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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 80-83
इस यात्रा-प्रकरण के कुछ तार अभी बच जाते हैं- जैसे (1) दक्षिणी अंचल के तीर्थ, (2) दक्खिन के पठार के तीर्थ और (3) मध्यदेश के अन्तर्गत तीर्थ। संक्षेप में ये तीनों इस प्रकार थेः उड़ीसा की वैतरणी से दक्षिण घूमकर एक रास्ता समुद्र के किनारे महेन्द्र पर्वत (उड़ीसा का आधुनिक महेन्द्रगिरि) और श्री पर्वत (कृष्णा नदी के समीप श्री शैल, वर्तमान नागार्जुनी कनाड़ा) के पास होता हुआ पांड्य देश तक चला गया था। वहाँ कावेरी और कन्याकुमारी को मिलाता हुआ यह सामुद्रिक मार्ग उत्तरी कनाड़ा के उसी गोकर्ण तीर्थ में जा मिलता था, जिसका पहले उल्लेख हो चुका है। दक्षिणी पठार के अन्तर्गत तीर्थों में हम पुनः उस प्राचीन भूगोल को देखते हैं, जिसमें गोदावरी से पश्चिम की ओर जाने वाला मार्ग वरदा और वेणा (वेनगंगा) के कांठों में होकर विदर्भ से सोपारा जा निकलता था। तीर्थों का तीसरा गुच्छा मध्यदेश के दक्षिणी अंचल में कालिंजर-चित्रकूट-मन्दाकिनी से शुरू होकर श्रृंगवेरपुर होता हुआ प्रयाग और प्रतिष्ठान (झूसी) को मिलाता था और पुनः वही प्रयाग से काशी की ओर दशाश्वमेध तक चला जाता था। यही संक्षेप में पुलस्त्य का कहा हुआ तीर्थ-यात्रा-प्रकरण है। इसमें वंशगुल्म, ऋषभ तीर्थ, श्रीपर्वत और दशाश्वमेध नामों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे यह प्रकरण गुप्तकाल के आसपास की भौगोलिक संज्ञाओं को लेकर रचा गया हो और इस प्रसंग में रख दिया गया हो, जबकि पुराना प्रकरण भी धौम्य यात्रा के रूप में अपनी जगह पड़ा रह गया। धौम्य इस प्रकार पृथ्वी के तीर्थ और पुण्य आयतनों का वर्णन कर ही रहे थे कि उसी समय लोमश ऋषि वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इन्द्र-लोक से आ रहा हूँ। वहाँ मैंने अर्जुन को इन्द्र के साथ अर्द्धासन पर बैठे देखा। इन्द्र के कहने से मैं यहाँ आया हूँ।’’ अर्जुन ने शिव से ब्रह्मशिर नाम का रौद्र अस्त्र प्रयोग और संहार के मत्रों-सहित प्राप्त कर लिया है। यम, कुबेर, वरुण तथा इन्द्र से और भी दिव्य-अस्त्र उसने प्राप्त किये है एवं नृत्य, गीत और वादित्र की शिक्षा भी विश्वाससु गन्धर्व के पुत्र चित्रसेन से प्राप्त कर ली है। वह एक महान देवकार्य सम्पन्न करके शीघ्र लौटेगा तब तक तुम भाइयों के साथ तप के कार्य में लगो। तीर्थयात्रा करने से जो तपोयुक्त फल मिलता है, उसका वर्णन लोमश तुमसे करेंगे उनकी बात पर श्रद्धा करना।’’ यों इन्द्र का संदेश सुनाकर लोमश ने इतना और कहा, ‘‘अर्जुन ने भी मुझसे कह दिया है कि आप मेरे भाइयों को तीर्थयात्रा पर ले जायँ और बराबर साथ रहकर उनकी रक्षा करते रहें। अतः मैं इन्द्र और अर्जुन के कहने से तुम्हारे साथ तीर्थयात्रा पर चलूंगा। इन्द्र और अर्जुन की सिफारिश लेकर लोमश का पहुँचना और अपने साथ पाण्डवों को तीर्थयात्रा पर ले जाना, कथाप्रवाह में यह पैबन्द कुछ विचित्र-सा लगता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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