और पश्चिम-दक्षिण की ओर शोण और नर्मदा का उद्गम-स्थान है। गया से पश्चिम यह मार्ग शोण के किनारे-किनारे चलता था। फिर जहाँ शोण और उसकी शाखा नदी जोहिला (प्राचीन ज्योतिरथा) मिलती है, वहाँ दक्षिण घूमकर नर्मदा के दक्षिण चेदि जनपद को पार करके एक मार्ग पश्चिम में विदर्भ तक जाता था, जिसकी राजधानी वंशगुल्म (आधुनिक बासिम) का इस प्रकरण में उल्लेख हुआ है। दूसरा रास्ता शोण के उद्गम के पास से बिलासपुर होता हुआ दक्षिण कोसल में घूमता था। कोसल का एक बड़ा केंद्र उस काल में ऋषभ तीर्थ कहा गया है।[1] ऋषभ तीर्थ बिलासपुर और रायगढ़ के बीच वर्तमान शक्ति रियासत के गुंजीगांव का उसभतीर्थ है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि तीर्थ-यात्रा के मार्ग, भू-सन्निवेश के मार्ग और व्यापारिक यातायात के मार्ग बहुत करके एक ही थे। तीर्थों के क्रमबद्ध अध्ययन और पहचान कुंजियां भौगोलिक में छिपी हैं। ज्ञात होता है कि महाभारत के इस प्रकरण का लेखक एक स्थान में खड़े होकर मार्गों के चौमुखी फटाव को देख रहा है, उसके वर्णन के सब सूत्र चारों दिशाओं से आकर एक केंन्द्र-स्थान पर मिल रहे हैं। मगध से कलिंग और मगध से मेकल होकर विदर्भ- कोसल के दोमुंही रास्तों का ऐसा स्पष्ट उल्लेख जैसा यहाँ है, अन्यत्र नहीं पाया जाता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऋषभतीर्थमासाद्य कोसलायां, नराधिप, आर0 183।90
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज